Shardiya Navratri 2019: भक्तों की चिंता दूर करती हैं मां चिंतापूर्णी, हर साल पहुंचते हैं 25 लाख तक श्रद्धालु
मां चिंतपूर्णी के दरबार में हर साल 20 से 25 लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं। मान्यता है कि मां के दर्शन करने से भक्तों की चिंताएं दूर हो जाती हैं।
चिंतपूर्णी, नीरज पराशर। देवभूमि हिमाचल में कई धार्मिक स्थान हैं जहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। इन्हीं में से एक है ऊना जिले में स्थित उत्तर भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी मंदिर। इसे मां छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। मां चिंतपूर्णी के दरबार में हर साल 20 से 25 लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं। मान्यता है कि मां के दर्शन करने से भक्तों की चिंताएं दूर हो जाती हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार मां छिन्नमस्तिका के निवास के लिए उस स्थान का चारों दिशाओं में रुद्र महादेव का संरक्षण होना आवश्यक है।
चिंतपूर्णी मंदिर के चारों ओर शिव मंदिर हैं। मंदिर से उनकी दूरी भी एक समान है। चिंतपूर्णी मंदिर के पूर्व में कालेश्वर महादेव, दक्षिण में शिवबाड़ी मंदिर (गगरेट, उत्तर में मुचकुंद महादेव और पश्चिम में नरयाणा महादेव स्थित हैं। चिंतपूर्णी मां का दरबार दस महाविद्याओं में से एक है।
जलधर दैत्य के तप से हुई थी छिन्नमस्तिका की स्थापना
मां छिन्नमस्तिका धाम चिंतपूर्णी जलधर पीठ में तंत्र साधना के लिए उत्तम स्थल है। मां छिन्नमस्तिका इस क्षेत्र में जलधर दैत्य की आराधना से स्थापित हुई थीं। त्रेता युग में जलधर दैत्य भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए थे। जलधर दैत्य भगवान विष्णु, शिव व ब्रह्मा का महान तपस्वी था। उसने दस महाविद्याओं में से आठ पर सिद्धि प्राप्त कर ली थी। उसने देवताओं पर अत्याचार करने आरंभ कर दिए थे। जलधर दैत्य की पत्नी वृंदा पतिव्रता स्त्री थीं। वह भी शिव उपासक थीं। वह उसे सभी मुसीबतों से बचा लेती थीं। अत्याचारों से तंग आकर देवताओं ने भगवान शिव से गुहार लगाई तब भगवान शिव ने जलधर दैत्य का स्वयं वध करने का निश्चय किया, लेकिन जलधर दैत्य के श्राप से बचने के लिए भगवान विष्णु को उन्होंने भेष बदलकर वध करने के लिए कहा। भगवान विष्णु ने दैत्य का वध कर दिया। अपने जीवन के अंतिम क्षणों में जलधर दैत्य ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया कि जो कोई उपासक जलधर पीठ क्षेत्र में शैव व शांक की आराधना करेगा, उसकी आराधना चार गुना अधिक फलित होगी। जलधर दैत्य ने जलधर पीठ क्षेत्र में 365 देवालयों व चार द्वारपालों की स्थापना की थी। यह कालेश्वर महादेव, कुंजेश्वर महादेव (लम्बा गांव), नंदीकेश्वर महादेव (चामुंडा) कुवेश्वर महादेव (जो अब पौंग बांध में जलमग्न हो चुका है), जलधर पीठ की चारों दिशाओं से रक्षा करते थे।
इसलिए कहते हैं मां छिन्नमस्तिका
राक्षसों का संहार करने के बाद मां भवानी अपनी सेविकाओं जया व विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। उस समय सेविकाओं ने उनसे भोजना मांगा। देवी ने उन्हें प्रतीक्षा करने के लिए कहा। दोबारा याचना करने पर भी देवी ने फिर से प्रतीक्षा करने के लिए कहा। कुछ देर बाद सेविकाओं ने फिर प्रार्थना की। इस पर माता ने अपना सिर काट दिया। कटा हुआ सिर देवी के बाएं हाथ पर गिरा। कटे हुए शीश से तीन धाराएं बह निकलीं। दो धाराएं उनकी दो सेविकाओं के मुख में प्रवाहित होने लगीं। तीसरी धारा कटे हुए मुख में जाने लगी। इसलिए मां चिंतपूर्णी को छिन्नमस्तिका के नाम से भी पुकारा जाता है।
बाबा माईदास को दर्शन दिए थे मां चिंतपूर्णी ने
मंदिर के पुजारी संजय कालिया का कहना है जलधर दैत्य ने कठोर तपस्या करके सर्वप्रथम त्रेता युग में छिन्नमस्तिका को चिंतपूर्णी में स्थापित किया था। उसके बाद मुगलों के अत्याचार व उनके द्वारा हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को नष्ट कर दिए जाने के कारण लोग इस शक्ति स्थल की महत्ता को भूल गए। 1400वीं ईस्वी में संत माईदास इस स्थान से गुजर रहे थे। तभी मां छिन्नमस्तिका ने बाबा माईदास को साक्षात दर्शन देकर वहीं पर उनका मंदिर बनाकर आराधना करने के लिए कहा। वरदान दिया कि जैसे-जैसे कलियुग अपने अंतिम चरण में पहुंचेगा, इस स्थान की महत्ता बढ़ जाएगी। बाबा माईदास ने निर्जन जंगल में मां के कहे अनुसार जब एक पत्थर उखाड़ा था, तो उसके नीचे से पानी की धारा बह निकली। मां के चमत्कार से बाबा माईदास इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने वहीं रहकर मां की पूजा-अर्चना शुरू कर दी। आज 700 साल बाद भी बाबा माईदास के वंशज ही चिंतपूर्णी में पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
ऐसे पहुंचें चिंतपूर्णी
मां चिंतपूर्णी के दरबार में पहुंचने के लिए उत्तर भारत के करीब सभी बड़े शहरों से सीधी बस सेवा है। दिल्ली, गुरुग्राम, अंबाला, पटियाला, जालंधर, अमृतसर, बटाला, चंडीगढ़, पठानकोट, हरिद्वार, यमुनानगर, फाजिल्का, फिरोजपुर, मोगा, लुधियाना और श्रीगंगानगर से सीधी बस सेवा चिंतपूर्णी के लिए उपलब्ध है। श्रद्धालु चंडीगढ़, नंगल, ऊना से होते हुए चिंतपूर्णी पहुंच सकते हैं। दो अन्य मार्ग होशियारपुर और तलवाड़ा से हैं। होशियारपुर और ऊना से चिंतपूर्णी की दूरी 50 किलोमीटर है। वहीं रेलमार्ग से भी श्रद्धालु अम्ब तक पहुंच सकते हैं। अम्ब में दिन में दो बार ट्रेन आती व जाती है। अम्ब की चिंतपूर्णी से दूरी महज 23 किलोमीटर है। वहीं हवाई मार्ग से श्रद्धालुओं के पहुंचने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा कांगड़ा के गगल में है, जिसकी चिंतपूर्णी से दूरी लगभग 68 किलोमीटर है।