कोरोना संकट में कर्मभूमि नहीं छोड़ना चाहते दूसरे राज्यों के कामगार, औद्योगिक नगरी बद्दी में डटे सैकड़ों
कोरोना संकट में देश में अन्य राज्यों के मजदूरों का पलायन जारी है। बिना कामकाज आर्थिक परेशानी झेल रहे मजदूर अपने घरों को लौट रहे हैं।
बद्दी (सोलन), रणेश राणा। कोरोना संकट में देश में अन्य राज्यों के मजदूरों का पलायन जारी है। बिना कामकाज आर्थिक परेशानी झेल रहे मजदूर अपने घरों को लौट रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में भी कामगारों और कर्मचारियों के घर वापस जाने से फार्मा सहित अन्य उद्योगों में उत्पादन प्रभावित हो रहा है। इनमें कामगारों का एक वर्ग ऐसा भी है, जो अपनी कर्मभूमि को छोडऩा नहीं चाहता।
सोलन जिला के बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ (बीबीएन) के कई मजदूरों का कहना है कि मुश्किल समय में उद्योगों का साथ छोडऩा कतई सही नहीं है। हमने इस शहर को बनाने में सहयोग दिया, हमें भी इसी शहर ने बनाया है। इनकी कर्तव्यनिष्ठा और इमानदारी दूसरों के लिए भी प्रेरणा है।
बद्दी के वार्ड छह हरिपुर संडोली, वार्ड आठ बिल्लांवाली में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के करीब छह सौ श्रमिक रह रहे हैं। इन्होंने बताया कि इस शहर ने उन्हें जीवन दिया है। बुरे वक्त में संस्थाओं ने देखभाल की है, बच्चों को शिक्षा दे रही हैं और बिना काम वेतन भी मिला है। हमारा भी फर्ज बनता है संकट में हम भी बद्दी का साथ दें।
सुख-दुख में साथ खड़े रहे उद्योग प्रबंधक
कच्चे कमरों में किराये पर रह रहे उत्तर प्रदेश के प्रमोद कुमार, अख्तर हुसैन, लाल सिंह, गंगा सहाय, हर राज, फूल जहां, अमरपाल, मुन्ना सिंह, वीर सिंह, राजेश कुमार, विनोद सिंह, राजकुमार व सुनील उन कामगारों में शामिल हैं, जो इस मुश्किल वक्त में उद्योगपतियों के साथ खड़े हैं। यह सभी लोग उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, संभल, बदायूं, बरेली के रहने वाले हैं। प्रमोद कुमार ने बताया कि जब से कफ्र्यू व लॉकडाउन हुआ है तबसे कारखाने बंद थे। अब धीरे-धीरे काम शुरू हो रहा है, लेकिन फैक्ट्री में उत्पादन न के बराबर है फिर भी हमारे मालिक हमारा पूरा सहयोग कर रहे हैं। दो माह से हर सुख-दुख में साथ खड़े रहे हैं। चाहे दवा हो या खाना उपलब्ध करवाना हो। आज जब फैक्ट्री शुरू हो रही है तो इस समय गांव वापस जाना उचित नहीं होगा। अब तो घर से अधिक बेहतर माहौल हमें यहां मिल रहा है।
मालिकों ने कमरों का किराया किया माफ
मुन्ना सिंह ने बताया कि वह पेंटर है। अब काम बंद है। फिर भी हम गांव वापस नहीं जा रहे हैं। परिवार की आर्थिक मदद यहीं से करते रहेंगे। ऐसे कई श्रमिकों ने बताया कि हम 1500 से 2500 रुपये के कच्चे कमरों में रहते हैं। मकान मालिक ने अप्रैल का किराया माफ किया है।