हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने से बनी 927 झीलें, हिमकोस्ट सेटेलाइट से मैपिंग कर रोकी जा सकेगी तबाही
Lakes in Himalaya ग्लेशियरों के पिघलने से हिमालय क्षेत्र में बनी 927 झीलों की मैपिंग शुरू की गई है ताकि ये मुसीबत न बन सकें।
शिमला, जेएनएन। ग्लेशियरों के पिघलने से हिमालय क्षेत्र में बनी 927 झीलों की मैपिंग शुरू की गई है, ताकि ये मुसीबत न बन सकें। मैपिंग का जिम्मा हिमाचल पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद (हिमकोस्ट) को सौंपा गया है। वर्ष 2018 की तुलना में 2019 में झीलें बनने और क्षेत्र विस्तार में 43 फीसद की वृद्धि हुई है। इन झीलों का विस्तार पांच से 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल में है और कुछ का तो 10 हेक्टेयर से भी अधिक है। इनमें काफी पानी है।
इससे पहले प्रदेश में ऐसी झीलें तबाही का कारण बन चुकी हैं। सतलुज घाटी में वर्ष 2000 में भारी बाढ़ आई थी, जिससे 800 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ था। वर्ष 2014 में भारी बारिश के साथ चोराबरी ग्लेशियर के आगे बनी छोटी झील टूटने के कारण केदारनाथ जैसी त्रासदी हुई थी। ऐसी त्रासदी से बचने के लिए झीलों पर नजर रखी जा रही है।
सतलुज घाटी में 562 झीलें
हिमकोस्ट के जलवायु परिवर्तन केंद्र की ओर से किए शोध के आधार पर वर्ष 2019 में सतलुज घाटी में 562 झीलें पाई गई हैं। इनमें से 458 झीलें पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल की हैं, जबकि 53 झीलें पांच से 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल और 51 झीलें 10 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में हैं। चिनाब घाटी में करीब 275 झीलें हैं। चंद्रा में 52, भागा में 84 और मियार में 139 झीलें हैं। ब्यास घाटी में 90 झीलें हैं।
स्पेस तकनीक उपयोगी
हिमकोस्ट के सदस्य सचिव व निदेशक एवं विशेष सचिव राजस्व डीसी राणा ने बताया कि ऊपरी हिमालय क्षेत्र में झीलें बनने की घटनाओं पर स्पेस तकनीक (सेटेलाइट) बहुत ही उपयोगी और सहायक सिद्ध हुई है। हिमकोस्ट का पर्यावरण परिवर्तन केंद्र झीलों की मैङ्क्षपग और निगरानी कर रहा है।
नुकसानदेह हो सकती हैं झीलें
पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी सचिव रजनीश ने बताया कि हिमालय में बर्फ पिघलने के कारण बनी झीलों में काफी पानी होने के कारण यह भविष्य में नुकसानदेह साबित हो सकती हैं। इसी से बचने के लिए मैपिंग की जा रही है ताकि नुकसान को कम से कम किया जा सके।