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खबर के पार: जातिगत भेदभाव का सच और सनसनी

मंत्री को मंदिर में प्रवेश न करने देने के मामले ने जातिगत भेदभाव पर बेशक प्रदेश में बहस छेड़ दी है। लेकिन सच यह भी है कि प्रदेश में इस बुराई की जड़ें अब भी नष्ट नहीं हुई हैैं।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Thu, 16 Jan 2020 09:42 AM (IST)Updated: Thu, 16 Jan 2020 09:42 AM (IST)
खबर के पार: जातिगत भेदभाव का सच और सनसनी
खबर के पार: जातिगत भेदभाव का सच और सनसनी

धर्मशाला, नवनीत शर्मा। हिमाचल प्रदेश के एक मंत्री हैं। नाम है डॉ. राजीव सैजल... आरक्षित विधानसभा क्षेत्र कसौली से विधायक हैं। विभाग है सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता। धारा प्रवाह हिंदी बोलने वाले सुशिक्षित और युवा मंत्री ने विधानसभा के एक दिन के विशेष सत्र में कह दिया कि वह जब मंडी जिले में नाचन हलके के दौरे पर थे तो उन्हें एक मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि उनके साथ नाचन के विधायक विनोद कुमार भी थे।

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जाहिर है, बवाल मचना था सो मचा। बवाल इसलिए... क्योंकि यह पीड़ा किसी आम आदमी की नहीं थी, एक काबीना मंत्री की थी। इसलिए भी क्योंकि काबीना मंत्री भाजपा शासित राज्य का था। और इसलिए भी क्योंकि यह बात किसी चौराहे पर, बंद दरवाजों की चाय पार्टी में या ऑफ द रिकॉर्ड नहीं कही गई थी....विधानसभा में कही गई थी। मौका था अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण विधेयक को पारित करने का। पक्षों से यह भी पता चला कि उन्हें रोका किसी ने नहीं था, परंतु वह जानबूझ कर नहीं गए।

तूफान स्वाभाविक था। सरकार का भाग अथवा स्वयं में सरकार अगर सदन में अपनी पीड़ा व्यक्त करे तो बाहर भी ध्यानाकर्षण होना ही था। क्योंकि इस प्रकार की घटनाएं केवल एक व्यक्ति को आहत नहीं करती, एक क्षेत्र जाति या समुदाय को ही मर्माहत नहीं करतीं....राष्ट्रीय भावना को भी चोट पहुंचाती हैं।

सो पड़ताल हुई। पड़ताल में सबसे पहले तो मंत्री के बयान में जिन विधायक का नाम लिया गया था, वह विनोद कुमार अपनी बात से हटे। उन्होंने कहा, 'मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं है। डॉ. सैजल ही जानते होंगे कि किस मंदिर में क्या हुआ। ' उसके बाद डॉ. राजीव सैजल का पक्ष आया कि, 'बात को मुझ पर केंद्रित न किया जाए...क्योंकि बात सामाजिक कुरीति की है। ' उन्होंने साफ कहा कि इस मामले को तूल न दिया जाए। उन्होंने इसके दो भाग किए। पहला यह कि वह एक मंत्री के तौर पर जहां चाहे जा सकते हैं, उन्हें कोई रोक नहीं सकता। लेकिन एक आम आदमी के तौर पर मुश्किलें अब भी हैं।

इसी बीच, दलित पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक मोर्चा के संयोजक चमन राही ने मामला दर्ज करवा दिया। पुलिस ने जब विधायक विनोद कुमार के बयान लिए तो उन्होंने साफ कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि सैजल व उन्हें किसी ने नहीं रोका।

बात वास्तव में व्यक्ति की नहीं है लेकिन एक मंथन की जरूरत तो महसूस होती ही है कि अगर मंत्री के साथ यह व्यवहार हो रहा है तो क्यों उन्होंने कानूनी रास्ता नहीं चुना? संसदीय कार्यमंत्री सुरेश भारद्वाज भी बोल उठे कि मंत्री को किसी मंदिर में प्रवेश करने से नहीं रोका गया है। विपक्ष को भी अवसर मिला। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने तो मुख्यमंत्री से ही स्थिति स्पष्ट करने को कह दिया। माकपा विधायक राकेश सिंघा ने इस बहाने देव समाज पर निशाना साध लिया और मंत्री की 'लाचारगी ' पर दुख व्यक्त किया। सनसनी का मूल कारण यह भी था कि भारतीय जनता पार्टी के मंत्री के साथ यह सब हुआ? भाजपा के पीछे संघ जैसा वैचारिक रूप से सुस्पष्ट संगठन है, उसके मंत्री के साथ यह सब हुआ? यह अपेक्षा भाजपा से ही की जा सकती है कम से कम वह इस प्रकार की कुरीतियों के खिलाफ हमेशा मुखर रहेगी। 

लेकिन सवाल यह है कि डॉ. सैजल ने सदन में जो कहा, वह गलत था या उसके बाद वह जो भी कह रहे हैं, वह झूठ है? कोई एक बयान तो झूठ है ही। मुद्दा यह है कि पहले वाली बात झूठ थी या बाद में उन्होंने जो कहा वह झूठ था? एक तीसरा पक्ष यह भी हो सकता है कि सदन में मंत्री किसी पूर्व अनुभव के कारण भावुक हो गए हों, लेकिन जब सनसनी फैली, तो उन्हें राजनीतिक जमा घटाव की चेतना आई हो। जो भी हो, पहला बयान, पहला ही होता है। किसी भी विवशता के कारण बाद में विनोद कुमार के सामने सवर्ण वोट आ गए हों या डॉ. राजीव सैजल के सामने कुछ व्यावहारिक राजनीतिक सत्य स्पष्टता के साथ आए हों, एक सनसनी तो अपना काम कर गई। डॉ. राजीव सैजल जैसा व्यक्ति झूठ बोले, यह लगता नहीं है।

आखिर क्यों मिड-डे मील की पंक्तियां भी ऐसे आरोपों से छलनी हो जाती हैं? कई पेयजलस्रोतों के बाहर लगे ऐसे बोर्ड अस्पृश्यता की ओर इशारा करते हैं जबकि सच यह है कि भारतीय समाज को एकजुट रखने में जो भूमिका दलित समाज की रही है, उस देन को हर भारतीय को याद रखना चाहिए। दो बार मुख्यमंत्री और फिर केंद्रीय मंत्री रहे शांता कुमार ने तो ब्राह्मण सभा के कार्यक्रम में कह दिया, 'जन्म से ब्राह्मण होना बड़ी बात नहीं, कर्म से होना चाहिए। ' लेकिन शांता कुमार की बात का मर्म समझे बगैर कुछ विघ्नसंतोषियों ने यह चर्चा भी सोशल मीडिया पर की कि शांता कुमार का भाषण ब्राह्मण विरोधी रहा।

यही समय है कि जातिवाद की कुरीति पर रोने के बजाय, उसकी समाप्ति के लिए कदम उठाए जाएं। और यह कदम समाज की बड़ी इकाइयों से लेकर सबसे छोटी इकाई यानी मनुष्य को उठाने हैं। अखंड भारत का सपना जातिगत भेदभाव या जातिवाद की संकरी गलियों से नहीं निकलता। इसके लिए सबको अपने अहं छोड़ कर खुले में आना होगा।


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