देखरेख के अभाव में खंडहर हो रहा राष्ट्रीय महत्व का स्थान कालेश्वर महादेव
कांगड़ा जिला के कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर को देश के राष्ट्रीय महत्व के स्थान के रूप में आंककर इसके जीर्णोद्वार की बात कही हो लेकिन सच यह है कि पांडव काल का हजारों साल पुराना यह विख्यात स्थान सरकारी तथा प्रशासनिक लापरवाही के कारण खंडहर बनता जा रहा है।
ज्वालामुखी, प्रवीण कुमार शर्मा। बेशक केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने कांगड़ा जिला के कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर को देश के राष्ट्रीय महत्व के स्थान के रूप में आंककर इसके जीर्णोद्वार की बात कही हो, लेकिन सच यह है कि पांडव काल का हजारों साल पुराना यह विख्यात स्थान सरकारी तथा प्रशासनिक लापरवाही के कारण खंडहर बनता जा रहा है। समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब देश के लाखों लोगों की श्रद्धा का यह स्थान अपनी पहचान गवा देगा।
खंडहर हो रहे हैं प्राचीन मंदिर
कालेश्वर महादेव मंदिर के साथ लगते कई छोटे मंदिर जिन्हें पांडवों द्वारा निर्मित बताया जाता है। धीरे धीरे अपना मूल स्वरूप गवा रहे हैं। कई स्थान ऐसे हैं जो बिना देखरेख तथा रखरखाव के तहस नहस हो चुके हैं। प्राचीन मूर्तियां खंडित हो रहीं हैं तो गंदगी के अंबार राष्ट्रीय महत्व के इस स्थान के माथे पर कलंक बनकर उभर रहे हैं। मंदिर के संत समाज तथा सरकार की खींचातानी के बीच महादेव की यज्ञ शालाओं में आवारा कुत्ते राख स्नान करते देखे जा सकते हैं।साधुओं की प्राचीनतम गुफाओं में समाज के ही बिगड़ैल लोग नशे के केंद्र बनाए हुए हैं।
मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जे
पांडव काल में बने कालीनाथ कालेश्वर मंदिर की दुर्गति देखिए कि सैंकड़ों कनाल जमीन के मालिक इस मंदिर की कई कनाल भूमि पर भू माफिया ने न केवल कब्जा कर लिया बल्कि मिलीभगत के साथ बड़ी ही चालाकी के साथ रिहायशी मकान तक बना लिए हैं।
ये है मंदिर का इतिहास
कालीनाथ कालेश्वर महादेव का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। जालंधर दैत्य तथा अन्य आसुरी शक्तियों के उत्पात से रक्षा की खातिर ऋषि मुनियों तथा देवताओं के आग्रह पर मां काली ने यहां दैत्यों का वध किया। मां काली का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो भगवान शिव ने उनके आगे लेटकर उन्हें शांत करने की कोशिश की। मां का पैर भगवान शिव से लग जाने पर काली शांत तो हुई पर उन्होंने प्रायश्चित के तौर पर सैंकड़ों वर्ष इसी स्थान पर शिव की आराधना की। इसके बाद ही शिव ने उन्हें दर्शन देकर शिव लिंग की स्थापना की। जिसे काली तथा नाथ कालीनाथ का नाम दिया गया। यहां शिव की पिंडी जमीन के भीतर है जिस पर पैर का निशान आज भी देखा जा सकता है।
प्राचीनता की गवाह है पंचतीर्थी
कालीनाथ कालेश्वर महादेव साथ लगती पंचतीर्थी इस मंदिर की प्राचीनता का एक और जीवंत उदाहरण है। अपने बनवास काल के दौरान पांडवों ने प्रयागराज, उज्जैन, नासिक, हरिद्वार तथा रामेश्वरम से अपने हाथों बनाए गए सरोवर में पांच तीर्थों का पानी डाला था। सरोवर में हमेशा जल रहे इसके लिए तीर से निकाली गई पानी कि धारा आज भी हजारों सालों से अनवरत बह रही है।
2017 में हुआ अधिग्रहण
कालेश्वर मंदिर का 2017 में सरकारी अधिग्रहण हुआ। लेकिन इससे भी मंदिर का विकास नहीं हुआ। मंदिर पर अपने प्रभुत्व की खातिर संत उच्चतम न्यायालय की शरण में हैं। मंदिर की हालत पर दोनों पक्षों का टकराव भविष्य में धार्मिक पर्यटन के इस प्रसिद्ध स्थान की राह में रोड़ा बना रहेगा इनकार नहीं किया जा सकता।
क्या कहते हैं संत
मंदिर के संत स्वामी विश्वानंद कहते हैं कि प्राचीन धरोहरों के रखरखाव का जिम्मा सरकार का बनता है। सरकारी अधिग्रहण के बाद भी मंदिर से संत समाज का माकूल हिस्सा उन्हें नहीं दिया जाता रहा। उन्होंने तो पूजा पद्धति के लिए भी उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया जहां से उन्हें मंदिर की आय से जितना बना सामाजिक उत्थान के लिए कार्य किया है।
यहां आज भी चलता है गुरुकुल
स्वामी विश्वनाथ के अनुसार कई सालों से 40 गायों की गोशाला चलाते हैं। यहां आने वालों के लिए लंगर की व्यवस्था उनकी है ना कि सरकार की। यहां देश के कई राज्यों से तीन से 10 साल के 10 बच्चे हमारे द्वारा चलाए जा रहे गुरुकुल में वैदिक शिक्षा ले रहे हैं। यह बच्चे चित्रकूट से कांची शंकराचार्य शंकर मठ से यहां वैदिक शिक्षा के लिए भेजे गए हैं।
निरंजनी अखाड़े के संत हैं मंदिर के साधु
कालेश्वर महादेव के संत निरंजनी अखाड़े के साधु हैं। यहां पर 150 संतों की समाधियां प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि निरंजनी अखाड़ा डेढ़ सदी से प्रत्यक्ष तौर पर मंदिर की पूजा पद्धति को संभाले हुए है। अखाड़े के पास कालेश्वर में 120 कनाल अपनी भूमि है।
तहसीलदार एवं मंदिर अधिकारी रक्कड़ अमित शर्मा ने कहा कि मंदिर में सफाई को लेकर हम सजग हैं। जहां पर कुत्ते लेट रहे हैं वे यज्ञ शाला मंदिर की है। लेकिन यज्ञ शाला में गेट ना होने की वजह से ऐसा हुआ होगा। हम बहुत जल्द वहां गेट लगवा रहे हैं। प्रशासन तथा अखाड़े के कई मठ न्यायालय में हैं। हम अभी ढांचे से हाथ भी नहीं लगा सकते। जहां सुधार की गुंजाइश होगी बहुत जल्दी की जाएगी।