Womens Day: सनातन संस्कृति व परंपराओं की संवाहक नारी, महिला दिवस पर राज्यपाल ने दिया संदेश
International Womens Day जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। नारी यानी दिव्य स्वरूप प्रेम करुणा दया की प्रतिमूॢत दिव्य शक्ति व शुभ का सूचक... इत्यादि। नारी कई रूपों में मौजूद है। माता बहन बेटी पत्नी मतलब सृष्टि की कल्पना नारी के बिना अधूरी है।
धर्मशाला, बंडारू दत्तात्रेय। International Womens Day, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। नारी यानी दिव्य स्वरूप, प्रेम, करुणा, दया की प्रतिमूॢत, दिव्य शक्ति व शुभ का सूचक... इत्यादि। नारी कई रूपों में मौजूद है। माता, बहन, बेटी, पत्नी मतलब सृष्टि की कल्पना नारी के बिना अधूरी है। नारी सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक होने के साथ सनातन संस्कृति एवं परंपराओं की संवाहक कही गई है। वैसे तो महिलाओं को प्रेरित करने के लिए खास दिन की जरूरत नहीं पडऩी चाहिए। देश व दुनिया में जो परंपराएं रही हैं, उसमें महिलाओं को क्षमता रहित समझकर नारी की सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता से वंचित होना पड़ता है। इतिहास गवाह है कि नारी ने हमेशा से परिवार संचालन का उत्तरदायित्व संभालते हुए समाज निर्माण में योगदान दिया है। राष्ट्र की प्रगति व सामाजिक स्वतंत्रता में शिक्षित महिलाओं की भूमिका उतनी ही अहम है जितनी कि पुरुषों की। महिला दिवस पर होने वाले कार्यक्रम महिलाओं के उत्थान की दिशा में तेजी से कार्य करने में मदद करते हैं।
भारत की सभ्यता व संस्कृति में नारी सम्मान को प्रमुखता दी गई। प्राचीन ग्रंथ स्पष्ट करते हैं कि प्राचीन भारत में महिलाओं को ज्यादा आजादी थी। उस समय महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था। अरुंधती (महॢष वशिष्ठ की पत्नी), लोपामुद्रा (महॢष अगस्त्य की पत्नी) अनुसूया (महॢष अत्रि की पत्नी) आदि नारियां ईश्वरीय प्रतिभा की साक्षात स्वरूप थीं। पतंजलि और कात्यायन जैसे प्राचीन भारतीय व्याकरणविदों का कहना है कि प्रारंभिक वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी। ऋग्वेद की ऋचाएं बताती हैं कि महिलाओं की शादी परिपक्व उम्र में होती थी और संभवत: उन्हें पति चुनने की भी आजादी थी। ऋग्वेद और उपनिषद जैसे ग्रंथ कई महिला साध्वियों और संतों के बारे में बताते हैं जिनमें गार्गी और मैत्रेयी के नाम उल्लेखनीय हैं। रामायण में माता सीता और महाभारत में महारानी द्रौपदी नारी शक्ति की प्रतीक हैं।
मध्यकाल में महिलाओं की स्थिति में गिरावट आनी शुरू हो गई। मुगलों व बाद में गुलामी के दौर में महिलाओं की आजादी और अधिकारों को सीमित कर दिया। माना जाता है कि बाल विवाह की प्रथा छठी शताब्दी के आसपास शुरू हुई थी। भारत पर विदेशी आक्रांताओं के बाद तो हालात बद से बदतर हो गए। इसी समय पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह, सती-प्रथा, जौहर और देवदासी जैसी घृणित धाॢमक रूढिय़ां प्रचलन में आईं।
अंग्रेजी शासन ने महिलाओं की स्थिति को सुधारने के विशेष प्रयास नहीं किए, लेकिन 19वीं शताब्दी के मध्य में उपजे अनेक धाॢमक सुधारवादी आंदोलनों जैसे ब्रह्म समाज (राजा राम मोहन राय), आर्य समाज (स्वामी दयानंद सरस्वती), थियोसोफिकल सोसाइटी, रामकृष्ण मिशन (स्वामी विवेकानंद), ईश्वरचंद्र विद्यासागर (स्त्री-शिक्षा), महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले (दलित स्त्रियों की शिक्षा) आदि ने महिलाओं के हित में कार्य किया। समय के साथ मानवीय विचारों में बदलाव आया है। कई पुरानी परंपराओं, रूढि़वादिता एवं अज्ञान का समापन हुआ है। घर के चूल्हे से बाहर महिलाएं अब कदम से कदम मिलाकर सभी क्षेत्रों में उपस्थिति दर्ज कर रही हैं। अंतरिक्ष हो या प्रशासनिक सेवा, शिक्षा, राजनीति, खेल, व्यवसाय, साहित्य, सेना व मीडिया में प्रत्येक जिम्मेदारी के पद को संभालने लगी हैं। आवश्यकता है यह समझने की कि नारी विकास की केंद्र है। मानव और मानवता दोनों को बनाए रखने के लिए नारी के गौरव को समझना होगा।
बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु, साइना नेहवाल और टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा की खेल जगत में उपलब्धियां हमारे सामने हैं। मुक्केबाज मैरी कॉम तथा अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी मिताली राज समाज के लिए उदाहरण हंै। पिछले छह वर्ष में सेना में महिलाओं की लगभग तीन गुना वृद्धि हुई है। वर्तमान में सेना, नौसेना और वायु सेना में 9,118 महिलाएं सेवारत हैं। चिकित्सा विंग को छोड़कर सेना में 6,807 महिला अधिकारी, वायु सेना 1,607 और नौसेना 704 महिला अधिकारी हैं। हमें भूले नहीं हैं कि भारतीय नौसेना की छह महिला अधिकारियों की एक टीम ने दुनिया का भ्रमण किया था। केवल महिलाओं द्वारा संचालित यह दल दुनिया की पहली भारतीय संसार जलयात्रा थी। इस दल में हिमाचल की बेटी प्रतिभा जंवाल भी शामिल थीं। पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम के बाद डॉ. टेसी थॉमस ने कई मिसाइलों का आविष्कार किया, जिससे भारत की मिसाइलों को पांचवां स्थान हासिल हुआ। उन्होंने भारत की 'अग्नि पुत्रीÓ कहा जाता है। वह ऐसी महिला वैज्ञानिक थीं, जिन्होंने सारा जीवन भारत की अग्नि मिसाइलों के विकास में लगा दिया।
राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2019 में प्रतिदिन दुष्कर्म के औसतन 87 मामले दर्ज हुए और साल भर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,05,861 मामले दर्ज हुए, जो 2018 की तुलना में सात प्रतिशत अधिक हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में लिंगानुपात 943 है, जिसके मुकाबले हिमाचल का लिंगानुपात 974 है। जब महिलाओं पर इस तरह के अत्याचार बढ़ते हैं तो समाज का सिर झुकता है। इस पर केंद्र व राज्य सरकारों को कड़े निर्णय लेने चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण है महिला सशक्तीकरण। शिक्षा से और सशक्त बनाना। विशेषकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग व उपेक्षित वर्ग तक गुणात्मक शिक्षा का प्रसार हो। महिलाओं के स्वयं सहायता समूह विकसित किए जाएं और उन्हेंं उद्यमिता की दिशा में आगे बढ़ाया जाए। हर क्षेत्र में समान अवसर दिए जाएं। भारत सरकार महिला सशक्तीकरण के लिए कई योजनाएं कार्यान्वित कर रही है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, बेटी बढ़ाओ, उज्ज्वला योजना, महिला शक्ति केंद्र, महिला हेल्पलाइन योजना तथा पंचायती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण इत्यादि। साल 2019 मुस्लिम महिलाओं की आजादी का गवाह बना। तीन तलाक कानून के चलते अब कोई मुस्लिम पुरुष एसएमएस से, फोन पर, चिट्ठी लिखकर, वाट्सएप व फेसबुक से तलाक नहीं दे सकता।
मुझे स्मरण है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व में श्रम मंत्री के रूप में मेरे मंत्रालय ने महिलाओं को समान वेतन का अधिकार दिया। प्रसूति अवकाश का लाभ जो कानूनन 12 हफ्ते का था, उसे 26 हफ्ते किया। यह अंतरराष्ट्रीय मानकों से ज्यादा था। मोदी सरकार ने रात्रि शिफ्ट में कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षा व परिवहन की व्यवस्था को कानूनी तौर पर अमलीजामा पहनाया। कस्तूरबा बालिका विद्यालयों के लिए अलग से व्यवस्था की गई। (लेखक हिमाचल के राज्यपाल हैं)