अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस: चाय उत्पादन में उछाल लाई अप्रैल की गर्मी, इतनी अधिक हुई पैदावार
International Tea Day हिमाचल प्रदेश में इस बार अप्रैल तोड़ चाय की खूब महक बिखरी है। लोगों की पहली पसंद अप्रैल तोड़ चाय का उत्पादन पिछले वर्ष के मुकाबले साढ़े तीन गुणा से ज्यादा हुआ है। पिछले साल अप्रैल तोड़ चाय की पैदावार 51 हजार किलो हुई थी।
पालमपुर, कुलदीप राणा। International Tea Day, हिमाचल प्रदेश में इस बार अप्रैल तोड़ चाय की खूब महक बिखरी है। लोगों की पहली पसंद अप्रैल तोड़ चाय का उत्पादन पिछले वर्ष के मुकाबले साढ़े तीन गुणा से ज्यादा हुआ है। पिछले साल अप्रैल तोड़ चाय की पैदावार 51 हजार किलो हुई थी, जबकि इस बार यह आंकड़ा एक लाख 80 हजार किलो तक पहुंच गया। उत्पादकों को अप्रैल तोड़ चाय के दाम भी अच्छे मिलते हैं।
प्रदेश में बड़े चाय उत्पादकों ने 1.68 लाख किलो, जबकि छोटे उत्पादकों ने 12 हजार किलो अप्रैल तोड़ चाय तैयार की। इस बार मौसम गर्म रहा, जो चाय उत्पादन के लिए अनुकूल माना जाता है। इस साल मार्च और अप्रैल में चाय उत्पादन दो लाख आठ हजार किलो हो चुका है। ऐसे में यह साल चाय उत्पादकों के लिए फायदेमंद रहेगा। हालांकि 1998-99 में रिकार्ड 17,11,242 किलो चाय का उत्पादन हुआ था।
क्यूआर कोड बनेगा, आर्थिक सहायता मिलेगी
टी बोर्ड आफ इंडिया ने कांगड़ा चाय को बढ़ावा देने एवं लघु उत्पादकों को प्रोत्साहित करने के लिए योजना तैयार की है। इसके तहत किसान समूहों को आर्थिक सहयोग देकर मशीनरी खरीद में मदद की जाएगी। चाय उत्पादकों को मिलने वाले अनुदान के लिए क्यूआर कोड बनाया अनिवार्य किया है। इसके लिए चाय बगान मालिक को आधार कार्ड, किसान पासबुक व जमीन का पर्चा लाना होगा।
अप्रैल बड्स का जवाब नहीं
कांगड़ा चाय की मांग हर सीजन में बनी रहती है। हालांकि अप्रैल तोड़ के नाम से चाय की मांग अधिक रहती है। चाय पत्ती को साल में चार मौसम के आधार पर तोड़ा जाता है। अक्टूबर से मार्च तक तापमान कम रहता है। मार्च-अप्रैल में तापमान बढऩे के समय तैयार हुए टी बड्स ज्यादा फायदेमंद होते हैं। इस समय जमीन में अधिक मात्रा में न्यूट्रीयंट््स होने का लाभ चाय पेड़ों को मिलता है। मार्च तक उत्पादन कम होता है, लेकिन अप्रैल में बढ़ जाता है। इस समय तैयार होने वाली हरी पत्ती में पालीफिनोल की अधिक मात्रा होती है, जो अप्रैल तोड़ चाय की गुणवत्ता और महक बढ़ाने में अहम होता है। तुड़ान किसी भी मौसम में हो, चाय के पेड़ के सबसे ऊपर वाली एक कली और उसके साथ की दो पत्तियां ही कारगर होती हैं। यदि सारी पत्तियों को तोड़ कर उन्हें प्रक्रिया से गुजारा जाएगा तो स्वाद कम हो जाता है, चाय की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
इस बार अप्रैल तोड़ चाय का आंकड़ा पौने दो लाख किलो से अधिक रहा है। क्षेत्र के छोटे व बड़े उत्पादकों के प्रयास से 1.80 लाख किलो चाय तैयार हुई है। पूरे साल प्रदेश में चाय की पैदावार का ग्राफ बढऩे की संभावना है।
-अभिमन्यु शर्मा, डिप्टी डायरेक्टर, टी बोर्ड आफ इंडिया।
श्रीलंका संकट से कांगड़ा चाय को मिलेगा बाजार
संवाद सहयोगी, बैजनाथ : दुनिया में चाय निर्यात में अहम भूमिका निभाने वाले श्रीलंका में चल रही आर्थिक मंदी से कांगड़ा चाय को फिर से बाजार मिलने की उम्मीद जगी है। ऐसा नहीं है कि कांगड़ा चाय की विदेश में धमक नहीं रही है। एक समय में कांगड़ा चाय की कई देशों में सबसे अधिक मांग रहती थी। लेकिन अच्छी मार्केटिंग न होने से कांगड़ा चाय उद्योग लगातार पिछड़ता गया। हालांकि कुछ साल से कांगड़ा चाय का उत्पादन बढऩे लगा है। पहले कांगड़ा चाय से जुड़े कारोबारी केवल कोलकाता के बाजार पर ही निर्भर थे। चाय के बाजार में ठहराव आ गया था। अब जबकि श्रीलंका में संकट आया है तो स्थानीय कारोबारी भी चाय को विदेश भेजने के लिए आगे आ रहे हैं। पहले चाय उत्पादकों ने निर्यात लाइसेंस नहीं लिए थे, लेकिन कुछ समय से काफी व्यवसायी ऐसा कर रहे हैं। इनमें छोटे चाय उत्पादकों का आंकड़ा भी बढ़ा है। कांगड़ा चाय के उत्पादन में काफी युवा जुड़े हैं, जिनके परिवार का काफी दशक से यह कारोबार था। चाय की किस्में भी बढ़ाई गई हैं।
टी बोर्ड आफ इंडिया के पालमपुर में डिप्टी डायरेक्टर अभिमन्यु शर्मा का मानना है कि कांगड़ा चाय को नई दिशा मिलने शुरू हो गई है। श्रीलंका में पैदा हुए हालात से निश्चित रूप से भारत की चाय की मांग बढ़ेगी। हालांकि कांगड़ा चाय की मार्केट में श्रीलंका की आर्थिक मंदी से पहले से ही उछाल आया है। चाय उत्पादक अब निर्यात लाइसेंस ले रहे हैं।