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International mother language day 2019 : युवाओं में सिकुड़ रही मातृभाषा की जमीन

International mother language day 2019 हिमाचल में करीब सौ युवाओं के साथ हुई बातचीत के आधार पर चिंताजनक तथ्य यह आया कि मातृभाषा को बोलने में एक बड़ा वर्ग शर्म महसूस करता है।

By BabitaEdited By: Published: Thu, 21 Feb 2019 10:26 AM (IST)Updated: Thu, 21 Feb 2019 10:26 AM (IST)
International mother language day 2019 : युवाओं में सिकुड़ रही मातृभाषा की जमीन
International mother language day 2019 : युवाओं में सिकुड़ रही मातृभाषा की जमीन

धर्मशाला, जेएनएन। International mother language day 2019 मातृभाषा दिवस है आज। मातृभाषा यानी मां के दूध के साथ जो भाषा रगों में दौड़ती है। कुछ मातृभाषा वास्तव में भाषा होती है और कुछ की भाषा को बोली कहा जाता है। दैनिक जागरण ने मोटे तौर पर एक सर्वेक्षण शैक्षणिक संस्थानों में करवाया। यह जानने के लिए कि हिमाचल की बोलियों या पहाड़ी भाषा जिसे कहते हैं, वह नई पीढ़ी में कितनी है। नई पीढ़ी में उसके प्रति कितना अनुराग बचा है। मां बोली के लिए प्रेम बचा है लेकिन वह कहने में है, करने में नहीं। यही कारण है कि मां बोली की जमीन सिकुड़ रही है।

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प्रदेशभर में करीब सौ युवाओं के साथ हुई बातचीत के आधार पर चिंताजनक तथ्य यह आया कि मातृभाषा को बोलने में एक बड़ा वर्ग शर्म महसूस करता है। इसके साथ ही दूसरा तथ्य कुछ राहत देने वाला यह सामने आया कि हिंदी की स्वीकार्यता और बढ़ी है। हिमाचल प्रदेश हिंदी भाषी राज्य है, इसलिए यह तथ्य सहज है। तीसरा तथ्य यह सामने आया कि अंग्रेजी भी मातृभाषा में घुलमिल गई है। सबसे त्रासद पक्ष यह है कि मातृभाषा, हिंदी और अंग्रेजी आपस में इस कदर घुल मिल गई हैं कि भाषा का कोई एक स्वरूप नहीं बनता। यही तथ्य सर्वाधिक चिंताजनक है।

चंबा में चंबयाली, बिलासपुर में कहलूरी, सोलन में बघाटी, कांगड़ा में कांगड़ी और कुल्लू में कुल्लवी के प्रति मोह अवश्य दिखा लेकिन ये वही बोलियां हैं जो अब घरेलू बातचीत से भी गायब हो रही हैं। बातचीत सहज हो, इसके लिए युवाओं को हिंदी और  अंग्रेजी का सहारा लेने की आवश्यकता पड़ती है, यह साफ दिखाई दिया। इससे यह संकेत भी दिखता है कि क्या पहाड़ी की अपनी शब्द संपदा क्या इतनी कमजोर हो गई है कि अन्य भाषाओं का सहारा लिए बिना बात जमती नहीं है? 

यह भी संयोग रहा कि को छोड़ कर किसी भी क्षेत्र के युवा अपने क्षेत्र के पहाड़ी लेखकों को नहीं जानते हैं और न उन्हें किसी किताब का पता है। चंबा से लेकर शिमला तक पहाड़ी गायकों के बारे में सब अधिकतम युवा जानते हैं। साफ है कि बोलियों या स्थानीय भाषा में लिखा जा रहा साहित्य युवाओं तक नहीं पहुंच रहा है। जाहिर है, इसकी उन्हें व्यावहारिक रूप से कोई जरूरत महसूस नहीं होती। भाषाओं को जिंदा रखने में गायकों और कलाकारों की भूमिका एक बार सामने आई है। यह वैसा ही है जैसा सिने जगत या गायक हिंदी की सेवा अधिक कर पाए हैं।

क्या किया जा सकता है

  •  बेशक प्रतियोगी मोर्चों पर पहाड़ी भाषा की युवाओं को आवश्यकता नहीं है फिर भी बोलियां उजड़ न जाएं, यह सामूहिक दायित्व है।  
  • पहाड़ी हिमाचली के लिए जो प्रेम लेखक वर्ग में है, उसे आम आदमी का समर्थन मिलना आवश्यक है।
  •   पहाड़ी में लिखे जा रहे साहित्य को आम जन तक जोर शोर से पहुंचाया जाना चाहिए।
  •  भाषा एवं संस्कृति विभाग को खुले में संगोष्ठियां आयोजित करनी चाहिए, जिसमें युवाओं का प्रतिनिधित्व प्रभावी हो।
  •  हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पहाड़ी साहित्य में स्नातकोत्तर का जो सिलसिला अटका पड़ा है, उसे गति देनी चाहिए।
  •  भाषाओं (मातृभाषा ही नहीं, कोई भी भाषा) के प्रति लगाव उत्पन्न करने को दायित्व समझें अभिभावक। 

पूछे गए सवाल

  • आप घर में किस भाषा का प्रयोग करते हैं?
  •  आप के नजदीक सबसे प्रिय भाषा कौन सी है?
  •   अपनी मां बोली में पढ़ी हुई किसी किताब के बारे में जानते हैं
  •  क्या आप अपनी मां बोली के किसी लेखक को जानते हैं ?
  •   बाकी बोलियों और भाषाओं की तुलना में आप अपनी मां बोली को कहां पाते हैं? 

किनसे पूछे गए सवाल

शिमला, सोलन, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा, चंबा, मंडी, कुल्लू और ऊना के शैक्षणिक संस्थानों के दस-दस विद्यार्थियों से।


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