Move to Jagran APP

सिरमौर के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जीवंत है नाल बडिय़ां लगाने की परंपरा, जानें क्या है प्रथा

सिरमौर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोगों ने पारंपरिक रीति-रिवाज और प्रथाएं को संजो कर रखी हैं जिसमें एक है नाल बडिय़ां (डंडी) लगाने की प्रथा। जहां एक ओर हमारे पारंपरिक रीति-रिवाज और प्रथाएं समाप्त हो रही हैं वहीं कुछ ही ग्रामीण क्षेत्रों में प्रथाएं शेष हैं।

By Virender KumarEdited By: Published: Sun, 28 Nov 2021 09:32 PM (IST)Updated: Sun, 28 Nov 2021 09:32 PM (IST)
सिरमौर के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जीवंत है नाल बडिय़ां लगाने की परंपरा, जानें क्या है प्रथा
सिरमौर जिला के ग्रामीण क्षेत्र मेंं बनाई गए नाल बडिय़ां। जागरण

नाहन, जागरण संवाददाता। सिरमौर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोगों ने पारंपरिक रीति-रिवाज और प्रथाएं को संजो कर रखी हैं, जिसमें एक है नाल बडिय़ां (डंडी) लगाने की प्रथा। आधुनिकता की इस चकाचौंध में जहां एक ओर हमारे पारंपरिक रीति-रिवाज और प्रथाएं समाप्त हो रही हैं, वहीं कुछ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रियासत कालीन पारंपरिक प्रथाएं शेष रह गई है।

loksabha election banner

सिरमौर रियासत के समय में हर क्षेत्र में लगने वाली नाल बडिय़ां, जिन्हेंं कई जगहों पर डंडी भी कहा जाता है। इसके आयोजन की प्रथा वर्तमान में बहुत कम हो गई है। जिला में कुछ क्षेत्र ही ऐसे बचे हैं जहां इसे मनाने और लगाने का क्रम आज भी जारी है। धारटीधार, सैनधार और पच्छाद क्षेत्र में आज भी नाल बडिय़ां लगाई जाती हैं। बुजुर्गों के अनुसार, पुराने समय में यह कार्यक्रम बड़े धूमधाम से मनाया जाता था। आज इसकी जगह मोबाइल फोन, टीवी और अन्य मनोरंजन के साधनों ने ले ली है। बुजुर्ग विद्या देवी, कांता देवी व लाजवंती देवी बताती हैं कि यह आयोजन मार्गशीर्ष की सन्क्रांति से शुरू होता है और पूरे महीने चलता है। पूरे गांव में हर घर में बारी-बारी से इसका आयोजन किया जाता है।

उन्होंने बताया कि पहले इस कार्यक्रम का आयोजन बहुत शानदार ढंग से होता था। पूरे गांव को आयोजन के लिए आमंत्रित किया जाता था। शाम के समय गांव की सारी महिलाएं एकत्रित होकर इन्हें लगाती थी। इस दौरान पौराणिक गीत भी गाए जाते थे। दावत अनुसार लोगों को उबली हुई मक्की शकर के साथ, कोलथी व गेहंू का मूड़ा खाने को दिया जाता था। वर्तमान में मक्की, गेहंू व कोलथी का मुड़ा नहीं बनाया जाता। अब इसके स्थान पर काले चने व अन्य सामग्री लोगों में बांटी जाती है। इसके अलावा चायपान की व्यवस्था की जाती है। जिस घर में नाल बडिय़ां लगाने का कार्यक्रम होता है, नाल बडिय़ा लगाने के बाद महिलाओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इसमें हमारे पारंपरिक गीत, पहाड़ी कल्चर और स्वांग आदि किए जाते हैं। लोग इस आयोजन का भरपूर आनंद उठाते थे। वर्तमान में ऐसे आयोजनों का प्रचलन बहुत कम हो गया है। पहले की तरह अब लोग इसमें इतनी दिलचस्पी भी नहीं लेते हैं।

क्या है नाल बडिय़ां (डंडी)

उड़द, चना सहित अन्य दालों को पीसा जाता है। फिर इसे आटे की तरह गूंथा जाता है। इसके बाद अरबी के डंडियों में इस गूंथे हुए मिक्चर की पुताई की जाती है। इसे एक रस्सी में टांगा जाता है। दूसरे दिन इन्हें छोटे-छोट पीसों में काटकर सुखाया जाता है। करीब एक सप्ताह तक सुखाने के बाद इसे सुरक्षित रख दिया जाता है। इस तरह से यह एक स्वादिष्ट खाद्य व्यंजन तैयार हो जाता है। खासकर मेहमाननवाजी के लिए इस व्यंजन को परोसा जाता है। बुजुर्गों के अनुसार यह एक स्वादिष्ट और गुणकारी खाद्य सामग्री है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.