चिंतपूर्णी क्षेत्र के सात गांवनुमा बाजार की पहचान वट वृक्ष के नाम
पर्यावरण संरक्षण व बरगद के पौधे रोपने का बेहतरीन उदाहरण देखना हो तो कभी भरवाईं से जौड़बड़ तक का सफर करें। यहां कुछ मील की दूरी पर सात गांवनुमा बाजार हैं। सभी बाजार के नाम में बड़ शब्द आता है।
नीरज पराशर, चिंतपूर्णी। पर्यावरण संरक्षण व बरगद के पौधे रोपने का बेहतरीन उदाहरण देखना हो तो कभी भरवाईं से जौड़बड़ तक का सफर करें। यहां कुछ मील की दूरी पर सात गांवनुमा बाजार हैं। सभी बाजार के नाम में बड़ शब्द आता है। बाबे दी बड़, फाह बड़, जल्लो दी बड़, प्राढ़ बड़, कैलू दी बड़, कालू दी बड़ और जौड़बड़। बड़ यानी बरगद या वट का वृक्ष।
इन बाजारों का नामकरण ही इन वट वृक्षों के कारण हुआ था। इन बाजारों में कभी बुजुर्गों ने बरगद के पौधे लगाए थे और जिन बुजुर्गों ने ये पौधे लगाए उन्हीं से बाजार का नाम भी हो गया। इनमें से कई बरगद के पेड़ 200 साल से अधिक भी पुराने थे। पांच वर्ष पूर्व चिंतपूर्णी के माल रोड पर वट वृक्ष तेज आंधी से गिर गया था तो कालू दी बड़ और जौड़बड़ में दो दशक पहले ही ये पेड़ खत्म हो गए मगर अब नए पेड़ लगाए जा रहे हैं। जल्लो दी बड़ और बाबे दी बड़ में वट वृक्ष आज भी कायम हैं।
राहगीर इन पेड़ों के नीचे बैठकर मिटाते थे थकान
बुजुर्ग बालकृष्ण, तेज लाल व होशियार सिंह बताते हैं कि जब परिवहन सुविधाओं का अभाव था तो राहगीर इन पेड़ों के नीचे ही विश्राम करते थे और स्थानीय लोग भी वहां पानी की छबीलें लगाते थे। अब कई जगह पर ग्रामीणों ने खुद ही बरगद के पौधे रोपने शुरू कर दिए हैं। चिंतपूर्णी के तलवाड़ा बाईपास पर स्थानीय वासियों ने बरगद का पौधा रोपा था जोकि अब पेड़ बनता जा रहा है। इसके अलावा धर्मसाल महंता गांव में शीतला रोड पर भी बुजुर्ग दीदार सिंह ने बरगद का पौधा लगाया था। कई बार इस पौधे को बेसहारा पशु भी खाते रहे, लेकिन दीदार ने पौधे का लगातार संरक्षण जारी रखा और पानी भी देते रहे। दीदार के प्रयास रंग लाए और अब यह पौधा भी पेड़ बनने की ओर अग्रसर है। पुष्पेन्द्र और हरभजन ने भी अपनी जमीन में बरगद के पौधे रोपे हैं।
वन विभाग दे पौधे
स्थानीय निवासी अनुज शर्मा, सोमदत्त, पुष्पेन्द्र और राज कुमार ने बताया कि अगर वन विभाग बरगद के नए पौधे उपलब्ध करवाए तो वे आने वाले बरसात के मौसम में इन्हें रोपेंगे। उन्होंने प्राचीन पेड़ों के संरक्षण की मांग पंचायत प्रतिनिधियों व स्थानीय प्रशासन से की है। वन विभाग भरवाईं के रेंज अधिकारी गिरधारी लाल ने बताया कि इस बार वन्य क्षेत्र में बरगद के पौधारोपण की व्यवस्था की जाएगी।
मंदिर न्यास बचा रहा प्राचीन पेड़ों को
मंदिर प्रशासन चिंतपूर्णी क्षेत्र में प्राचीन पेड़ों का संरक्षण कर रहा है। भरवाईं से लेकर शीतला मंदिर क्षेत्र तक सड़क किनारे लगभग सभी पीपल व बरगद के पेड़ों के इर्दगिर्द अटियाले लगा दिए गए हैं। नारी-ङ्क्षचतपूर्णी पंचायत में छह अटियाले बनाए गए हैैं जिससे प्राचीन पेड़ों का अस्तित्व बचा हुआ है। इसके अलावा रेही, मिरगू, तलवाड़ा बाईपास और बधमाणा रोड पर न्यास ने इस कार्य पर लाखों रुपये का अनुदान दिया है।