Move to Jagran APP

आनरेरी लेफ्टिनेंट बीरबल शर्मा बोले, फौजी के रूप में देश की माटी का चुकाया कर्ज

1971 Indo-Pak War 1971 के युद्ध में हिमाचल के कई योद्धाओं ने योगदान दिया है। भारत के विजय दिवस की 50वीं वर्षगांठ पर इन शूरवीरों के शौर्य की गाथा हर जगह गाई जा रही है। इन्हीं योद्धाओं में हमीरपुर जिले के पनसाई निवासी आनरेरी लेफ्टिनेंट बीरबल शर्मा भी हैैं।

By Virender KumarEdited By: Published: Thu, 16 Dec 2021 09:37 PM (IST)Updated: Thu, 16 Dec 2021 09:37 PM (IST)
आनरेरी लेफ्टिनेंट बीरबल शर्मा बोले, फौजी के रूप में देश की माटी का चुकाया कर्ज
सेना में तीसरी पीढ़ी : बायें से सूबेदार सुशील शर्मा, बीरबल शर्मा, कैप्‍टन अंकित शर्मा। जागरण

हमीरपुर, मनोज शर्मा।

loksabha election banner

1971 Indo-Pak War, भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध में हिमाचल के कई योद्धाओं ने योगदान दिया है। भारत के विजय दिवस की 50वीं वर्षगांठ पर इन शूरवीरों के शौर्य की गाथा हर जगह गाई जा रही है। इन्हीं योद्धाओं में हमीरपुर जिले के पनसाई निवासी आनरेरी लेफ्टिनेंट बीरबल शर्मा भी हैैं। खुशी के आंसू लिए बीरबल कहते हैं कि देश की माटी का कर्ज सभी पर होता है, एक फौजी के रूप में इसे चुकाने का उन्हें सुनहरा अवसर मिला।

बीरबल के दो पुत्र भी सेना में सेवाएं दे चुके हैैं। बड़े बेटे अजित नायब सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त होने बाद हिमाचल पुलिस में हैैं। एक पुत्र सुशील शर्मा हाल ही में सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हुए हैैं। देश सेवा का यह जज्बा तीसरी पीढ़ी में भी बरकरार है। इनका पोता यानी सुशील शर्मा का बेटा अंकित शर्मा बतौर कैप्टन सेवाएं दे रहा है।

आनरेरी लेफ्टिनेंट के पद से 1991 में सेवानिवृत्त हुए बीरबल शर्मा का कहना है कि 1971 में युद्ध के समय वह असम में मोर्चे पर तैनात थे। उनकी यूनिट 15 माउंटेन थी। उस समय उनका सेना में 11 वर्ष का कार्यकाल हुआ था। इस युद्ध से कुछ दिन पहले उन्हें घर छुट्टी आना था, लेकिन कमांडिंग आफिसर का आदेश आया कि किसी भी जवान को छुट्टी पर नहीं भेजा जाएगा। यह हमारा सौभाग्य है कि देश के लिए कुछ योगदान देने का अवसर मिला। बीरबल करते हैं कि उस दौरान भारी-भरकम हथियार हुआ करते थे, जिन्हें आसानी से उठाना भी मुमकिन नहीं होता था लक्ष्य भेदना तो दूर की बात थी। फिर भी जवान कभी हौसला नहीं हारते थे। वर्तमान में सेना अत्याधुनिक हथियारों से लैस हो रही है, यह देख खुशी होती है।

बताते हैं कि युद्ध समाप्त होने के बाद उनकी तैनाती अमृतसर स्थित वेस्टर्न कमांड में हुई। उन्हें नायब सूबेदार के पद पर पदोन्नत किया गया और युद्ध के दौरान उन्हें ईस्टर्न और वेस्टर्न स्टार दिए गए। पुरानी एलबम दिखाते हुए बीरबल की आंखों में वही जोश झलकता है जो सरहद पर तैनात एक फौजी की आंखों में दिखता है। तीसरी पीढ़ी के सेना में जाने के बारे में कहते हैं कि उन्हें खुशी है कि उनका पोता कैप्टन है। मैं तो हर माता-पिता से आग्रह करता हूं कि अपने बच्चों को सेना में भेजें।

1991 में बठिंडा से 10वीं कोर (आरटी) से सेवानिवृत्त हुए बीरबल अभी सुबह 5:00 बजे उठते हैं। सेना की तरह आज भी अनुशासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनके तीसरे बेटे का अपना कारोबार है। परिवार में पत्नी का भी सहारा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.