हिमाचल पर भी जस के सुरों का राज
अब सुरों की खनक कुछ मंद पड़ गई हैउदास पड़ी हैं हारमोनियम की श्रुतियां जिन्हें आदत हो गई थी उनके दैवीय कंठ की।
धर्मशाला,ऋचा राणा। अब सुरों की खनक कुछ मंद पड़ गई है, उदास पड़ी हैं हारमोनियम की श्रुतियां, जिन्हें आदत हो गई थी उनके दैवीय कंठ की। उदास बैठा है वो तबला, जो करता था उनके सुरों के साथ संगत, उसे अब किसी भी ताल में बजना नहीं है भा रहा। उनके न होने से मायूस पड़ गईं है रागों की वो स्वरलहरियां जो उनके कंठ से निकलती थीं तो यूं एहसास होता था जैसे संगीत का कोई समंदर बह रहा हो। यूं तो गाते बहुत से लोग हैं पर बहुत कम होते हैं जिनकी आवाज में ही भजन होता है। हुनर के साथ विनम्रता शख्सियत में चार चांद लगा देती थी। दरअसल जिसने भी पंडित जसराज की आवाज सुनी है उसके मन से जस के सुरों का रंग कभी नहीं उतर सकता, विश्वभर में मशहूर पंडित जसराज को शास्त्रीय संगीत को एक नया आयाम देने के लिए आने वाली पीढि़यां श्रद्धा से याद करेंगी।
हिमाचल याद करता है :
यह 1986 की बात है। शिमला के गेयटी थियेटर में राग जोग सुना कर गए थे पंडित जसराज। हिमाचल की वादियों में उनके सुरों की गूंज के वे लम्हे अब भी कई लोगों के मन में बैठे हैं। पद्म श्री से अलंकृत पहाड़ी चित्रकार विजय शर्मा बताते हैं, ' पंडित जी ने उस दिन राग जोग गाया था। क्या खूब समां बंधा था। भाषा और संस्कृति विभाग के निदेशक थे श्रीनिवास जोशी। उन्होंने मुझे इस कार्यक्रम के लिए तैनात किया था। पंडित जी की आवाज का जादू तो बाद में चला, उनके चेहरे के तेज को देख कर ही लोग आकर्षित हो गए थे।'
खुद में एक घराना जसराज :
पंडित जसराज का जन्म हरियाणा के हिसार में एक ब्राहमण परिवार में पंडित मोतीराम के घर पर हुआ,जो कि खुद भी बहुत उम्दा कलाकार थे। वैसे तो जसराज ने संगीत की शिक्षा मेवाटी घराना से ली थी, लेकिन राग रागिनियों पर जसराज की इतनी अच्छी पकड़ थी कि ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वह खुद में ही एक घराना थे।
उनकी आवाज में ही भजन था:
कहते हैं कुछ लोगों की आवाज में ही भजन होता है, पंडित जी की आवाज में भी वो ही बात थी, वो अपने हर राग की शुरूआत ' ओम नमो भगवते वासुदेवाय' से किया करते थे, जिसे सुनकर सुनने वाले किसी और ही जगत में चले जाया करते थे।
इन्हीं के नाम पर प्रचलित है जसरंगी जुगलबंदी गायन :
जसराज को वैसे तो हर राग में महारथ हासिल थी, लेकिन संगीत जगत को जसरंगी जुगलबंदी गायन इन्हीं की देन है, इस गायन में दो कलाकार एक राग में जुगबंदी करते हैं,और शास्त्रीय संगीत में ये गायन बहुत अधिक प्रसिद्ध भी हुआ।