Himachal Vidhan Sabha Dispute: माननीय! क्या शब्द और विचार समाप्त हो गए, जो बात हाथापाई पर आ गई
Himachal Vidhan Sabha Dispute हिमाचल प्रदेश विधानसभा में शुक्रवार को हुए प्रसंग को लज्जाजनक ही कहा जाएगा। इसके कई संदेशों में से कुछ तो बेहद स्पष्ट हैं। जैसे- कि शब्द चुक गए हैं... संवाद का स्थान अब आस्तीनें चढ़ाने की मुद्राओं ने ले लिया है
धर्मशाला, नवनीत शर्मा। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में शुक्रवार को हुए प्रसंग को लज्जाजनक ही कहा जाएगा। इसके कई संदेशों में से कुछ तो बेहद स्पष्ट हैं। जैसे- कि शब्द चुक गए हैं... संवाद का स्थान अब आस्तीनें चढ़ाने की मुद्राओं ने ले लिया है... वैचारिक दरिद्रता इस तरह अपने यौवन पर है कि अब बात विमर्श से निकल कर हाथापाई पर आ गई है। राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, मुख्यमंत्री और राज्यपाल के स्टाफ के साथ विधायकों द्वारा किया गया दुव्र्यवहार हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में एक स्याह पन्ने की प्रविष्टि है। यह भी विडंबना है कि वैचारिक बल दिखाने के स्थान पर कुछ लोगों ने शारीरिक बल दिखाना चाहा। शारीरिक दूरी जैसे शब्द विधानसभा के बाहर बने दृश्य में पिस ही गए थे।
मुकेश अग्निहोत्री, हर्षवर्धन चौहान, विनय कुमार, सुंदर सिंह ठाकुर और सतपाल रायजादा का बजट सत्र से निलंबन इसी घटनाक्रम की परिणति है। लगता नहीं कि पटाक्षेप हो गया है। पांचों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हो गई है। विपक्ष के नेता पद पर भी संशय के बादल दिख रहे हैं। हालांकि नेता प्रतिपक्ष मुकेश धक्कामुक्की का आरोप एक मंत्री और विधानसभा उपाध्यक्ष पर लगा रहे हैं।
नाराजगी अगर यह थी कि राज्यपाल ने भाषण को पढ़ा हुआ समझा जाए क्यों कहा तो क्या उसका अर्थ यह है कि उनका रास्ता रोका जाए, बदसुलूकी हो? यह कैसा वैचारिक मतभेद है जो सदन में सत्ता पक्ष के सामने नहीं बल्कि बुजुर्ग राज्यपाल पर जोर दिखाने में झलकता है? वास्तव में संवाद की अहमियत गुम हो रही है जबकि तर्क हों तो जिंदाबाद-मुर्दाबाद से आगे भी जहान होता है। जिन विषयों पर कांग्रेस चर्चा चाह रही थी, उनका रास्ता क्या राज्यपाल का रास्ता रोक कर निकलता है? महंगाई, गरीबी या बेरोजगारी के विषयों पर चर्चा सदन में होती है या राज्यपाल को गाड़ी में बैठने से रोक कर होती है? बात दलीय राजनीति की नहीं है, दुव्र्यवहार की है जिससे प्रदेश की शालीन परंपरा को दाग लगा है।
संयोगवश जिस स्थान पर खड़े होकर मुख्यमंत्री पत्रकारों को समूचा घटनाक्रम सुना रहे थे, वहां ठीक पीछे एक पट्टिका सूचना दे रही थी कि 27 अक्टूबर, 1988 को तत्कालीन उपराष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा यहां आए थे और उन्होंने इस 'पहाड़ी राज्य के लोकतंत्र की सफलताÓ के लिए कामना की थी।
वैसे, 21 अगस्त, 1925 को शिमला में वायसराय लार्ड रीडिंग ने सेंट्रल काउंसिल चैंबर का लोकार्पण किया था। वि_ल भाई पटेल सेंट्रल असेंबली के प्रथम प्रधान चुने गए, जिसे बाद में स्पीकर का नाम दिया गया। यही ऐतिहासिक काउंसिल चैंबर वर्तमान समय में हिमाचल प्रदेश की विधानसभा है.... जहां 2021 में प्रदेश के प्रथम नागरिक की गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास हुआ है। प्रदेश में आने वाले कुछ दिन इस प्रसंग के आलोक में और गर्म रह सकते हैं। आश्चर्य यही है कि सबके निशाने पर कोरोना से मुक्त होकर विकास की बात होनी चाहिए थी...ये मर्यादा, लोकतंत्र, सम्मान, शिष्टाचार, सभ्यता जैसे शब्द कैसे निशाने पर आ गए।