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हिमाचली स्वर कोकिला शांति बिष्ट नहीं रहीं, पंजाबी और तमिल भाषा में भी गाए हैं गीत; जानिए उनकी उपलब्धियां

Shanti Bisht Passed Away इस ग्राएं देया लंबड़ा ओ इन्हां छोरूआं जो लेयां समझाई... गाने से लाखों लोगों के दिलों पर राज करने वाली हिमाचल की लोक गायिका शांति बिष्ट का निधन हो गया।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 10:04 AM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 10:04 AM (IST)
हिमाचली स्वर कोकिला शांति बिष्ट नहीं रहीं, पंजाबी और तमिल भाषा में भी गाए हैं गीत; जानिए उनकी उपलब्धियां
हिमाचली स्वर कोकिला शांति बिष्ट नहीं रहीं, पंजाबी और तमिल भाषा में भी गाए हैं गीत; जानिए उनकी उपलब्धियां

शिमला/धर्मशाला, जेएनएन। इस ग्राएं देया लंबड़ा ओ, इन्हां छोरूआं जो लेयां समझाई... गाने से लाखों लोगों के दिलों पर राज करने वाली हिमाचल की लोक गायिका शांति बिष्ट का रविवार तड़के निधन हो गया। वह 74 वर्ष की थीं। रविवार को शिमला के कनलोग स्थित शमशानघाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया। शांति बिष्ट ने हिमाचली संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया। उन्हें हिमाचली स्वर कोकिला अवॉर्ड से भी नवाजा गया था। उनके निधन से साहित्य व लोक संगीत से जुड़े लोगों को गहरा झटका लगा है।

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करीब चार साल पहले उन्हें अधरंग हो गया था, जिसके बाद से वह बिस्तर पर ही थीं। हिमाचली गीतों के अलावा उन्होंने बंगाली, मराठी, पंजाबी और तमिल भाषा में भी गीत गाए हैं। उनका गाया गाना 'लाड़ा भूखा आया मैं खिचड़ी बनावां...Ó गीत भी खूब पसंद किया गया था।

बनाई थी अलग पहचान

74 वर्षीय शांति बिष्ट ने संगीत की दुनिया में खास पहचान बनाई। उनके गीतों को आज भी लोग सुनते हैं। उनका जन्म धर्मशाला के साथ लगते दाड़ी गांव में उमेद सिंह बसमेत व लीलावती के घर हुआ। जब डॉ. यशवंत सिंह परमार मुख्यमंत्री थे तो कांगड़ा के सांस्कृतिक दल की ओर से शिमला में प्रस्तुति दी जानी थी। इसमें वह भी मौजूद थीं। इसके बाद उनका संगीत का करियर शुरू हुआ। धर्मशाला से बीए, जेबीटी और भाषा अध्यापक की ट्रेङ्क्षनग की। पहली नियुक्ति शिमला के क्योंथल स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने आकाशवाणी शिमला में ऑडिशन दिया। भाषा अध्यापक लगीं और उन्होंने शिमला के क्योंथल स्कूल में सेवाएं देना शुरू किया। उन्होंने पोर्टमोर स्कूल और लक्कड़ बाजार स्कूल में अध्यापक के तौर पर सेवाएं दीं। नौकरी के साथ उन्होंने संगीत का क्षेत्र नहीं छोड़ा। 

उनकी शादी पहाड़ी कवि जयदेव किरण से हुई और दो बेटे ज्योति बिष्ट और जगदेव बिष्ट हैैं। जयदेव किरण पहले पहाड़ी कवि हैं, जिन्हें प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाईएस परमार ने किरण की उपाधि से सम्मानित किया। यह खिताब देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा की तरफ से दिया गया।

नगर निगम धर्मशाला की पार्षद सविता कार्की ने दिवंगत आत्मा की शांति की कामना की है। क्षेत्र के समाजसेवी आरएस राणा ने भी स्वर कोकिला शांति बिष्ट ने कला साहित्य व गायन में दिए योगदान को सराहा।

मां के साथ मेरी गुरु थीं

गायिका शांति बिष्ट के पुत्र संगीतकार ज्योति बिष्ट का कहना है कि मां होने के साथ वह मेरी गुरु भी रही हैं।  मेरी संगीत के प्रति रुचि को उन्होंने हमेशा सराहा और मुझे प्रोत्साहित किया। जब भी गाने लिखता तो वे उसमें कमियां निकाल कर अपने कौशल से उसे पूरा करती थीं। उनका जाना पूरे परिवार के लिए अपूर्णीय क्षति है।

सुलझी हुई कलाकार थीं : परमार

लोक कलाकार व सेवानिवृत्त वरिष्ठ उद्घोषक आकाशवाणी शिमला अच्छर सिंह परमार ने बताया कि शांति बिष्ट सुलझी हुई कलाकार थीं। उनके गायन में जादू था। उनकी खासियत ये भी थी कि वे जूनियर आर्टिस्ट को भी हमेशा प्रोत्साहित करती थीं। प्रतिष्ठा सम्मान भरपूर मिलने के बावजूद वह बेहद विनम्र थीं। भगवान दिवंगत आत्मा को शांति दें।

अपूर्णीय क्षति है उनका जाना : डॉ. हुकम शर्मा

आकाशवाणी शिमला के वरिष्ठ उद्घोषक डॉ. हुकम शर्मा ने बताया कि आकाशवाणी में उनका कार्यकाल लंबे समय तक रहा। इनका जाना हिमाचल के लिए अपूर्णीय क्षति है। वह बच्चों को संगीत के प्रति हमेशा प्रोत्साहित करती थीं। उनके पति जयदेव किरण को सरकार की ओर से 1989 में पहाड़ी बाबा कांशी राम पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।


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