मधुमेह से पीडि़त करोड़ों लोगों के लिए राहत की खबर, IIT मंडी के शोधार्थियों ने किया शोध, अब आसान होगा उपचार व पहचान
IIT Mandi Research on Diabetes आइआइटी मंडी के शोधार्थियों ने शोध से टाइप 2 मधुमेह की बीमारी से पीड़ित रोगियों के लिए आशा की नई किरण दिखाई है। शोधार्थियों ने यकृत में जमा वसा से होने वाले रोगों व मधुमेह के बीच जैव रसायन संबंधों को ढूंढ निकाला है।
मंडी, हंसराज सैनी। IIT Mandi Research on Diabetes, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधार्थियों ने अपने शोध से टाइप 2 मधुमेह की बीमारी से पीड़ित रोगियों व उनके तीमारदारों के लिए आशा की नई किरण दिखाई है। शोधार्थियों ने यकृत में जमा वसा (फैटी लिवर) से होने वाले रोगों व टाइप 2 मधुमेह के बीच जैव रसायन संबंधों को ढूंढ निकाला है। इससे नई जांच तकनीक व उपचार विधि विकसित करने में मदद मिलेगी। समय पर बीमारी का पता लगाना संभव होगा। टाइप 2 मधुमेह की जांच व उपचार भी आसान होगा। मधुमेह पीड़ित करोड़ों रोगियों को बड़ी राहत मिलेगी।
एनएएफएलडी वाले लोगों में मधुमेह के खतरों का लगेगा पता
नई तकनीक से गैर अल्कोहल वसायुक्त लीवर (एनएएफएलडी) वाले लोगों में मधुमेह के खतरों का का पता लगाया जा सकेगा। नई चिकित्सकीय युक्ति तैयाार होने से वसा जमा होने के कारण प्रेरित मधुमेह को न्यून किया जा सकेगा।
40 प्रतिशत भारतीय व्यस्क एनएएफएलडी से प्रभावित
यह शोध देश के लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। देश में एनएएफएलडी तेजी से बढ़ रहा है। ताजा सर्वेक्षण में करीब 40 प्रतिशत भारतीय व्यस्क इससे प्रभावित हैं। एनएएफएलडी अकसर टाइप-2 मधुमेह से जोड़ कर देखा जाता है। करीब 5 करोड़ भारतीयों को यह दोनों रोग हैं ।
डायबिटिज’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ शोध
शोध के परिणाम ‘डायबिटिज’ पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। स्कूल आफ बायोसाइंस एंड बायोइंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर प्रोसेनजीत मंडल ने अपने सहयोगियों सुरभी डोगरा, प्रिया रावत, डाक्टर पी विनीत डेनियल व इंडियन इंस्टीट्यूट आफ केमिकल बायोलाजी कोलकाता के डाक्टर पार्थ चक्रवर्ती तथा पीजीएमइआर और एसएसकेएम अस्पताल, कोलकाता के डा. देवज्योति दास, सुजय के मैती, अभिषेक पाल, डा.कौशिक दास और डा.सौविक मित्रा के सहयोग से शोध कार्य किया है।
बीटा कोशिका के फेल होने व यकृत में कार्बोहाइड्रेट से उत्पन्न वसा जमा होने के बीच संबंधों का लगाया पता
बकौल डा. प्रोसेनजीत मंडल, एलएएफएलडी इंसुलिन प्रतिरोधक और टाइप 2 मधुमेह का स्वतंत्र रूप से पूर्वानुमान लगाता है। एनएएफएलडी किस प्रकार से इंसुलिन का उत्सर्जन करने वाले अग्नाशयिक बीटा कोशिका के कामकाज को प्रभावित करता है, इसके बारे में पूरी तरह से स्थिति एवं समझ स्पष्ट नहीं थी। शोधार्थियों ने बीटा कोशिका के फेल होने और यकृत पर कार्बोहाइड्रेट से उत्पन्न वसा जमा होने के बीच संबंधों का पता लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया था।
चूहों को वसा खिला रक्त के नमूनों की जांच
शोधार्थियों ने वसा खिलाए गए चूहों और एनएएफएलडी से पीड़ित मरीजों के रक्त के नमूनों का विश्लेषण किया। दोनों नमूनों में कैल्शियम को बांधे रखने वाले प्रोटीन पाए गए। इन्हें एस100ए6 नाम से जाना जाता है। (एस100 कैल्शियम बाइंडिंग प्रोटीन A6 एक प्रोटीन है जो मनुष्यों में एस100ए6 जीन द्वारा एंकोड किया जाता है) यह प्रोटीन वसा युक्त यकृत द्वारा उत्सर्जित होती है। यकृत लिवर व अग्नाशय (पैन्क्रियाज) के बीच संवाद सेतु का काम करता है। यह प्रोटीन इंसुलिन उत्सर्जित करने की बीटा-कोशिका क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता हैं। मौजूदा टाइप 2 मधुमेह को बढ़ाता हैं । जैव रसायन स्तर पर यह प्रोटिन अग्नाशयिक बीटा कोशिका पर उन्नत ग्लाइकेशन अंतिम उत्पाद (आरएजीई) के रिसेप्टर को सक्रिय कर देते है। इससे इंसुलिन का निकलना रुक जाता है।
एस100ए6 एनएएफएलडी में मधुमेह के रोग निदान में योगदान
शोधार्थी सुरभी डोगरा बताती हैं कि शोध में एक महत्वपूर्ण बात यह सामने आई कि एस100ए6 के ह्रास से इंसुलिन का निकलना और चूहों में ब्लड ग्लूकोज का नियमन बेहतर हुआ जो यह स्पष्ट करता है कि एस100ए6 एनएएफएलडी में मधुमेह के रोग निदान शरीर क्रिया विज्ञान (पैथोफिजियोलाजी)) में योगदान करता है। रक्त से प्रवाहित होने वाले एस100ए6 को हटाने से बीटा-कोशिका के कामकाज के संरक्षण में मदद मिलती है। मधुमेह प्रबंधन के लिए बीटा कोशिका को लक्षित करना उसके कामकाज एवं अस्तित्व के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
फैटी लिवर बढ़ाता है मधुमेह का खतरा
फैटी लिवर मधुमेह होने का खतरा बढ़ाता है। खानपान और लाइफस्टाइल में गड़बड़ी के कारण लोगों में फैटी लिवर की समस्या तेजी से बढ़ रही है। फैटी लिवर के मामलों में पहले लाइफस्टाइल बिगड़ता है फिर डायबिटीज होती है। खास बात यह है कि शराब न पीने वाले लोगों में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है।