देसी गाय का होगा संरक्षण, 'हिमाचली पहाड़ी' गाय को मिली राष्ट्रस्तर पर पहचान, पढ़ें पूरा मामला
नस्ल पंजीकरण समिति करनाल ने हिमाचली पहाड़ी गाय को राज्य की पहली स्वदेशी मवेशी नस्ल के रूप में अनुमोदित और पंजीकृत किया है।
पालमपुर, जेएनएन। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरियाल ने बताया कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज (एनबीएजीआर) की नस्ल पंजीकरण समिति करनाल ने 'हिमाचली पहाड़ी' गाय को राज्य की पहली स्वदेशी मवेशी नस्ल के रूप में अनुमोदित और पंजीकृत किया है। मीडिया को जारी बयान में उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा विज्ञानियों ने इस नस्ल को अद्वितीय विशेषताओं के साथ प्राप्त करने के लिए एनबीएजीआर के साथ सभी अनुसंधान कार्य किए हैं।
कुलपति ने बताया कि हाल ही में पंजीकृत सात मवेशी नस्लों में से 8,00,000 की अनुमानित संख्या वाली 'हिमाचली पहाड़ी' गाय को कुल्लू, चंबा, मंडी, कांगड़ा, सिरमौर में वितरित किया था। इस नस्ल के लिए किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों की बेहद ठंडी जलवायु अनुकूल है। ये मवेशी मध्यम से छोटे, छोटे पैर, मध्यम कूबड़, लंबी पूंछ के साथ काले और काले-भूरे रंग के होते हैं। इनके सींग मध्यम होते हैं और मुख्य रूप से पार्श्व और ऊपर की दिशा में घुमावदार होते हैं।
यह दूध, सूखे की स्थिति और खाद के स्रोत के रूप में पहाड़ी पशुधन उत्पादन प्रणाली के अनुकूल हैं। वयस्क नर का वजन 200 से 280 किलोग्राम और व्यस्क मादा का वजन 140 से 230 तक होता है। इसकी ऊंचाई 90 से 120 सेंटीमीटर तक होती है। दैनिक दूध की उपज एक से तीन किलोग्राम तक होती है।
कुलपति ने उम्मीद जताई कि इस नस्ल के पंजीकरण के साथ, अनुसंधान और संरक्षण कार्य में तेजी लाई जाएगी। वहीं इसके लिए फंडिंग एजेंसियों से धन का नियमित प्रवाह होगा। चूंकि इसे एक जिलास्तर पर अलग नस्ल के रूप में पंजीकृत किया गया है, इसलिए पशुधन रखने वालों के पास इसके स्वामित्व पर विशेष अधिकार रहेंगे। प्रो. सरियल ने कहा कि कांगड़ा, चंबा और पंजाब के कुछ हिस्सों में गुज्जरों द्वारा पाली जाने वाली भैंस की नस्ल गोजरी को भी एनबीएजीआर करनाल में पंजीकृत कराया गया है।