जब तक नहीं हटेगा गैर अध्यापन कार्य, गुणात्मक शिक्षा दूर की कौड़ी
Himachal board exam result Merit दसवीं के घोषित परीक्षा परिणामों ने बता दिया है कि सरकारी स्कूल निजी स्कूलों के आगे कहां ठहरते हैं।
धर्मशाला, जेएनएन। दसवीं के घोषित परीक्षा परिणामों ने बता दिया है कि सरकारी स्कूल निजी स्कूलों के आगे कहां ठहरते हैं। ऐसा नहीं कि सरकारी स्कूलों के अध्यापक पात्र या सक्षम नहीं। सबसे सक्षम अध्यापकों को ही सरकारी स्कूलों में तैनात किया जाता है। लेकिन जब बोर्ड परीक्षाओं का परिणाम आता है कि वे अक्षम लगते हैं क्योंकि सरकारी स्कूलों के बच्चे मेरिट सूची में स्थान नहीं बना पाते। उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन तो बड़े गौर से होता है, लेकिन क्या सरकारी तंत्र ने कभी खुद का भी मूल्यांकन किया है कि कहीं वे ही तो खराब परिणाम की जिम्मेदार तो नहीं?
नगरोटा बगवां कॉलेज के प्राध्यापक प्रो. सुरेश कुमार शर्मा कहते हैं कि शिक्षा में गुणवत्ता क्या होती है, ये तो अध्यापकों, शिक्षा अधिकारियों, शिक्षाविदों व सरकार को निश्चित करना है। गुणवत्ता कैसे लाई जा सकती है, इसका निर्धारण भी इन्हीं द्वारा किया जाना चाहिए। शिक्षा में गुणवत्ता की बात सभी करते हैं, लेकिन इसके मापदंडों पर कोई बात नहीं करता।
चिंता का विषय है कि दसवीं की मेरिट सूची में सिर्फ एक सरकारी स्कूल की छात्रा जगह बना पाई, वो भी दसवें स्थान पर रही। क्या सरकारी स्कूलों में अध्यापक बेहतर नहीं हैं? कमी कहां रह गई जो गुणवत्ता का आकलन करने के लिए हमें जांच करनी पड़ेगी। कर्मठ अध्यापकों को प्रोत्साहित करें और जो पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते उन पर कार्रवाई हो। न केवल सरकार व बल्कि अध्यापकों व अभिभावकों को भी खुद का मूल्यांकन करना होगा। यह मूल्यांकन बड़े स्तर पर नहीं, बल्कि प्रारंभिक स्तर पर होना चाहिए। बच्चों को भी नकल को भूलकर सोचना होगा कि 21वीं शताब्दी की पौध हैं।
हिमाचल शिक्षक मंच के प्रदेश संयोजक अश्वनी भट्ट कहते हैं कि जितने प्रदेश में सरकारी स्कूल हैं उस लिहाज से मेरिट सूची में कम से कम 40 प्रतिशत स्थानों पर सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी काबिज होने चाहिए। खराब परिणाम आता है तो अध्यापक पर सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन अधिकारी वर्ग से कभी कोई नहीं पूछता कि उन्होंने पूरे वर्ष शिक्षा में सुधार लाने के लिए क्या किया? इस तरह के परिणाम पर अध्यापक से लेकर अधिकारी वर्ग सभी पर समान और निष्पक्ष रूप से कार्रवाई हो और समान जवाबदेही सुनिश्चित हो।
विडंबना है कि अध्यापकों से गैर अध्यापन कार्य लिए जाते हैं। पढ़ाई के अलावा कई कार्यों में उनकी ड्यूटियां लगाई जाती हैं। जब तक यह प्रथा बंद नहीं होगी तब तक सरकारी स्कूलों के अच्छे परीक्षा परिणाम की उम्मीद बेमानी है।