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टंग नरवाना में टिकरी का गोकुलगिरी मंदिर जहां संत ने ली थी जीवंत समाधि, जानिए क्‍या है मान्‍यता

Gokulgiri Temple Tikri धर्मशाला उपमंडल की टंग नरवाना पंचायत के गांव टिकरी में स्थित प्राचीन महादेव मंदिर जहां बाबा ने जीवंत समाधि ली थी। आज भी यहां स्थानीय लोग अपनी फसल का पहला चढ़ावा मंदिर में अर्पित करने के बाद ही नया अनाज घर में उपयोग करते हैं।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 03:19 PM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 03:19 PM (IST)
टंग नरवाना में टिकरी का गोकुलगिरी मंदिर जहां संत ने ली थी जीवंत समाधि, जानिए क्‍या है मान्‍यता
टंग नरवाना पंचायत के गांव टिकरी में स्थित प्राचीन महादेव मंदिर जहां बाबा ने जीवंत समाधि ली थी।

योल, सुरेश कौशल। धर्मशाला उपमंडल की टंग नरवाना पंचायत के गांव टिकरी में स्थित प्राचीन महादेव मंदिर जहां बाबा ने जीवंत समाधि ली थी। आज भी यहां स्थानीय लोग अपनी फसल का पहला चढ़ावा मंदिर में अर्पित करने के बाद ही नया अनाज घर में उपयोग करते हैं। यहां हर साल हवन यज्ञ के साथ विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। एक मान्यता के अनुसार करीब 250 वर्ष पूर्व यहां एक संत ने विशाल पेड़ के नीचे भगवान शिव की तपस्या करनी शुरू की। कहा जाता है वो संत पहले समीप की धौलाधार पर्वत श्रृंखला पर भी तपस्या करने के लिए गया था। लेकिन वहां कुछ बाधाओं के कारण उन्होंने धौलाधार पर्वत श्रृंखला की तलहटी टिकरी के जंगलों को चुना।

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यहां करीब 80 वर्ष की आयु तक तपस्या करने के वाद जीवंत समाधि ले ली थी, ऐसा लोकमत रहा है। उस समय न तो यहां कोई मंदिर था और न ही इतनी आबादी थी। उनके समाधि में लीन होने के बाद उसी दिन योल के एक आदमी जो स्लेट बेचने के लिए नादौन गया था। संत ने उस व्‍यक्‍ति‍ को साक्षात दर्शन देकर कहा कि कस्बा नरवाना के हाकम श्रीधर को कहना कि इस स्थान पर मंदिर बनवा दे। कुछ दिन बाद जब वो आदमी योल पहुंचा तो उसने हाकम श्रीधर को यह प्रसंग सुनाया और श्रीधर‌ ने यहां बाबा गोकुल गिरी की स्मृति में एक झोपड़ी नुमा मंदिर का निर्माण किया।

आज इसी मान्यता को लेकर लोग यहां अपनी मनोकामना पूरी करने पहुंचते हैं। आज यहां कमेटी की देखरेख में मंदिर का जीर्णोद्धार और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। पंचायत के पूर्व प्रधान चरण दास काफी समय तक कमेटी के प्रधान रहे। वहीं कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य वीएन रैणा ने हिमाचल प्रदेश भाषा एवं संस्कृति विभाग तथा पुरातत्व विभाग से भी इस ढाई सदी पूर्व मंदिर के उत्थान के लिए सहयोग देने की मांग की है।


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