कभी चांदी बेच बनाया जाता था घृत मंडल
संवाद सहयोगी कांगड़ा श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर में वर्तमान में लाखों की चांदी चढ़ाई जाती है और चढ़ावे का आंकड़ा भी लाखों में ही है। एक दिन ऐसा भी था जब चांदी बेचकर घृत मंडल बनाया जाता था। करीब पांच दशक पहले पुजारियों को देसी घी के लिए मंदिर की चांदी को बेचना पड़ता था।
संवाद सहयोगी, कांगड़ा : श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर में वर्तमान में लाखों की चांदी चढ़ाई जाती है और चढ़ावे का आंकड़ा भी लाखों में ही है। एक दिन ऐसा भी था जब चांदी बेचकर घृत मंडल बनाया जाता था। करीब पांच दशक पहले पुजारियों को देसी घी के लिए मंदिर की चांदी को बेचना पड़ता था।
वरिष्ठ पुजारी पंडित रामप्रसाद शर्मा ने बताया कि करीब 50 वर्ष पहले जब वह दसवीं में पढ़ते थे तो पहली बार देसी घी से मक्खन बनाने का कार्य किया था। उस समय 80 किलो मक्खन मां की पिडी पर चढ़ाया था। उनके साथ पंडित जोगेश कुमार, पं. संत कुमार, पं. किशोरी लाल व पं. रवि चंद घृत पर्व के लिए मक्खन बनाते थे। बकौल रामप्रसाद,मंदिर के तालाब वाले स्थान पर भट्ठी बनाई थी और वहां देसी घी को पिघलाया जाता था। कुएं से पानी लाने के लिए एक व्यक्ति को तैनात किया जाता था।
कोरोना के कारण इस बार घृत पर्व के आयोजन के दौरान भगवती जागरण नहीं हो रहा है। मंदिर में घृत पर्व के लिए 1989 में पहली बार जागरण हुआ था और इसके बाद लोगों की आस्था बढ़ी थी। इसके बाद लगातार जागरण होने लगा और श्रद्धालु देसी घी दान में देने के लिए आगे आने लगे। करीब एक दशक पहले केके शर्मा की ओर से करवाए गए जागरण से घृत पर्व की जानकारी दूर-दूर तक पहुंची। अब क्विंटलों के हिसाब से मक्खन का लेप मां की पिंडी को लगाया जाता है। बुधवार तक मंदिर में 28 क्विंटल मक्खन तैयार कर लिया गया था और देसी घी दान में आने का सिलसिला जारी है। मंदिर अधिकारी दलजीत शर्मा ने बताया कि घृत पर्व के लिए करीब 18 क्विंटल मक्खन की जरूरत होती है पर मंदिर प्रशासन ने 10 क्विंटल अतिरिक्त मक्खन तैयार कर लिया है। मक्खन रूपी प्रसाद को बाद में श्रद्धालुओं में बांटा जाएगा।