पालमपुर में चार कचरा निष्पादन संयंत्र हाेने के बावजूद नहीं मिल रहा लाभ, संयंत्राें में डंप करके पर्यावरण काे किया जा रहा दूषित
पिछले कुछ वर्षों में साफ-सफाई को लेकर लोगों का परिप्रेक्ष्य बदल गया है। अब गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग करने और एकत्रित कचरे को लैंडफिल में डंप कर करने के बजाए इसे प्रोसेस करने पर अधिक जोर दिया जाता है।
पालमपुर, कुलदीप राणा। पिछले कुछ वर्षों में साफ-सफाई को लेकर लोगों का परिप्रेक्ष्य बदल गया है। अब गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग करने और एकत्रित कचरे को लैंडफिल में डंप कर करने के बजाए इसे प्रोसेस करने पर अधिक जोर दिया जाता है। यह देखा गया है कि ठोस कचरा प्रबंधन में सबसे बड़ा मसला अलग-अलग किए गए कचरे को उठाना है। शहराें में कचरा उठाने का जिम्मा स्थानीय निकायाें के ऊपर होता है। सभी शहरों में अलग किए हुए कचरे को एकत्रित करने और प्रोसेस करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा विकसित किया जा रहा है।
स्वच्छता सर्वेक्षण के नतीजों में सबसे बड़ी अनियमितता है कि इसमें शहरों को कचरा उठाने की उनकी डोर-टू-डोर प्रणाली के आधार पर अंक दिए गए हैं। लेकिन प्रबंधन काे लेकर स्वच्छता सर्वेक्षण में अंक न हाेना चिंता का विषय है। क्याेंकि कुछ शहरों में डोर-टू-डोर प्रणाली का चलन नहीं है। इसके बावजूद वे सबसे साफ हैं। नगर निगम पालमपुर में नगर परिषद के कार्यकाल में लाखाें रुपये खर्च कर कचरा संयंत्र की स्थापना हुई। लेकिन सही प्रबंधन के अभाव में स्थानीय लाेगाें ने इसका विराेध करते हुए मामला न्यायालय में दायर कर दिया। लगभग छह साल बीतने के बाद भी इसे दाेबारा चालू नहीं किया जा सका है। पालमपुर की निकटवर्ती पंचायताें काे मिलाकर नगर निगम का दर्जा दिया गया।
इसके बाद पंचायताें में स्थापित तीन अन्य ठाेस कचरा संयंत्र नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आ गए। लेकिन यहां भी प्रबंधन के अभाव में कचरे काे खुले में डंप कर पर्यावरण प्रदूषण फैलाया जा रहा है। खलेट पंचायत के अंतर्गत स्थापित कचरा संयंत्र काे जनता के विराेध स्वरूप बंद कर दिया गया, लेकिन घुग्घर व आइमा पंचायत में स्थापित कचरा संयंत्राें का नगर निगम के तहत प्रबंधन किया जा रहा है। कूड़ा निष्पादन संयंत्र में खुले में पड़ी गंदगी नगर निगम के अधिकारियों व पार्षदाें की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है। बताया जा रहा है कि डाेर टू डाेर घराें से एकत्रित गीले कचरा काे पालमपुर माेक्षधाम के साथ निर्मित कचरा संयंत्र में भेजा जा रहा है, जबकि सूखे व प्लास्टिक कचरे काे सरकारी आइटीआइ के निकट न्युगल खड़ड के मुहाने पर स्थापित ठाेस कचरा संयंत्र में भेजा जाता है। नगर प्रशासन ने घराें से कचरा उठाने और संयंत्र में निष्पादन का जिम्मा निजी ठेकेदार काे दिया है। ठेकेदार के लगभग 150 लाेग इस कार्य में जुटे हैं। बावजूद संयंत्राें में कचरा निष्पादन की जगह डंप किया जा रहा है। ऐसे में कचरा संयंत्राें में टनाें के हिसाब से कचरा बिखरा पड़ा है व दुर्गंध से पर्यावरण प्रदूषित हाे रहा है।
कूड़ा निस्तारण संयंत्र लगाने में लगे दाे दशक
नगर निगम के अंतर्गत कूड़ा निष्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए नगर परिषद को दाे दशकाें का समय लगा था। जमीन व औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए फाइलें घूमतीं रहीं थी। यहां तक कि दाे जगहाें पर तत्कालीन नगर परिषद ने भूमि भी खरीदी थी। जिसे बाद में बेचा गया था। लंबी जद्दाेजहद के बाद स्थापित कचरा संयंत्र में एक वर्ष के बाद ही लाेगाें का विराेध हाे गया। निष्पादन काे पहुंचे कचरे काे पहाड़ी में डंप किया गया। लेकिन बरसात में कचरे की पहाड़ी ही बह कर पालमपुर में बिखर गई।
इसी खतरे काे लेकर लाेगाें ने विराेध किया व संयंत्र काे बंद करवाकर मामला न्यायालय में भेज दिया। अभी तक न्यायालय से भी काेई हल नहीं निकल सका है। लेकिन नगर निगम का दर्जा मिलते ही निगम क्षेत्र में तीन अन्य संयंत्र आ गए। इसमें भी प्रबंधन के अभाव में जनता काे इनका लाभ नहीं मिल पा रहा है। शहरों को स्वच्छता रखने के लिए ऐसी प्रणाली विकसित हाे, जहां कचरे को अलग करके प्रोसेस करने और निष्पादन का तरीका मौजूद हो। वहीं ठोस कचरा प्रबंधन के तहत कानून बनाकर गंदगी फैलाने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान हाेना चाहिए।