Kinnaur and Kashmiri Apple: ग्लोबल वार्मिंग और कलर स्प्रे फीका कर रही सेब का स्वाद, किन्नौर और कश्मीरी सेब इस कारण ज्यादा स्वादिष्ट
Kinnaur and Kashmiri Apple सेब को सबसे पहले बाजार में बेचने की होड़ में इसकी गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग से लगातार बढ़ रहे तापमान ज्यादा मुनाफे के चक्कर में समय से पूर्व तुड़ान और कलर स्प्रे इसकी खुशबू व स्वाद को फीका कर रहा है।
शिमला, यादवेन्द्र शर्मा। Kinnaur and Kashmiri Apple: हिमाचल में सेब की मिठास को लालच खा रहा है। सेब को सबसे पहले बाजार में बेचने की होड़ में इसकी गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग से लगातार बढ़ रहे तापमान, ज्यादा मुनाफे के चक्कर में समय से पूर्व तुड़ान और कलर स्प्रे इसकी खुशबू व स्वाद को फीका कर रहा है। सेब तोडऩे के बाद 10 से 15 दिन के बाद उसमें मौजूद स्टार्च शुगर में तबदील हो जाता है। इसके बाद ही इससे खुशबू आती है और स्वाद बेहतर होता है। बाजार में अधिक दाम लेने के लिए बागवान कई तरह की स्प्रे कर रहे हैं। इससे फसल जल्द इस्तेमाल न होने पर सड़ जाती है। हालांकि सेब को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है, बशर्ते उसका समय पर तुड़ान हो।
विशेषज्ञों की मानें तो जुलाई और अगस्त में जब सेब तैयार हो रहा होता है तो दिन का तापमान अधिक और रात का तापमान कम यानी छह से आठ डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए। यही सेब के स्वाद को बढ़ाने के साथ इसकी खुशबू बढ़ाता है। लेकिन, निचले क्षेत्रों में यह तापमान सेब को नहीं मिल पाता। दवा का निर्धारित मात्रा में ही इस्तेमाल करना चाहिए। सेब में रंग लाने के लिए किया जाने वाला स्प्रे भी खराब है। कश्मीर, किन्नौर और ऊंचाई वाले क्षेत्रों का सेब इसलिए ज्यादा स्वादिष्ट और सुगंधित होता है, क्योंकि वहां की जलवायु इसके लिए उपयुक्त होती है।
जलवायु आधार पर हो रहा सेब पर शोध
औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी, सोलन के अलावा इसके अन्य केंद्रों में सेब सहित अन्य फलों पर शोध हो रहा है। नौणी के अलावा, क्रेगनेनो मशोबरा, कुल्लू व किन्नैार में भी शोध हो रहा है। सभी क्षेत्रों के लिए वहां की जलवायु के आधार पर सेब की किस्मों को लगाने की सिफारिश की जा रही है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
- विभागाध्यक्ष, फल विज्ञान औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी सोलन डा. डीपी शर्मा ने कहा जलवायु परिवर्तन और अधिक मुनाफा कमाने की होड़ ने सेब की गुणवत्ता प्रभावित की है। नौणी विश्वविद्यालय में प्रदेश की जलवायु के आधार पर शोध किए जा रहे हैं। क्षेत्र के आधार पर सेब व अन्य फलों की किस्मों को तैयार किया जा रहा है। सेब की नई किस्में जिनमें गाला, जेरोमाइन, ग्रेनीस्मीथ, स्कारलेट स्पर, फ्यूजी किस्में हैं, जिसमें सुगंध के साथ स्वाद भी है और चमक भी।
- क्षेत्रीय बगवानी अनुसंधान केंद्र क्रेगनेनो, मशोबरा, शिमला के सह निदेशक डा. पंकज गुप्ता ने कहा सेब पर मशोबरा के क्रेगनेनो क्षेत्रीय बागवानी शोध व प्रशिक्षण केंद्र में शोध किया जा रहा है। इसमें पुरानी और नई किस्में लगाई गई हैं। प्राकृतिक तौर पर उत्पादन किया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध दवा के छिड़काव ने सेब के स्वाद और खुशबू को प्रभावित किया है। इस केंद्र में प्रमुख रूप से सेब, नाशपती व चेरी पर कार्य हो रहा है।