कोरोना संक्रमण को भगाएगा प्रदेश में पाया जाने वाला बुरांस की पंखुड़ियों का अर्क
Burans Petal Extract हिमाचल प्रदेश के आइआइटी मंडी के विज्ञानियों ने खोजा वायरस रोकने वाला फाइटोकेमिकल्स हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड के जंगलों में मिलते हैं बुरांस के पेड़। वायरस रोधी गुणों को समझने के लिए किए गए है परीक्षण।
जागरण संवाददाता, मंडी। हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड के जंगलों में पाए जाने वाले बुरांस (रोडोडेंड्रोन अरबोरियम) के फूल की पंखुड़ियों का अर्क कोरोना वायरस को रोकने में मदद करेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी व नई दिल्ली के इंटरनेशनल सेंटर फार जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलाजी (आइसीजीईबी) के विज्ञानियों ने बुरांस की पंखुड़ियों में फाइटोकेमिकल्स की पहचान की है। इससे कोरोना के संक्रमण के इलाज की संभावना सामने आई है। बुरांस का फूल सामान्यतया 15 मार्च से 15 अप्रैल तक खिलता है। इन्हें बुरुंस व बराह भी कहा जाता है।
स्कूल आफ बेसिक साइंस आइआइटी मंडी के एसोसिएट प्रोफेसर डा. श्याम कुमार मसकपल्ली का कहना है कि उपचार के विभिन्न तत्वों का अध्ययन किया जा रहा है। उनमें पौधों से प्राप्त फाइटोकेमिकल्स से विशेष उम्मीद है, क्योंकि उनके बीच गतिविधि में सहक्रिया (सिनर्जी) है। फाइटोकेमिकल्स ऐसे यौगिक हैं, जो पौधों द्वारा निर्मित होते हैं। ये फल-सब्जी, अनाज में पाए जाते हैं। कुछ फाइटोकेमिकल्स कैंसर के उपचार में भी कारगर होते हैं। विज्ञानियों ने बुरांस की पंखुड़ियों से फाइटोकेमिकल्स निकालकर इसके वायरस रोधी गुणों को समझने के लिए जैव रासायनिक परीक्षण का अध्ययन किया है।
बुरांस में पाया जाता है क्विनिक एसिड : शोधार्थियों के मुताबिक बुरांस की पंखुड़ियों के गर्म पानी के अर्क में प्रचुर मात्रा में क्विनिक एसिड व इसके डेरिवेटिव पाए गए। मालीक्यूलर अध्ययन से पता चला है कि ये फाइटोकेमिकल्स वायरस से लड़ने में दो तरह से प्रभावी हैं। यह मुख्य प्रोटीएज से जुड़ जाते हैं, जो एक तरह का एंजाइम है और वायरस की प्रतिकृति (रेप्लिका) बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मानव एंजियोटेंसिन परिवर्तित एंजाइम-2 से भी जुड़ता है, जो होस्ट सेल में वायरस के प्रवेश की मध्यस्थता करता है। प्रायोगिक परीक्षण में यह पाया गया कि पंखुड़ियों के अर्क की गैरविषाक्त खुराक से वेरो ई-6 कोशिकाओं में कोरोना का संक्रमण रुकता है। पंखुड़ियों के अर्क ने कोरोना वायरस को बनने से रोका है।
शोधार्थियों की टीम: शोध टीम का नेतृत्व स्कूल आफ बेसिक साइंस आइआइटी मंडी के एसोसिएट प्रोफेसर डा. श्याम कुमार मसकपल्ली, डा. रंजन नंदा, ट्रांसलेशनल हेल्थ ग्रुप, डा. सुजाता सुनील, वेक्टर बोर्न डिजीज ग्रुप, इंटरनेशनल सेंटर फार जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलाजी ने किया है। शोध-पत्र के सह लेखक डा. मनीष लिंगवान, शगुन, फलक पहवा, अंकित कुमार, दिलीप कुमार वर्मा, योगेश पंत, लिंगराव वीके कामतम व वंदना कुमारी हैं। यह शोध ‘बायोमालीक्यूलर स्ट्रक्चर एंड डायनेमिक्स’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
वायरस की प्रकृति समझने की जरूरत : कोरोना महामारी के दूसरे साल भी शोधार्थी इस वायरस की प्रकृति समझने व संक्रमण रोकने के नए तरीकों की खोज करने में जुटे हैं। टीकाकरण शरीर को वायरस से लड़ने की शक्ति देने का एक रास्ता है। पूरी दुनिया वैक्सीन के अतिरिक्त दवाओं की खोज में जुटी है, जो वायरस से बचाव करे। ये दवाएं रसायनों का उपयोग कर शरीर की कोशिकाओं मौजूद रिसेप्टर्स से जुड़ती हैं। वायरस को अंदर प्रवेश करने से रोकती हैं या फिर सीधे वायरस पर असर करती हैं।