दलाई लामा को विश्वास, अहिंसा और शांति से जीतेंगे, आज फिर पोटाला पैलेस से दूर जन्मतिथि मनाएंगे धर्मगुरु
Dalai Lama 86th Birthday तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा आज (छह जुलाई को) 86 वर्ष के हो गए। तिब्बत के ल्हासा में आधिकारिक महल पोटाला से दूर भारत में यह उनकी 62वीं जन्मतिथि है। दलाईलामा व उनके समर्थकों को विश्वास है कि अहिंसा के रास्ते कभी न कभी तिब्बत जरूर लौटेंगे।
धर्मशाला, मुनीष दीक्षित। Dalai Lama 86th Birthday, तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा आज (छह जुलाई को) 86 वर्ष के हो गए। तिब्बत के ल्हासा में आधिकारिक महल पोटाला से दूर भारत में यह उनकी 62वीं जन्मतिथि है। दलाईलामा व उनके समर्थकों को विश्वास है कि अहिंसा के रास्ते कभी न कभी तिब्बत जरूर लौटेंगे। वर्ष 2011 के बाद से तिब्बत में परिस्थितियां बदली हैं। चीन अब भी दलाई लामा को शत्रु मानता है। लेकिन दलाई लामा तिब्बत की आजादी के लिए शांति के मार्ग पर बढ़ रहे हैं। भारत को वह दूसरा घर मानते हैं। 1989 में नोबल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा तिब्बत जाने के सवाल पर मौन हो जाते हैं, लेकिन आसमां की तरफ देखते हुए उनका हमेशा एक विश्वास रहता है कि कभी न कभी लौटेंगे। दलाई लामा वर्ष 1959 में चीन के आक्रमण के बाद तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेने पहुंचे थे। धर्मशाला के मैक्लोडगंज से निर्वासित तिब्बत सरकार शासन चला रही है। हाल ही में पेंपा सेरिंग नए प्रधानमंत्री चुने गए हैं। देखना यह है कि स्थिति कैसे आगे बढ़ती है।
ऐसे हुई थी 14वें दलाईलामा की खोज
वर्ष 1933 में 13वें दलाई लामा की मौत हुई थी। इसके बाद नए दलाईलामा की खोज शुरू हुई। मृत लामा का शरीर दक्षिण दिशा से मुड़कर कुछ ही दिन में पूर्व दिशा की ओर आ गया। बताया जाता है कि जिस दिशा में शव आया, उसमें अजीब किस्म के बादल देखे गए और वहीं बने महल के खंभे पर तारे के आकार वाली फफूंद भी उग आई।
मूंगिया रंग की छत और किसान के घर से खोजा
इस अभियान के कार्यवाहक राजाध्यक्ष ने कई दिन के ध्यान और पूजा के बाद पवित्र झील में अ, क, म अक्षरों की आकृतियां, सुनहरी छत वाला एक मठ और मूंगिया रंग की छत वाला घर देखा। इसके साल भर बाद ल्हासा से गए खोजी दल ने पूर्व के आम्ददो प्रांत में ऐसी ही छत वाले मठ के पास मूंगिया छत वाले घर में रहने वाले किसान के बच्चे को खोज लिया। इस बच्चे ने 13वें दलाईलामा के कई सहयोगियों, मालाओं, छड़ी और दूसरी चीजों को आसानी से पहचान लिया। यही बच्चा आज के दलाईलामा हैं। इनका मूल नाम तेनजिन ग्यात्सो है तथा इन्हेंंं 14वें दलाईलामा माना जाता है।
नाम नहीं, पदवी है दलाई लामा
दलाई लामा कोई नाम नहीं, बल्कि एक पहचान है। दलाई लामा की पदवी सबसे पहले तिब्बत के तीसरे सर्वोच्च धर्मगुरु सोनम ज्ञाछो को मिली थी। इसके बाद परंपरा शुरू हुई। दलाई लामा मंगोल भाषा का शब्द है और इसका सामान्य अर्थ है ज्ञान का महासागर।
कोरोना के बाद महल से सिर्फ दो बार निकले
दलाई लामा मार्च, 2020 से मैक्लोडगंज में अपने महल में अकेले रह रहे हैैं। यहीं से अनुयायियों को आनलाइन टीचिंग दे रहे हैं। इस वर्ष से उनका हिंदी भी विशेष सत्र शुरू हुआ है। उनसे सिर्फ डाक्टर और चार सेवादारों को मिलने की इजाजत है। एक साल और तीन माह के भीतर वह सिर्फ दो बार महल से बाहर निकले हैं। 17 अक्टूबर, 2020 को पहली बार महल से बाहर देखे गए थे, जिसकी फोटो इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुई थीं। दूसरी बार वह छह मार्च, 2021 को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लगवाने के लिए जोनल अस्पताल धर्मशाला पहुंचे थे। वैक्सीन की दूसरी डोज उन्हें आवास पर ही दी गई थी।
18 मार्च से बंद है मुख्य बौद्ध मंदिर
देश में लॉकडाउन लगने से पहले ही जनवरी 2020 में ही मार्च 2020 में होने वाली टीचिंग को रद कर दिया था। बौद्ध मंदिर को 18 मार्च से ही आने वाले लोगों के लिए बंद कर दिया।
मई माह से शुरू की ऑनलाइन टीचिंग
लॉकडाउन के दौरान जब सब कुछ बंद था तो उस समय दलाईलामा ने मई 2020 से ऑनलाइन टीचिंग शुरू कीं। 16 व 17 मई ऑनलाइन शिक्षाएं दी। इसके बाद 5 जून को साकादावा के लिए अनुयायियों को ऑनलाइन संबोधित किया और 7 जून को साउथईस्ट एशिया के अनुयायियों को शिक्षाएं दी। इसके बाद से वह समय समय पर ऑनलाइन शिक्षाएं दे रहे हें।
इन देशों से आते हैं ज्यादातर अनुयायी
सिंगापुर, ताइवान, मंगोलिया, साउथ ईस्ट एशिया से मैक्लोडगंज में दलाई लामा के ज्यादा अनुयायी पहुंचते हैं। वहीं जापान, रूस, जर्मन, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों से भी अनुयायी पहुंचते हैं।
आंकड़ों में इतिहास
- 1950 के दशक में चीन और तिब्बत के बीच कड़वाहट शुरू
- 15 वर्ष थी उस समय दलाई लामा की उम्र
- 8000 सैनिक थे तिब्बती सेना में जो चीनी सेना के मुकाबले कुछ नहीं थे
- 1959 में लोगो में भारी आक्रोश छा गया
- 17 मार्च 1959 की रात को दलाईलामा तिब्बत के ल्हासा में अपने पोटला महल से निकले
- 31 मार्च को भारत के तवांग इलाके में प्रवेश कर गए।