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शांता कुमार बोले, अहं मनुष्य के लिए खतरनाक; बहुत ज्यादा जरूरत पर ही निकलें घरों से बाहर

भाजपा नेता शांता कुमार ने सोशल मीडिया पर रविवार को संस्मरणों के साथ ‘मैं’ को खूबसूरती से शब्दों में उकेरा।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Mon, 27 Apr 2020 09:26 AM (IST)Updated: Mon, 27 Apr 2020 05:24 PM (IST)
शांता कुमार बोले, अहं मनुष्य के लिए खतरनाक; बहुत ज्यादा जरूरत पर ही निकलें घरों से बाहर
शांता कुमार बोले, अहं मनुष्य के लिए खतरनाक; बहुत ज्यादा जरूरत पर ही निकलें घरों से बाहर

पालमपुर, जेएनएन। भाजपा नेता शांता कुमार ने सोशल मीडिया पर रविवार को संस्मरणों के साथ ‘मैं’ को खूबसूरती से शब्दों में उकेरा। इतना ही नहीं, लॉकडाउन को लेकर बीते शनिवार को सरकार ने जो निर्णय लिया, उसे लेकर भी जनता को नसीहत दी है। सरकार ने पाबंदियों में ढील देने की घोषणा की है। शांता ने कहा कि इसका उपयोग तभी करें, यदि बहुत अधिक आवश्यकता हो। विश्वभर का एक ही अनुभव है, जहां जितनी सावधानी और सख्ती, वहां उतनी जल्दी महामारी से मुक्ति।

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शांता लिखते हैं कि व्यावहारिक जीवन में भी अहं मनुष्य के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध होता है। स्वाभिमान चाहिए। अपनी अस्मिता का ध्यान भी चाहिए परंतु ‘मैं ही’ का भाव और मैं ही ठीक हूं। ‘मैं ही सच बोलता हूं’ आदि अहं का भाव जीवन में विकास नहीं होने देता है। प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी गलती करता है। बुद्धिमान गलती मान लेता है और दोबारा नहीं करता है।

गलती स्वीकार करते हैं, इसलिए वे सुधार भी कर लेते हैं। जो लोग गलती नहीं मानते, अहं में रहते हैं, वे दुखी भी होते हैं और सफल भी नहीं होते। हरियाणा में एक जनसभा में घटित वाकया भी शांता कुमार ने सोशल मीडिया में डाला है। शांता लिखते हैं कि पार्टी नई थी और उत्साही कार्यकर्ताओं ने छोटे कस्बे में जनसभा रखी। मगर वहां पर लोग सभा में आने की बजाए दूर-दूर खड़े होकर देखने लगे।

ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे मंगल सेन ने आगे आते हुए ऐसा समां बांधा कि जो दूर-दूर खड़े थे, वह सभा में पहुंच गए। मंगल सेन ने कहा था, अध्यक्ष महोदय और बहुत दूर हिमाचल से आए हुए हमारे नेता शांता कुमार, मेरे सामने खाली बिछी हुई प्यारी दरियों और सामने रखी प्यारी कुर्सियों, सुनते ही लोग हंसने लगे। फिर कहा, बहुत पीछे खड़े प्यारे भाइयों। धीरे-धीरे लोग हंसते हुए आगे आने लगे। उन्होंने भाषण शुरू किया और सभा भर गई। फिर सभा को शांता कुमार ने संबोधित किया।

..जब पोती को कहा था सॉरी

शांता लिखते हैं कि कुछ वर्ष पहले थका हुआ घर आया। संतोष और बहू ने मेरी पोती गरिमा की शिकायत की। थका हुआ था, एकदम गुस्से में आकर उसे डांट दिया। वह आंसू बहाती कमरे में चली गई। रात जब सोने लगा तो ध्यान आया कि बहुत देर से गरिमा को नहीं देखा। वह अपने कमरे में ही बंद थी। कुछ सोचा फिर ख्याल आया। सीधा उसके कमरे में गया और कहा, गरिमा बेटी सॉरी। गरिमा हैरान होकर बिस्तर से उठी और कहने लगी, दादा आप ऐसा क्यों कह रहे हैं। उसने आंसू पोंछ लिए और मेरे गले लगी। इस पर बात खत्म हो गई।


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