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फोन टैपिंग मामला : पूर्व डीजीपी एसआर मरडी पर केंद्रित हुई सीआइडी जांच

बहुचर्चित फर्जी फोन टैपिंग की जांच पूर्व डीजीपी एसआर मरडी के इर्द-गिर्द घूम रही है। उनके पूछे गए सवाल और इनके जवाबों पर पूरी जांच केंद्रित हो गई है। जांच ऐसे मोड़ पर पहुंची है जहां से आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट भी तैयार हो सकती है

By Vijay BhushanEdited By: Published: Fri, 11 Jun 2021 05:18 PM (IST)Updated: Fri, 11 Jun 2021 05:18 PM (IST)
फोन टैपिंग मामला : पूर्व डीजीपी एसआर मरडी पर केंद्रित हुई सीआइडी जांच
हिमाचल प्रदेश के पूर्व डीजीपी एसआर मरडी। जागरण आर्काइव

शिमला, राज्य ब्यूरो। बहुचर्चित फर्जी फोन टैपिंग की जांच पूर्व डीजीपी एसआर मरडी के इर्द-गिर्द घूम रही है। उनके पूछे गए सवाल और इनके जवाबों पर पूरी जांच केंद्रित हो गई है। जांच ऐसे मोड़ पर पहुंची है जहां से आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट भी तैयार हो सकती है और पुलिस की तरह केंसलेशन रिपोर्ट भी बनाई जा सकती है। इस केस में तत्कालीन सीआइडी इंस्पेक्टर मुकेश कुमार अहम कड़ी है।

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सूत्रों के अनुसार पूर्व डीजीपी बी कमल कुमार ने सीआइडी को वही बयान दिया है, जिसे शिमला पुलिस को दिया था। इसमें उन्होंने कहा है कि पूर्व डीजीपी आइडी भंडारी ने एसआर मरडी को कोई चाबी नहीं सौंपी थी। बयान के अनुसार वह 16 जनवरी, 2012 को भंडारी के साथ सीआइडी के दफ्तर गए थे, लेकिन वहां अलमारी पहले से सील थी।

कौन हैं आरोपित

पूर्व डीजीपी आइडी भंडारी का आरोप है कि उन्हें पूर्व कांग्रेस सरकार ने फोन टैपिंग के झूठे मामले में फंसाया था। उन्होंने जिन अफसरों को नामजद किया था, उनमें तत्कालीन मुख्य सचिव एस राय, तत्कालीन प्रधान सचिव पी मित्रा, तत्कालीन गृह सचिव पीसी धीमान, तत्कालीन सामान्य प्रशासन सचिव शुभाशीष, आइपीएस अभिषेक त्रिवेदी, शिमला के तत्कालीन डीसी, एडीएम, एसडीएम, सीआइडी के तत्कालीन एडीजीपी, तत्कालीन विजिलेंस के जांच अधिकारी आइपीएस अधिकारी एपी सिंह, तत्कालीन एचपीपीएस पंकज शर्मा, इंस्पेक्टर मुकेश कुमार आदि शामिल रहे।

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फोन टैपिंग मामले की जांच चल रही है। इस स्टेज पर कुछ भी कहना संभव नहीं है। जांच गहनता व सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर की जा रही है।

-अतुल कुमार फुलजले, आइजी क्राइम।

क्या है मामला

पूर्व डीजीपी आइडी भंडारी पर आरोप था कि उन्होंने सीआइडी में तैनाती के दौरान अवैध तौर पर बड़ी संख्या में फोन टैप किए। आरोप था कि फोन टैपिंग को लेकर कुछ सीडी तोड़ी गई। आरोप के अनुसार अवैध तरीके से करीब 1500 फोन काल टेप की गई। आरोप था कि भंडारी वीरभद्र सिंह के केंद्रीय मंत्री रहते हुए कथित तौर पर जासूसी करते थे और ये जासूसी यंत्र सीआइडी मुख्यालय की अलमारी में रखे थे। दिसंबर, 2012 में वीरभद्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से एक दिन पहले तत्कालीन मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीआइजी रैंक के अधिकारियों ने सीआइडी मुख्यालय में दबिश दी थी। इसके आधार पर विजिलेंस ने केस दर्ज किया गया। कई वर्ष तक भंडारी ने विजिलेंस केस झेला। उन्होंने पूरी कार्रवाई को गैर कानूनी करार दिया। 2016 में वह निचली कोर्ट से केस जीत गए।सेशन कोर्ट से केस उनके पक्ष में आया। 2017 में उन्होंने शिमला पुलिस से झूठे केस में फंसाने वाले अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करने का आग्रह किया। लेकिन अधिकारियों ने कोई कारवाई। बाद में कोर्ट के आदेश पर छोटा शिमला में एफआइआर दर्ज की गई।


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