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जलधर दैत्‍य की अराधना से स्‍थापित हुई थीं मां छिन्‍नमस्तिका, जयंती पर चिंतपूर्णी मंदिर का भव्‍य नजारा, देखिए तस्‍वीरें

Chintpurni Mata Jayanti माता चिंतपूर्णी की जयंती पर मंदिर को फूलों से सजाया गया है। हालांकि मंदिर पूर्णतया बंद है। सोशल मीडिया पर चिंतपूर्णी को जन्मदिन की शुभकामनाएं देने वालों का तांता लगा है। शास्त्रों में छिन्नमस्तिका धाम चिंतपूर्णी जलधर पीठ में तंत्र साधना के लिए अति उत्तम स्थल है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Wed, 26 May 2021 11:46 AM (IST)Updated: Wed, 26 May 2021 03:01 PM (IST)
जलधर दैत्‍य की अराधना से स्‍थापित हुई थीं मां छिन्‍नमस्तिका, जयंती पर चिंतपूर्णी मंदिर का भव्‍य नजारा, देखिए तस्‍वीरें
माता चिंतपूर्णी की जयंती पर मंदिर को फूलों से सजाया गया है।

चिंतपूर्णी, नीरज पराशर। Chintpurni Mata Jayanti, माता चिंतपूर्णी की जयंती पर मंदिर को फूलों से सजाया गया है। हालांकि मंदिर पूर्णतया बंद है। लेकिन लोगों की आस्था का सैलाब नहीं रुक रहा। सोशल मीडिया पर माता चिंतपूर्णी को जन्मदिन की शुभकामनाएं देने वालों का तांता लगा है। शास्त्रों में छिन्नमस्तिका धाम चिंतपूर्णी जलधर पीठ में तंत्र साधना के लिए अति उत्तम स्थल है। लोगों में ऐसी धारणाएं प्रचलित हैं कि चिंतपूर्णी भारतवर्ष के 52 शक्तिपीठों में से एक शक्ति स्थल है, लेकिन ऐसा न होकर चिंतपूर्णी दस महाविद्याओं में से एक है।

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मां छिन्नमस्तिका इस क्षेत्र में जलधर दैत्य की आराधना से स्थापित हुई थीं। त्रेता युग में जलधर दैत्य भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए थे। जनश्रुति के अनुसार एक समय में जब इंद्र देवता और वृहस्पति देवता ब्रह्मंड का भ्रमण कर रहे थे तो उन्हें रास्ते में एक बालक मार्ग में सोया मिला। वास्तव में वह बालक भगवान शिव थे। तभी अभद्र व्यवहार करते हुए इंद्र देवता ने बालक से रास्ते से हटने के लिए कहा।

यद्यपि वृहस्पति देवता तो भगवान शिव को पहचान चुके थे। लेकिन भगवान शिव बुरी तरह क्रोधित हो चुके थे। भगवान शिव के क्रोध से बचने के लिए वृहस्पति देव ने उनसे प्रार्थना की। लेकिन भगवान शिव का क्रोध सातवें आसमान तक जा पहुंचा था। देवताओं को बचाने के लिए भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से जलधर दैत्य की उत्पति की। जलधर दैत्य भगवान विष्णु, शिव व ब्रह्म का महान तपस्वी था। उसने दस महाविद्याओं में से आठ पर सिद्धि प्राप्त कर ली थी, जिससे कि वह महाबलशाली योद्धा बन गया था। स्थिति कुछ ऐसी बन गई थी कि उसने देवताओं व अत्याचार व अनाचार करने आरंभ कर दिए थे।

जलधर दैत्य से छुटकारा पाना देवताओं के लिए न सिर्फ मुश्किल बल्कि असंभव सा लग रहा था। जलधर दैत्य की पत्‍‌नी वृंदा पतिव्रता स्त्री थी। वह भी शिव उपासक थी। जब भी जलधर दैत्य पर कोई विपदा आती तो उसकी पतिव्रता पत्‍‌नी जलधर दैत्य को सभी मुसीबतों से बचा लेती थी। जब जलधर दैत्य के अत्याचारों से तंग आकर देवताओं ने भगवान शिव से गुहार लगाई तब भगवान शिव ने जलधर दैत्य का स्वयं वध करने का निश्चय किया, लेकिन जलधर दैत्य के श्राप से बचने के लिए भगवान विष्णु को उन्होंने भेष बदलकर वध करने के लिए कहा। भगवान विष्णु ने आखिर में जलधर दैत्य का वध कर दिया। अपने जीवन के अंतिम क्षणों में जलधर दैत्य ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया कि जो कोई उपासक जलधर पीठ क्षेत्र में शैव व शांक की आराधना करेगा, उसकी आराधना चार गुणा अधिक फलित होगी।

जलधर दैत्य ने जलधर पीठ क्षेत्र में 365 देवालयों व चार द्वारपालों की स्थापना की थी। यह कालेश्वर महादेव, कुंजेश्वर महादेव (लम्बा गांव), नंदीकेश्वर महादेव (चामुंडा) कुवेश्वर महादेव (जो अब पौंग बांध में जलमग्न हो चुका है), जलधर पीठ की चारों दिशाओं से रक्षा करते थे।

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