धर्मशाला के साथ बसा चीलगाड़ी, करीब डेढ़ सौ साल पहले बसे थे यहां गोरखा परिवार, जानिए क्यों पड़ा यह नाम
Dharamshala Chilgadi Village गाेरखा समुदाय सहित हाउसिंग बोर्ड काॅलोनी चीलगाड़ी की शान भी है। चील के पेेड़ों के बीच कुछ सरकारी आवास भी यहां पर बने हुए हैं। अंग्रेज शासकों द्वारा 1845 में जिला कांगड़ा का मुख्यालय धर्मशाला स्थानांतरित कर दिया गया।
धर्मशाला, दिनेश कटोच। गाेरखा समुदाय सहित हाउसिंग बोर्ड काॅलोनी चीलगाड़ी की शान भी है। चील के पेेड़ों के बीच कुछ सरकारी आवास भी यहां पर बने हुए हैं। अंग्रेज शासकों द्वारा 1845 में जिला कांगड़ा का मुख्यालय धर्मशाला स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बाद तुरंत शहर की प्रगति हुई और मैकलोडगंज, फरसेटगंज और चीलगाड़ी भी अपने अस्तित्व में आए। 1866 में गोरखा लाइट इनफेंट्री रेजीमेंट कांगड़ा से धर्मशाला में लाया गया। समय के साथ बहादुर गोरखा सैनिक सेवानिवृत्त होते गए और यह सैनिक परिवार सहित धर्मशाला शहर के आसपास के गांव में बसते गए।
अंग्रेज शासकों द्वारा इन गांव में से एक गांव ऐसा भी चिह्नित किया गया, जहां केवल गोरखा सैनिकों को देश के लिए बलिदान और बहादुरी के लिए भूमि देकर सम्मानित किया गया। वह सुंदर गांव था चीलगाड़ी। चीड़ के पौधों के बीच छोटे छोटे घर और आंगन में फूल आौर सामने धौलाधार की पहाड़ियां भी इस जगह की खूबसूरती काे ब्यां करती हैं।
गोरखा भाषा में चीलगाड़ी का अर्थ, चील (चीड़) के आगे का भाग है। जिस समय इस छाेटे क्षेत्र को बसाया गया था तो यहां पर बहुत ही कम घर थे। लेकिन बदलते परिवेश के साथ यहां पर हाउसिंग बोर्ड काॅलोनी, परिधि गृह व दूरसंचार का जिला कार्यालय भी स्थापित किया गया। चीलगाड़ी में इस समय बने परिधि गृह की भी अपनी महता है। यहां पर कई वर्ष पूर्व टीबी के मरीजों का इलाज भी होता था। लेकिन यहां से टीबी सेेनेटोरियम को टांडा में स्थानातंरित कर दिया गया और अब यहां परिधि गृह भी चीड़ के पेड़ों के बीच बना हुआ है। इसके साथ ही कुनाल पत्थरी मंदिर की तरफ चाय के बागान हैं, जो इस क्षेत्र की खूबसूरती को और बढ़ाते हैं।