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Budget Session of Himachal Pradesh: आखिर हिमाचल प्रदेश अपनी आय बढ़ाने पर क्यों नहीं देती है जोर?

Budget Session of Himachal Pradesh हिमाचल प्रदेश में राज्य द्वारा कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाने वाला एक विधेयक प्रस्तुत किया गया है जिससे यह विमर्श खड़ा होता है कि आखिर राज्य अपनी आय बढ़ाने पर क्यों नहीं जोर देते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 18 Mar 2021 10:11 AM (IST)Updated: Thu, 18 Mar 2021 10:11 AM (IST)
Budget Session of Himachal Pradesh: आखिर हिमाचल प्रदेश अपनी आय बढ़ाने पर क्यों नहीं देती है जोर?
आर्थिक तंगहाली कोई अंधेरा है तो कर्ज लेकर सबको कुछ न कुछ बांटने की संस्कृति खत्म करनी होगी।

नवनीत शर्मा। Budget Session of Himachal Pradesh चार्वाक यदि इस दौर में भी स्थूल रूप से उपस्थित होते तो उनसे अधिक संतुष्टि और प्रसन्नता और किसी को न होती। इतनी लोकप्रियता और संसद से लेकर विधानसभाओं तक इतना उद्धृत किया जाना आखिर आसानी से किसके हिस्से में आता है? चार्वाक की सुप्रचारित, सुप्रसिद्ध और सुश्रुत उक्ति को कौन नहीं जानता? जब तक जीओ, सुख से जीओ, ऋण लेकर घी पीओ। चार्वाक का यह सूत्र दो स्तरों पर कार्य करता है। सत्ता पक्ष को ऋण लेना पड़ता है, इसलिए वह इस सूत्र को आचरण में ढालता है। दूसरा स्तर विपक्ष का है, वह इस सूत्र को सत्ता पक्ष की तरफ देख कर उच्चारित करता है कि आप ऐसा कर रहे हैं।

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इसी सप्ताह हिमाचल विधानसभा के बजट सत्र में सत्तापक्ष की ओर से संशोधन विधेयक पेश किया गया, जिससे कर्ज लेने की सीमा और बढ़ जाएगी। कर्ज लेने की सीमा अब सकल घरेलू उत्पाद के तीन फीसद के बजाय पांच फीसद हो जाएगी। यह संशोधन विधेयक 2005 के कानून में संशोधन करेगा। यानी वर्ष 2005 में भी ऐसा विधेयक आया था, जब कांग्रेस की सरकार थी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का कहना है कि कांग्रेस जब सत्ता से गई थी, 50 हजार करोड़ रुपये का कर्ज छोड़ गई थी। कि.. राज्य को इस स्तर तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है, क्योंकि उनकी सरकारों ने कर्ज लिए। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री कहते हैं कि सरकार कंगाली तक पहुंच गई है। वह सरकार की नीयत पर भी सवाल उठाते हैं। सत्ता पक्ष का काम है, शासन चलाना और बजट का प्रबंध करना, जबकि विपक्ष का काम है सरकार पर नजर रखना और जहां वाजिब हो, वहां अपनी असहमति दर्ज करना। लेकिन कर्ज के मामले में ऐसा क्यों होता है कि विपक्ष में रहते हुए ही चिंता अधिक होती है?

वास्तव में चार्वाक की उक्ति और कर्ज की चिंता के कुछ वाक्य जस के तस रहते हैं बस पात्र बदल जाते हैं। जो आज मुकेश कह रहे हैं, वही वर्ष 2016-17 में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने वीरभद्र सिंह की सरकार के लिए कहा था। तब के कुछ बयान भाजपा नेता गणोश दत्त के भी हैं। सवाल यह नहीं है कि कर्ज कितना लिया या कितना लेना है, सवाल तो यह है कि कर्ज की जरूरत है क्यों और उसका विकल्प क्या हो सकता है? अगर सारी गलती पिछले वालों की है तो इस प्रकार जयराम ठाकुर वीरभद्र सिंह से सवाल पूछेंगे, वीरभद्र सिंह प्रेम कुमार धूमल से सवाल पूछेंगे, प्रेम कुमार धूमल फिर वीरभद्र सिंह से और वीरभद्र सिंह शांता कुमार से, शांता कुमार फिर वीरभद्र सिंह से और फिर यह बात राम लाल ठाकुर, और डॉ. यशवंत सिंह परमार तक जाएगी। जबकि लक्ष्य तो कर्ज का मर्ज दूर करना है।

जिस विपक्ष को अब कर्ज का बोझ अधिक लग रहा है, वह भी राजनीति से बाहर नहीं है। भूजल की स्थिति देखे बिना जब विधायक हैंडपंप की घोषणा करते आए हैं, जब तालाबों की जगह बस अड्डे बनते आए हैं, जब हर विधायक प्राथमिकता बैठक में सड़कें, शिक्षा या स्वास्थ्य केंद्र ही अब तक मांग में हैं तो कर्ज का आज तक की सरकारों ने उपयोग कहां किया? जब चंबा में 2,100 कॉलेज विद्याíथयों के लिए हिंदी पढ़ाने वाला केवल एक ही प्राध्यापक उपलब्ध है, कर्ज किसके लिए उठाती आई हैं सरकारें? सवाल यह है कि संसाधनों से अधिक पैर पसारने की मंशा है तो उन्हें जुटाने से परहेज कैसा? कुछ खर्च महत्वपूर्ण हैं, नहीं टाले जा सकते, लेकिन बहुत कम अंतराल पर नालों के किनारे कॉलेज के बोर्ड लगा कर किसका भला हो सका है? अगर इस कर्ज के पीछे राजनीतिक विवशताएं हैं तो उन मजबूरियों को हटाने का कार्य करें कृपया। बोर्ड और निगम घाटे में आज से नहीं हैं। आज का विपक्ष जब पक्ष में था, क्या तब ये लाभ में थे?

विरोधाभास केवल यह है कि पक्ष जब विपक्ष में होता है, तो बात कुछ और हो जाती है और विपक्ष जब पक्ष में बदल जाता है तो प्राथमिकताएं और हो जाती हैं। मुद्दा तो हिमाचल के संसाधनों को देखने का है। हर पांच साल के बाद भूमिका बदल लेने से वास्तविक दायित्व नहीं बदल जाते। जब आमदनी कम और खर्च अधिक होंगे तो संसाधनों के लिए दृष्टि जुटानी पड़ेगी। पर्यटन, बागवानी, ऊर्जा से आगे जाकर युवाओं के लिए कौशल के रास्ते खोलने होंगे। पटवारी या क्लर्क की भर्ती से आगे बढ़ना होगा। अगर आर्थिक तंगहाली कोई अंधेरा है तो मुफ्त बांटने की या कर्ज लेकर सबको कुछ न कुछ बांटने की संस्कृति खत्म करनी होगी।

हिमाचल प्रदेश में संपन्न हुई इन्वेस्टर्स मीट के फल संभवत: कोरोना ने रोके हैं लेकिन अब जान भी, जहान भी और अपने संसाधनों का आसमान भी सूत्र होना चाहिए। यह काम सत्तापक्ष और विपक्ष एक साथ कर सकते हैं। मलिका नसीम ने कहा है :

रोशनी कर्ज मांगता है क्यों

उठ अंधेरे निचोड़ कर रख दे।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]


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