Move to Jagran APP

डीएवी कॉलेज कांगड़ा के सहायक प्रोफेसर अरुणदीप ने अंतरराष्ट्रीय इ-शोध संगोष्ठी में प्रस्तुत किया शोध

एमसीएम डीएवी कॉलेज कांगड़ा में संस्कृत विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत डॉ अरुणदीप शर्मा ने तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय इ-शोध संगोष्ठी में शोध पत्र प्रस्तुत किया। संगोष्ठी में भारत के विभिन्‍न देशों के लगभग 80 प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।

By Richa RanaEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2020 01:08 PM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2020 01:08 PM (IST)
डीएवी कॉलेज कांगड़ा के सहायक प्रोफेसर अरुणदीप  ने अंतरराष्ट्रीय इ-शोध संगोष्ठी में प्रस्तुत किया शोध
डॉ अरुणदीप शर्मा ने तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय इ-शोध संगोष्ठी में शोध पत्र प्रस्तुत किया।

धर्मशाला, जेएनएन। एमसीएम डीएवी कॉलेज कांगड़ा में संस्कृत विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत डॉ अरुणदीप शर्मा ने तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय इ-शोध संगोष्ठी में शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस इ-शोध संगोष्ठी का आयोजन संस्कृत विभाग, मैत्रेयी महाविद्यालय नई दिल्ली एवं संस्कृत विभाग , रामचन सिंह राजकीय महिला महाविद्यालय, मऊ उत्तर प्रदेश के सौजन्य से किया गया।

loksabha election banner

संगोष्ठी में भारत के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस, सिंगापुर, यूएई व अमेरिका आदि देशों के लगभग 80 प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। संगोष्ठी का मुख्य विषय संस्कृत वांग्मय में अर्वाचीन कवियों का योगदान था। इसमें संस्कृत के मूर्धन्य विद्वानों में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति अभिराज राजेंद्र मिश्र, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रासबिहारी द्विवेदी, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान जयपुर परिसर के प्रोफेसर रमाकांत पांडे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर हरिदत्त शर्मा के अतिरिक्त सिंगापुर के जल संरक्षण विशेषज्ञ और संस्कृतज्ञ किशोर डोवाटिया तथा मॉरीशस से सनातन धर्म सभा के आचार्य पवन प्रवीण उपस्थित रहे।

इस अवसर पर शोध समारिका का वर्चुअल विमोचन भी किया गया, जिसने पहली बार लेखों को पीडीएफ ऑडियो एवं वीडियो तीनों फॉर्मेट में संस्कृत हिंदी एवं अंग्रेजी में रिलीज किया गया। डॉक्टर अरुण का कहना है कि विगत 200 वर्षों में लगभग 6000 संस्कृत ग्रंथों की रचना हुई है जो यह दर्शाती है कि वर्तमान समय में भी संस्कृत कितनी परिपक्वता के साथ आगे बढ़ रही है और इस शोध संगोष्ठी में न केवल भारत के अपितु विश्व के विद्वानों का यह मानना है कि संस्कृत न केवल सभी भाषाओं की अपितु संपूर्ण मानव जाति की जननी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.