शहीद अंकुश के परदादा ने भी किए थे दुश्मन से दो-दो हाथ, चार पीढि़याें ने की सेना में रहकर देश सेवा
Martyrs of Galwan बलिदानी के परिवार की चार पीढिय़ों ने देश सेवा के जज्बे से सेना में भर्ती होकर मातृ भूमि की रक्षा के लिए आगे बढ़ कर कार्य किया है।
जाहू, जेएनएन। 'शहीदों की चिताओं पर हर वर्ष लगेंगे मेले, वतन पर मर मिटने वालों का यही बाकी यही निशां होगा', इस वाक्य को बलिदानी सिपाही अंकुश ठाकुर ने चरितार्थ किया है। बलिदानी के परिवार की चार पीढिय़ों ने देश सेवा के जज्बे से सेना में भर्ती होकर मातृ भूमि की रक्षा के लिए आगे बढ़ कर कार्य किया है।
बलिदानी अंकुश ठाकुर के परदादा कै. सीताराम ने पाकिस्तान के साथ 1965 में व 1971 की लड़ाई में दो-दो हाथ करके कड़ा मुकाबला किया था। अंकुश के दादा रण सिंह, पिता अनिल कुमार ने भी भले ही तीन पंजाब रेजिमेंट में नौकरी करके देश की सेवा की है। लेकिन 21 वर्षीय अंकुश ठाकुर ने परदादा सीता राम के पदचिन्हों पर गलवन घाटी में चीन और भारतीय सेना की झड़प में शहादत का जाम पिया है।
शुक्रवार सुबह सात बजे से बलिदानी के घर सांत्वना देने वालों का आना शुरू हो गया था। आठ से नौ बजे तक घर के आंगन व कमरे में हुजूम उमड़ गया। भारी गर्मी से बेपरवाह लोग शहीद के स्वजनों का दुख कम करने व हौसला देने के लिए सांत्वना दे रहे थे।
तीन दिन से नहीं जला चूल्हा
बलिदानी अंकुश के घर में इस दुखद घड़ी में तीन दिन तक चूल्हा भी नहीं जला है। बलिदानी की दादी कमलेश कुमारी का कहना है कि देश सेवा में चार पीढिय़ों में एक-एक करके अपनी जिम्मेदारी निभाई है। पोते अंकुश की पार्थिव देह देखकर पथराई आंखों से दुख साफ झलक रहा था। दादी अपनी बहू ऊषा रानी व बेटे अनिल कुमार को शहादत पर साथ खड़ी होकर उन्हे हौसला दे रही थी। पोते के शव को देखकर बूढ़ी दादी कमलेश कुमारी में अपना हौसला नहीं छोड़ा और गर्व से कहा बेटा तूने हमारा व देश का नाम रोशन कर दिया है।