ब्लैक फंग्स का प्रथम चरण में पता चलने पर उपचार संभव
जागरण संवाददाता हमीरपुर ब्लैक फंग्स का प्रथम चरण में पता चलने पर उपचार संभव है। लक्षण दि
जागरण संवाददाता, हमीरपुर : ब्लैक फंग्स का प्रथम चरण में पता चलने पर उपचार संभव है। लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सक को दिखाएं। देरी होने पर केवल सर्जरी ही इसका समाधान है।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एचपीयू) शिमला के लाइफ सांइस विभाग के डीन एवं पर्यावरण विज्ञान के अध्यक्ष डा. आनंद साग ने कहा कि ब्लैक फंग्स के लक्षण असहनीय सिरदर्द, नाक का बहना, खांसने पर बलगम में खून आना, चेहरे पर एक तरफ सूजन के साथ सुन होना, दांतों के हिलने व चबाने से दर्द होना और आंख में लाल रंग का जाला बनना शामिल हैं। डा. आनंद सागर जिला हमीरपुर की गलोड़ तहसील के मंडयाणी गांव निवासी हैं।
उनका कहना है कि ब्लैक फंग्स के लिए विशेषज्ञ लापोसोमल एम्फोटेरीसिन-बी इंजेक्शन का प्रयोग कर रहे हैं। इसकी बाजार में कीमत पांच से सात हजार है। ब्लैक फंग्स से पीड़ित मरीज को ठीक करने के लिए ही 25-30 इंजेक्शन की जरूरत पड़ सकती है। ब्लैक फंग्स से बचाव के लिए बरती जाने वाली सावधानियों में सफाई रखना, बिना चिकित्सक परामर्श से किसी भी दवा का सेवन न करना और इलाज शुरू होने के बाद चिकित्सक से नियमित संपर्क बनाए रखें।
यह अत्यंत सुकून की बात है कि यह संक्रमित रोग नहीं है इसलिए लोग अफवाहों पर विश्वास न करें, मरीज का हौसला बनाए रखें और आम जनता तक इसकी रोकथाम पर प्रचार करें, क्योंकि जरा सी लापरवाही भारी पड़ सकती है।
उन्होंने बताया कि सभी दैनिक जीवन में फंफूद व व फंग्स से परिचित हैं। पूरे विश्व में अनुमानित लगभग 15 लाख फंग्स हैं, परंतु अभी तक विस्तृत अध्ययन केवल एक लाख फंग्स प्रजातियों पर ही संभव हो पाया है। भारत से अब तक करीब 30 हजार फंग्स की प्रजातियों के पाए जाने की जानकारी उपलब्ध है।
खाद्य पदार्थो की अधिकतर बीमारियां फंग्स की वजह से ही होती हैं। म्यूकर मिट्टी में पाया जाने वाला फंग्स आमतौर पर गले-सड़े पदार्थो पर उग कर जीवन निर्वाह करता है। बीज के रूप में इसके स्पोटस वातावरण में भी घूमते रहते हैं। यह जाइगोमासीटीस श्रेणी का कवक एक अवसर वादी फंग्स है और मौका मिलते ही कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को शिकार बना लेता है और जिनका रोग प्रतिरोधक क्षमता कोविड की दवाओं से कमजोर हो गई है या जो कोविड मरीज आइसीयू में आक्सीजन पर रहे हों या जो कोविड और शुगर पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं। इसके अतिरिक्त कैंसर और किडनी ट्रांसप्लांट के मरीज भी चपेट में आ सकते हैं। आइसीयू में फंग्स युक्त उपकरण और पूर्ण रूप से सफाई का न होना भी इसके फैलाव में वृद्धि कर सकता है।