कम करनी होंगी छुट्टियां, परीक्षा पद्धति में भी बदलाव की जरूरत
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के स्कूल ऑफ लाइफ साइंस के डीन प्रो. अबरीश के मुताबिक, हर मौसम में बच्चों को छुट्टियां देकर उनके भविष्य के साथ खेला जा रहा है।
जागरण संवाददाता, धर्मशाला। समय के साथ-साथ शिक्षा प्रणाली तो बदल रही है, लेकिन पिछले 15 साल से इसका रुख शायद गलत दिशा में कर दिया है। इसका परिणाम है कि आज की शिक्षा युवाओं की जरूरतों को पूरा करने एवं रोजगार उपलब्ध करवाने में नाकाम साबित हो रही है। इसका मुख्य कारण हर मौसम में छुट्टियों की भरमार और मुख्य रूप से शिक्षा एवं शिक्षकों में राजनीतिक हस्तक्षेप है। दिन-ब-दिन शिक्षा के गिर रहे स्तर की टीस आज बुद्धिजीवी वर्ग में है।
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के स्कूल ऑफ लाइफ साइंस के डीन प्रो. अबरीश कुमार महाजन कहते हैं कि पिछले 10 से 15 साल के बीच शिक्षा की हालत यह हो गई है कि गर्मी हो तो छुट्टियां, सर्दी हो तो छुट्टियां और बरसात हो जाए तो छुट्टियां। हर मौसम में बच्चों को छुट्टियां देकर उनके भविष्य के साथ खेला जा रहा है और व्यावहारिक शिक्षा नहीं मिल रही है। दूसरी ओर सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के नाम पर बच्चों को पढ़ाई से दूर किया जा रहा है और रही सही कसर पांचवीं व आठवीं बोर्ड परीक्षा समाप्त कर पूरी कर दी है। बच्चों में न परीक्षा का डर है और न ही फेल होने का भय। इन हालात में बच्चे पढ़ाई क्यों करें। वर्तमान में शिक्षा की हालत यह है कि युवाओं को रोजगार प्राप्त करना टेड़ी खीर से कम नहीं है।
अगर सच में अर्थपूर्ण शिक्षा चाहिए तो शिक्षा प्रणाली में बदलाव करना होगा। सरकारों को सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में सुविधाएं उपलब्ध करवानी होंगी और प्रेक्टिकल शिक्षा को महत्व देना होगा। गुणात्मक शिक्षा का अर्थ किताबों का भार नहीं बल्कि प्रेक्टिकल एवं व्यावहारिक शिक्षा देना है। इसके अलावा छुट्टियों के लिए समय निर्धारित करना होगा। चाहे दो माह की छुट्टियां एक साथ हो जाएं। इससे पहले भी मौसम बदलते थे पर नहीं बदलते थे तो छुट्टियों के प्रारूप।