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महामारी के दौर में जीना जरूरी, लेकिन संक्रमण से बचाव ही हो पहली प्राथमिकता

जरूरीयात के कामों पे हम निगाह रखें वबा के दौर में जीना बहुत जरूरी है। अस्पतालों में सुविधाएं अवश्य बढ़ी हैं पर संक्रमण से बचाव ही हो पहली प्राथमिकता। केंद्र सरकार इस स्थिति पर चिंतित है। लेकिन सभी हालात के बीच लोगों के बारे में सोचा जा रहा है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Thu, 15 Apr 2021 10:15 AM (IST)Updated: Thu, 15 Apr 2021 10:15 AM (IST)
महामारी के दौर में जीना जरूरी, लेकिन संक्रमण से बचाव ही हो पहली प्राथमिकता
देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर बेकाबू हो चुकी है। (फोटो: रायटर)

[नवनीत शर्मा]। कोरोना बहुत फैल रहा है, क्या लॉकडाउन लग जाएगा? छत्तीसगढ़ से हिमाचल प्रदेश में निर्माण कार्य करने आए मीनू प्रसाद मसाले पर ईंट रखकर अपने औजार से उसे दो बार बिठाकर कहते हैं, ‘बस जो भी हो जाए, लॉकडाउन न लगे।’ पूरा वर्ष ऑनलाइन पढ़ाई करती रही सीबीएसई की एक छात्र परेशान है कि उसकी परीक्षा उसके ही ‘फायदे’ के लिए फिर से टाल दी गई है पर यह पता नहीं कि अब आगे क्या होगा। हिमाचल प्रदेश ने भी दसवीं, बारहवीं तथा स्नातक की परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं। महाराष्ट्र में बुधवार से लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध हैं। केंद्र सरकार इस स्थिति पर चिंतित है। इस बात का पता यहां से भी लगता है कि दुनिया के सभी कोरोना टीकों के लिए रास्ते खोल दिए गए हैं।

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लेकिन हिमाचल प्रदेश की तुलना जो लोग महाराष्ट्र या मुंबई से कर रहे हैं, साफ है कि कोरा बुद्धि विलास उनका शौक है। महाराष्ट्र से लॉकडाउन कॉपी कर उसे हिमाचल प्रदेश में पेस्ट कर देने की सलाह उचित नहीं है। हिमाचल के पास एक भी बड़ा शहर नहीं है, जो क्षेत्रफल या जनसंख्या के मानदंड पर शहर की परिभाषा को पूरा करता हो। शिमला अवश्य बड़ा है, राजधानी है, बाकी सब कस्बे और शहर के बीच जैसा कुछ है। सत्तर लाख जनसंख्या वाला हिमाचल भीड़ का कोई दृश्य उत्पन्न नहीं करता। कोरोना की दूसरी लहर में लक्षण कम हैं, पर तेजी से फैल रहा है। कुल मिलाकर हम कोरोना के बारे में जितना 22 मार्च, 2020 तक जानते थे, उतना ही अब जानते हैं। कब संक्रमण बढ़ जाए और कब कम हो जाए, कहना कठिन है। यही वह समय होता है जब आत्म अनुशासन दिखाई देना चाहिए। यही समय प्राथमिकताएं तय करने का होता है कि परीक्षाएं आवश्यक हैं या नगर निगम चुनाव की विजय रैलियां। समय यह देखने का है कि नवरात्र पर मंदिरों में भीड़ बढ़ाने के बजाय, घर से ही श्रद्धा के साथ अर्जी लगाई जाए। वही समय जब नगर निगम चुनाव में मतदान के लिए आदमी को आदमी पर सवार नहीं होना था। तय किया जाना चाहिए कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो कतई नहीं रुकने चाहिए और कौन से ऐसे हैं, जिन्हें न करें तो भी जीवन में विशेष अंतर नहीं आएगा।

जैसे एक छोटा सा काम मास्क पहनने का है। अब मंडी नगर निगम के जश्न में जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर और सुंदरनगर के विधायक राकेश जंबाल, महापौर और उपमहापौर समेत मास्क में दिख रहे हैं। लेकिन पीछे कतिपय चेहरे ऐसे भी हैं जिनकी प्रसन्नता के आभामंडल में मास्क भस्म हो चुका है। धर्मशाला में बने दृश्य के मुताबिक मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और वन मंत्री राकेश पठानिया मास्क में हैं, लेकिन लाल-पीले हारों से लैस नवनिर्वाचित महापौर और उपमहापौर के चेहरे से मास्क वैसे ही गायब है, जैसे कतिपय लोगों के चेहरों से कोरोना का भय।

जाहिर है ‘समझदार’ जनता उसी पथ पर चलती है जिस पथ पर महा जन चलते हैं। लेकिन यह भी अतिवाद है। आम नागरिक ही अपना भला बुरा स्वयं नहीं सोचेगा तो उसे किसी और से उम्मीद रखने का क्या अधिकार है? जिन्हें अपनी प्राणवायु से ही प्रेम नहीं, उनकी मदद ईश्वर भी कैसे करेंगे। इस बीच यह जानना सुखद लगा कि कोरोना से संक्रमित वीरभद्र सिंह का ऑक्सीजन स्तर 99 है और उनकी बाकी जांच रपटें ठीक हैं। यह राहत देने वाला पक्ष है कि अभी तक हिमाचल प्रदेश लॉकडाउन के पक्ष में नहीं है और उसे पर्यटन उद्योग की चिंता है। उसे चिंता है आíथकी की। लेकिन वहां पर्यटकों की भूमिका बड़ी हो जाती है।

कुछ राज्य हैं जहां से आने पर इस आशय की रपट अनिवार्य है कि आने वाला व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव नहीं है। इसके बावजूद शारीरिक दूरी और मास्क की शर्तो का उल्लंघन करने वाले पर्यटक भी देखने में आ रहे हैं। 

अब यह भी देखने वाली बात है कि पुलिस को ऐसे संदेश कौन दे रहा है कि पर्यटक हैं तो सख्ती कम करें। महामारी के जंग में इस प्रकार का वर्गीकरण अगर कहीं है तो वह ठीक नहीं है। यह ठीक है कि लोगों में भय नहीं होना चाहिए, लेकिन सावधानी तो अनिवार्य हो।

रही स्वास्थ्य सेवाओं की बात तो वेंटीलेटर पहले से कहीं अधिक हैं। अब तक उन्हें चलाने वाले भी तैयार हो चुके होंगे, ऐसी आशा है। कोरोना के मरीज किस स्थिति में हैं, यह बताने के लिए इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में एक पहल हुई है। चिकित्सा उप अधीक्षक एवं वरिष्ठ फॉरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. राहुल गुप्ता कहते हैं, ‘हमने शुरुआत की है। हर मरीज के स्वजनों को फोन पर मरीज की स्थिति के बारे में बताया जाता है।’ बाकी अस्पताल भी ऐसा प्रयास कर सकते हैं ताकि स्वजनों को मरीज का हाल लेने के लिए इधर-उधर न भटकना पड़े। चूंकि शिमला में या जिला मुख्यालयों में आसीन प्रशासन सारा कार्य स्वयं नहीं कर सकता, इसलिए आवश्यक है कि नवनिर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों और पार्षदों की सेवाएं ली जाएं। 

उल्लेखनीय है कि एक पार्षद अपने क्षेत्र के सौ घरों तक सीधी पहुंच रखता है। यह तंत्र खंड विकास अधिकारी के माध्यम से सक्रिय हो सकता है। विभाग का दायित्व ऐसे विषयों की पड़ताल करना भी है कि 108 एंबुलेंस से मांगी गई मदद का फोन यह कह कर न टाला जाए कि पहले आशा वर्कर से बात करो। फिर कोई अंदर से ही यह सलाह भी दे कि अगर एंबुलेंस की सेवा चाहते हो तो सीने में दर्द और घबराहट की बात करो।

लेखक- राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश


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