न्योला के लिए सड़क होती तो हो सकते थे अंतिम दर्शन
संवाद सहयोगी साहो न्योला गांव में अगर भाग्यरेखा होती तो स्वजनों को जान गंवानों को अंतिम द
संवाद सहयोगी, साहो : न्योला गांव में अगर भाग्यरेखा होती तो स्वजनों को जान गंवानों को अंतिम दर्शन हो सकते थे। आजादी के सात दशक बाद भी यहां तक सड़क नहीं पहुंची है। चंबा-साहो मुख्य मार्ग से उक्त गांव तक महज तीन किलोमीटर में ही सड़क बन सकती है। इस बारे में ग्रामीण कई बार पंचायत प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार से सड़क बनाने की मांग कर चुके हैं। गांव में एक साथ तीन लोगों की मौत के बाद स्वजन शव को घर लाने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन वीरवार सुबह बारिश तथा सड़क से गांव की दूरी को देखते हुए लोगों ने पोस्टमार्टम के बाद सीधे श्मशानघाट में ही अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। बाद में सूचना मिली कि समय की कमी तथा पहाड़ी रास्ते के कारण शवों को घर नहीं लाया जाएगा।
ऐसा पहला मौका नहीं है कि सड़क न होने के कारण इस प्रकार से लोगों को निराशा हाथ लगी हो। इससे पहले भी इसी प्रकार से बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचाने तथा ठीक होने के बाद सड़क से घर पहुंचाने तक घंटों का सफर तय करना पड़ता है। मरीजों को पालकी में उठाकर घर पहुंचाया जाता है। इसके अलावा रोजमर्रा के सामान को भी पीठ पर लादकर घर पहुंचाने की परंपरा बीते लंबे समय से चली आ रही है।
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ग्रामीण अगर पंचायत में प्रस्ताव पारित करके लोक निर्माण विभाग को प्रस्ताव की प्रतिलिपि देते हैं तो इस बारे में सरकार से मांग करके सड़क का सर्वे करवाकर सड़क को बनाया जा सकता है।
-चंद्र मोहन, सहायक अभियंता लोक निर्माण विभाग चंबा