विलुप्त प्रजातियों में शुमार है कस्तूरी मृग, जानिये क्यों इसकी नाभि से निकलती है खुशबू Chamba News
अपनी आकर्षक खूबसूरती और मनमोहक खुशबू के लिए पहचाने जाने वाले कस्तूरी मृग की फोटो खजियार वन्य जीव अभयारण्य के कैमरे में कैद हुआ है।
चुवाड़ी, जेएनएन। कुदरत ने देवभूमि हिमाचल को बेहद खूबसूरती के साथ ही ऐसे वन्य प्राणियों की भी सौगात दी है जो दुनिया में लगातार विलुप्त हो रहे हैं। जिला चंबा के वन्य जीव अभयारण्य में भूरे भालू और बर्फानी तेंदुए की मौजूदगी के बाद अब अपनी आकर्षक खूबसूरती और मनमोहक खुशबू के लिए जाने जाते कस्तूरी मृग की मौजूदगी दर्ज हुई है। कालाटोप खजियार वन्य जीव अभयारण्य में विभाग के डीएसएलआर कैमरे में बीते वीरवार को कस्तूरी मृग की फोटो कैद हुई। शुक्रवार को वाइल्ड लाइफ विभाग और स्थानीय व्यवसायी सूरज ने कस्तूरी मृग के फोटो दिखाए। कस्तूरी मृग (नर हिरण) के शरीर में एक विशेष पोटली होती है जिससे एक खुशबू निकलती है।
डीएफओ वाइल्ड लाइफ निशांत मंढ़ोत्रा ने बताया कि इस वर्ष की शुरुआत में भी अभयारण्य में कस्तूरी मृग की उपस्थिति रिपोर्ट की गई थी। तब विभाग को ऐसी कोई तस्वीर नहीं मिली थी। अब कालाटोप-खजियार अभयारण्य से इसका पहला फोटोग्राफिक साक्ष्य मिला है। इससे पहले अक्टूबर 2018 में चंबा में कुगती वन्यजीव अभयारण्य में वन्यजीव गणना के दौरान भी फोटोग्राफिक साक्ष्य के साथ कस्तूरी मृग की मौजूदगी दर्ज की गई थी।
सर्फ एशिया में ही बचे हैं कस्तूरी मृग
कस्तूरी मृग मुख्य रूप से दक्षिणी एशिया के पहाड़ों में, विशेष रूप से हिमालय के वनाच्छादित और अल्पाइन स्क्रब निवास में रहते हैं। यूरोप में लगभग लुप्त हो चुकी यह प्रजाति अब सिर्फ एशिया में ही बची है। वहीं, हिमाचल के चंबा जिले में इनकी मौजूदगी यहां के समृद्ध वन्य जीवन की गवाह है, जिसमें हर वन्य जीव को जीने का हक है।
नाभि में सुगंधित धारा
अपनी आकर्षक खूबसूरती के साथ-साथ यह जीव नाभि से निकलने वाली खुशबू के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है जोकि इस मृग की सबसे बड़ी खासियत है। इस मृग की नाभि में गाढ़ा तरल (कस्तूरी) होता है जिसमें मनमोहक खुशबू की धारा बहती है। कस्तूरी केवल नर मृग में ही पाया जाता है।
कस्तूरी ही जान की दुश्मन
डीएफओ निशांत मंडोत्रा ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के अनुसार कस्तूरी मृग लुप्तप्राय श्रेणी की प्रजाति है। इस वन्य जीव को उसके कस्तूरी और मांस के लिए मारे जाने का खतरा है। इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची एक में रखा गया है। इसकी कस्तूरी का इत्र के अलावा कई औषधियों में इस्तेमाल होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत लाखों में है। कस्तूरी मृग की यही खासियत इस निरीह हिरण की दुश्मन बन जाती है।
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