नेताजी को स्वास्थ्य लाभ देने वाली सुभाष बावड़ी आज खुद बीमार
महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जानी जाने वाली पर्यटन नगरी डलहौजी की सुभाष बावड़ी के जीर्णोद्धार व यहां नियमित सफाई व्यवस्था की दरकार है।
विशाल सेखड़ी, डलहौजी
महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जानी जाने वाली पर्यटन नगरी डलहौजी की सुभाष बावड़ी के जीर्णोद्धार व यहां नियमित सफाई व्यवस्था की दरकार है। वर्ष 1937 में स्वास्थ्य लाभ के लिए करीब पांच माह डलहौजी में रहने के चलते नेताजी का डलहौजी से अटूट संबंध रहा था। नेताजी की यादगार में डलहौजी के एक चौक का नाम सुभाष चौक रखकर वहां नेताजी की प्रतिमा वाला स्मारक स्थल बनाया गया है जबकि नेताजी डलहौजी के करेलनू मार्ग पर गांधी चौक के समीप स्थित जिस बावड़ी का जल नियमित रूप से सेवन करने से स्वस्थ हुए थे, उस बावड़ी का नाम भी नेताजी के नाम पर सुभाष बावड़ी रखा गया था।
इस स्थल को नेताजी के यादगार स्थल के तौर पर विकसित किया गया था परंतु वीर स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्रबोस के नाम से जानी जाने वाली सुभाष बावड़ी की लंबे समय से सुध नहीं ली गई है। देखरेख के अभाव में बावड़ी स्थल अपनी आभा खोने लगा है। यहां नियमित साफ-सफाई का कोई प्रावधान नहीं है। बावड़ी परिसर में करीब डेढ़ वर्ष पहले गिरे हुए एक डंगे का भी पुर्ननिर्माण नहीं हो पाया है।
पर्यटन सीजन के दौरान रोजाना संकड़ों पर्यटक यहां बावड़ी के दर्शन कर यहां के स्वास्थ्यवर्द्धक जल का सेवन करने पहुंचते हैं परंतु बावड़ी स्थल के आसपास फैले कचरे व यादगार स्थल के भवन की जर्जर हालत को देखकर सैलानियों को निराशा होती है। इतना ही नहीं इस यादगार स्थल की देखरेख के लिए यहां कोई नियमित कर्मचारी भी तैनात नहीं दिखाई देता। लिहाजा इस ऐतिहासिक स्थल पर साफ-सफाई, मरम्मत व देखरेख के लिए कर्मचारी की व्यवस्था कर इस स्थान की गरिमा को बनाए रखने के लिए प्रशासन व नगर परिषद को ठोस कदम उठाने चाहिए।
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ऐतिहासिक है सुभाष बावड़ी
मालूम हो कि वर्ष 1937 में अंग्रेजों की जेल में कैद नेताजी की चिकित्सीय जांच में उन्हें क्षय रोग (टीबी)के लक्षण पाए जाने पर अंग्रेजों ने उन्हें जेल से रिहा कर दिया था। स्वास्थ्य लाभ के लिए नेताजी मई, 1937 में डलहौजी आए थे। नेताजी डलहौजी के पंजपूला रोड पर अपने एक मित्र डाक्टर धर्मवीर के घर में ठहरे थे। अपने डलहौजी प्रवास के दौरान नेताजी रोजाना करेलनू मार्ग पर सैर करने के लिए जाते थे। यहां की शुद्ध वायु व वातावरण से नेताजी में नई शक्ति का संचार हुआ। सैर के दौरान नेताजी करेलनू मार्ग पर स्थित इस बावड़ी का जल नियमित रूप से पीते थे और कई घंटे बावड़ी के समीप देवदार के पेड़ों की छांव में बैठकर आजादी की लड़ाई की योजनाएं बनाते थे। कहा तो यह भी जाता है कि नेताजी की गुप्त डाक भी यहां पर एक्सचेंज होती थी। हालांकि डाक लेकर कौन नेताजी से मिलने आता था और डाक लेकर जाता था, यह आजतक रहस्य ही है। बावड़ी का जल चमत्कारी साबित हुआ और पांच माह तक जल नियमित रूप से सेवन करने से नेताजी एकदम स्वस्थ होकर अक्टूबर में फिर से स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए थे। अब भी यहां का जल उतना ही स्वास्थ्यवर्धक है।
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सुभाष बावड़ी के जीर्णोद्धार के लिए बनाई जाएगी विशेष योजना
नेताजी से जुड़े होने के चलते सुभाष बावड़ी एक ऐतिहासिक स्थल है। करीब डेढ़ वर्ष पहले क्षतिग्रस्त हुए डंगे की मरम्मत क्यों नहीं हो पाई, इस पर टिप्पणी नहीं करूंगा। नगर परिषद में दो माह पहले ही उपाध्यक्ष पद संभाला है और इस पद पर रहते हुए सुभाष बावड़ी के जीर्णोद्धार के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे। शहर को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए भी निरंतर प्रयासरत रहूंगा। सुभाष बावड़ी को सुंदर व स्वच्छ बनाए रखने के लिए विशेष योजना बनाई जाएगी। उचित रखरखाव की व्यवस्था के साथ बावड़ी के आसपास के क्षेत्र को पर्यटकों व स्थानीय लोगों के लिए विकसित किया जाएगा।
-संजीव पठानिया, उपाध्यक्ष नगर परिषद डलहौजी।