अनियंत्रित क्रोध - बचें इसके विस्फोट से
हम सभी अपनी भावनाओं को कभी हंसकर, कभी रोकर या कभी क्रोधित होकर ही व्यक्त करते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन भावनाओं पर हमारे विवेक का एक जबर्दस्त नियंत्रण होता है। इस कारण हम अपनी भावना को सीमित रूप से समय व सामाजिक स्थितियों को भांपते हुए व्यक्त करते हैं। यही कारण है कि
हम सभी अपनी भावनाओं को कभी हंसकर, कभी रोकर या कभी क्रोधित होकर ही व्यक्त करते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन भावनाओं पर हमारे विवेक का एक जबर्दस्त नियंत्रण होता है। इस कारण हम अपनी भावना को सीमित रूप से समय व सामाजिक स्थितियों को भांपते हुए व्यक्त करते हैं। यही कारण है कि एक परिपक्व व्यक्ति को पता होता है कि उसे कहां हंसना है, किसके सामने रोना है या किस परिस्थिति में कितना क्रोधित होना है।
भावनात्मक अस्थिरता से जुड़े कुछ ऐसे रोग होते हैं, जिसमें रोगी के विवेक का उसकी भावना पर कोई भी नियंत्रण नहीं रह जाता। किसी भी विपरीत परिस्थिति में रोगी गंभीर रूप से क्रोधित होकर अपना आपा खो बैठता है और मारपीट व तोड़फोड़ करने लगता है। व्यक्ति की यह स्थिति अनियंत्रित क्रोध से संबंधित है।
लक्षण
-कोई भी कार्य मन के अनुसार न होने पर अचानक गुस्सा आना और दूसरों के साथ उलझना व बहस करना।
-समझाने या बहस में प्रतिरोध करने पर रोगी गंभीर रूप से तैश में आ जाते हैं और तुरंत मारपीट पर उतर आते हैं।
-ऐसे अनियंत्रित क्रोध के चलते रोगी को यह नहीं दिखता कि अगला बड़ा है या छोटा, मालिक है या अधिकारी, वह घर पर है या सार्वजनिक स्थान पर या मारपीट होने पर वह खुद सुरक्षित भी रहेगा या नहीं।
-कई बार ऐसे रोगी जो दूसरों पर गुस्सा नहीं उतार पाता, तो वह स्वयं को ही नुकसान पहुंचाने लगते हैं और जोर से अपना हाथ या सिर दीवार पर दे मारते हैं या चाकू या ब्लेड से अपना हाथ व कलाई जख्मी कर लेते हैं।
-एक बार मारपीट के बाद गुस्सा शांत हो जाता है, तब रोगी का मन आत्मग्लानि से भर जाता है और वह यह महसूस करता है कि उसे इस प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए था और रोगी अक्सर बार-बार माफी भी मांगते हैं।
-ऐसे में रोगी हमेशा यह प्रण करते हैं कि भविष्य में वे अपने क्रोध पर नियंत्रित करेंगे, लेकिन फिर अगले पल किसी बात पर गंभीर रूप से मारपीट कर बैठते हैं।
इलाज
-अनियंत्रित क्रोध यदि सामाजिक और व्यावहारिक जीवन नष्ट कर रहा है, तो इसका इलाज कराना अनिवार्य हो जाता है।
-इस रोग के इलाज में मनोचिकित्सा का प्रमुख स्थान है और इस दौरान परिजनों के सहारे रोगी को उसकी भावना पर नियंत्रण करने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
-भावनात्मक अस्थिरता व नशे पर काबू पाने के लिए मनोचिकित्सा के साथ कारगर दवाओं का भी उपयोग किया जाता है।
(डॉ.उन्नति कुमार मनोरोग विशेषज्ञ)