चुनाव में ढोल पीटने वाला विपक्ष अब गन्ने पर क्यों चुप
गन्ना प्रदेश की राजनीतिक फसल है। चुनाव के दिनों वोट बटोरने का बड़ा माध्यम भी बनती है। हर राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में इसको शामिल करने से पीछे नहीं हटता। बावजूद इसके अब गन्ने का रेट बढ़ाने को लेकर शुरू हुए संघर्ष से विपक्ष दूरी बनाया हुआ है।
:::कसूती बात कॉलम:::
गन्ना प्रदेश की राजनीतिक फसल है। चुनाव के दिनों वोट बटोरने का बड़ा माध्यम भी बनती है। हर राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में इसको शामिल करने से पीछे नहीं हटता। बावजूद इसके अब गन्ने का रेट बढ़ाने को लेकर शुरू हुए संघर्ष से विपक्ष दूरी बनाया हुआ है। भारतीय किसान यूनियन, भारतीय किसान संघ व गन्ना किसान संघर्ष समिति से जुड़े किसानों ने साझा आंदोलन शुरू कर गन्ने का रेट 400 रुपये प्रति क्विंटल किए जाने की मांग उठाई है। बैठक से शुरू हुआ यह दौर अब प्रदेशस्तरीय मुद्दा बन गया है। साझे मंच ने 20 जनवरी को रादौर में गन्ना महापंचायत का भी एलान कर दिया। बावजूद इसके न तो कांग्रेस, न जजपा, न इनेलो और न ही बसपा की ओर से गन्ने का रेट बढ़ाने को लेकर कोई बयान आया। किसी भी दल के नेता ने किसानों के इस आंदोलन में हिस्सेदारी नहीं दिखाई। प्लानिग की कमी नहीं, सिरे कब चढ़ेगी पता नहीं
अपने शहर को स्मार्ट सिटी बनाने की प्लानिग है। शहर की सरकार का फोकस भी पूरा है। मेयर मदन चौहान व नगर निगम अधिकारियों के बीच बैठकों का सिलसिला जोर पकड़ रहा है। पहले ट्विन सिटी में स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था में बड़े सुधार की प्लानिग बनीं, फिर सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए नया प्लान आया, उसके बाद वेंडिग बनाने की कवायद शुरू हुई। अब शहर में बिगड़ी पार्किग व्यवस्था को संवारने पर मंथन है। मतलब एक के बाद एक प्लानिग जरूर बन रही है, लेकिन ये कब तक सिरे चढ़ पाएंगी, इस बारे कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि पहले से ही प्रोसेस में योजनाओं को आज तक धरातल नहीं मिला है। करीब 28 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला नगर निगम कार्यालय अभी तक फाइलों में है जबकि तीन बार टेंडर लग चुके हैं। सफाई के नए प्लान की फाइल भी अभी बंद है। कर्मचरियों में तीन अफसरों की तिकड़ी का खौफ
नगर निगम के तीन अफसर इन दिनों काफी सक्रिय हैं। व्यवस्था का जायजा लेने के लिए देर रात तक सड़कों पर रहते हैं। सुबह छह बजे फिर ट्रैक सूट में सड़कों पर ही दिखाई दे रहे हैं। कर्मचारियों के बीच इस तिकड़ी का खौफ भी देखा जा रहा है। इनकी सक्रियता से शहरवासियों को बेहतरी की उम्मीद भी जगने लगी है। इनमें से बड़े साहब ने पहले दिन से ही धुआंदार बैटिग शुरू कर दी थी। चार-पांच माह से अटकी ठेकेदारों के बिलों की पेमेंट करवाकर उनका विश्वास जीतने में सफल रहे हैं। उसके बाद बरसाती पानी की निकासी की व्यवस्था को दुरस्त बनाने के लिए अफसरों के साथ पूरे शहर का दौरा किया। एक-एक नाले की बारीकी से जांच की। अब स्ट्रीट लाइट व सफाई की व्यवस्था पर पूरी तरह जो दे रहे हैं।
पिया घर नहीं, हमें किसी का डर नहीं
पिया घर नहीं, हमें किसी का डर नहीं..यह कहावत इन दिनों जनता से सीधे जुड़े कार्यालय पर चरितार्थ हो रही है। शहर के पॉश एरिया में चल रहे जनकल्याण कार्यालय में बड़े साहब कभी-कभार ही दिखाई देते हैं। उनके कार्यालय में न आने का फायदा खूब उठाया जा रहा है। कार्यालय में कब आएं, कब जाएं. कोई पूछने वाला नहीं है। अपनी मनमर्जी से काम करते हैं। किसी की परेशानी से कोई सरोकार इनको नहीं है। विशेष बात यह है कि इस कार्यालय से गरीब व जरूरतमंदों का अधिक सरोकार रहता है। काम के लिए लोगों को यही जवाब मिलता है कि आज साहब नहीं है। कल आना। सर्दी के इन दिनों में इनकी खूब बल्ले-बल्ले हो रही है। ऐसा दो-चार माह से नहीं बल्कि लंबे समय से चल रहा है। कार्यालय दूसरी जगह शिफ्ट जरूर हुआ, लेकिन कर्मचारियों का रवैया नहीं बदला। प्रस्तुति : संजीव कांबोज।