साथ चल रही भीड़ से प्रत्याशी के वजन का अंदाजा लगा रहे मतदाता
मतदान में अब एक सप्ताह से भी कम समय बचा है। ऐसे में मतदाता के मन में बस एक ही बात चल रही है कि किस प्रत्याशी को वोट दिया जाए इसलिए उन्होंने प्रत्याशियों की हार जीत का अनुमान लगाना शुरू कर दिया है। इसके लिए प्रत्याशियों के साथ चल रही भीड़ से अंदाजा लगाया जा रहा है कि कौन सा प्रत्याशी जीतने का दम रखता है।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : मतदान में अब एक सप्ताह से भी कम समय बचा है। ऐसे में मतदाता के मन में बस एक ही बात चल रही है कि किस प्रत्याशी को वोट दिया जाए, इसलिए उन्होंने प्रत्याशियों की हार जीत का अनुमान लगाना शुरू कर दिया है। इसके लिए प्रत्याशियों के साथ चल रही भीड़ से अंदाजा लगाया जा रहा है कि कौन सा प्रत्याशी जीतने का दम रखता है। यही वजह है कि अब प्रत्याशियों में भी ज्यादा से ज्यादा भीड़ दिखाने की होड़ सी मच गई है।
सोशल मीडिया के लिए बनाई टीम
चुनाव की तारीख नजदीक आते ही प्रचार ने भी जोर पकड़ लिया है। सभी प्रत्याशियों की यही सोच रहे हैं कि चुनावी लहर को किस तरह अपने पक्ष में बनाया जाए। इसलिए प्रचार के लिए अलग-अलग टीमें बना दी हैं। कौन सी टीम क्या काम देखेगी इसकी रूपरेखा रात को ही बना दी जाती है। प्रत्याशी खुद गांव-गांव जाकर लोगों से वोट मांग रहे हैं तो उनकी टीमें सोशल मीडिया पर नजर रख रही हैं। वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि पर प्रचार कर माहौल बदलने की कोशिश की जा रही है। यही वजह है कि प्रत्याशी अधिक से अधिक भीड़ दिखाना चाहते हैं। जब प्रत्याशी गांव में वोट मांगने जाता है तो अपने साथ गाड़ियों का काफिला लेकर चल रहे हैं। जिससे लोगों को ये लगे कि चुनाव में उसका पलड़ा भारी है।
नौ आजाद प्रत्याशी में
इस बार विधानसभा चुनाव में कुल 46 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इनमें से नौ प्रत्याशी आजाद लड़ रहे हैं, लेकिन आजाद प्रत्याशी जनता के बीच बहुत कम दिख रहे हैं। चुनाव से ज्यादा ये अपने निजी कार्यों में मशगूल हैं। लोगों का कहना है कि आजाद प्रत्याशियों में कोई ऐसा नहीं है जो किसी राजनीतिक पार्टी को कांटे की टक्कर दे सके।
प्रत्याशी भी जोड़ रहे समीकरण
जनता जनार्दन ही नहीं बल्कि खुद प्रत्याशी भी अपनी जीत के समीकरण का जोड़ तोड़ कर रहे हैं। केवल जातीय समीकरण ही नहीं बल्कि अन्य पहलुओं को भी ध्यान में रखा जा रहा है। प्रत्याशी देख रहे हैं कि किस गांव या वार्ड में उनकी जाति के लोग ज्यादा हैं। इसके अलावा क्या दांव चला जाए कि दूसरे लोग भी उन्हें वोट दे। जिस गांव में जिस जाति की आबादी ज्यादा है वहां पर उसी वर्ग के लोगों को प्रचार के लिए भेजा जा रहा है। साथ ही रिश्तेदारों से भी फोन करा कर अपने लिए वोट मांगे जा रह हैं।