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संघर्ष को जीत एक महिला की हैरतअंगेज कहानी, फौजी की बेटी हूं, जिंदगी से हार नहीं मानूंगी...

हरियाणा के चाऊवाला गांव की मंदीप कौर की प्रेरक कहानी, पति की मौत के 12 वर्ष बाद अमेरिका में बनीं मिसेज वर्ल्डवाइड।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 06 Jan 2019 11:40 AM (IST)Updated: Sun, 06 Jan 2019 08:57 PM (IST)
संघर्ष को जीत एक महिला की हैरतअंगेज कहानी, फौजी की बेटी हूं, जिंदगी से हार नहीं मानूंगी...
संघर्ष को जीत एक महिला की हैरतअंगेज कहानी, फौजी की बेटी हूं, जिंदगी से हार नहीं मानूंगी...

यमुनानगर, नितिन शर्मा। यह कहानी है मिसेज वर्ल्डवाइड 2018 मंदीप कौर की। जीवन को लेकर उनके प्रेरक फलसफे की। एक हादसे में वह पति को खो चुकी थीं। गोद में दो माह का बेटा था। किसी ने कहा, अब किसके सहारे कटेगा पहाड़ सा जीवन। कैसे मुश्किलों का सामना करेगी यह बेचारी, लेकिन मंदीप के लिए जीवन जीने और जीतने का नाम था। जवाब दिया, फौजी की बेटी हूं। किसी हाल में हार नहीं मानूंगी।

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पति की मौत के 12 वर्ष बाद गत माह अमेरिका में मिसेज वर्ल्डवाइड-2018 का खिताब अपने नाम करने वाली मंदीप ने न केवल खुद को संभाला, बल्कि अपने बेटे का भविष्य संवारने में जुटी हैं। यमुनानगर, हरियाणा के छोटे से गांव चाऊवाला की बेटी मंदीप ने योग का रास्ता अपनाया। पहले योग सीखा और फिर आजीविका के लिए योग प्रशिक्षण केंद्र खोला। जिंदगी पटरी पर लौट आई।

पिछले दिनों मंदीप को जब पता चला कि अमेरिका में मिसेज वर्ल्डवाइड प्रतियोगिता हो रही है तो वहां अपना नाम दर्ज करा दिया। हर राउंड में आगे रहीं और आखिरकार ताज भी पहना। मंदीप को बचपन से खेलों में रुचि थी। 10वीं कक्षा कस्बे के सरस्वती सीनियर सेकेंडरी स्कूल से पास की। हिंदू गर्ल्स कॉलेज में बीएससी स्पोर्ट्स में एडमिशन लेकर खेलों में भाग लिया।

इस बीच, 2005 में नगला जागीर गांव में विवाह हुआ। 2006 में बेटे को जन्म दिया। पति कनाडा में काम करते थे। सड़क हादसे में उनका देहांत हो गया। इसके बाद ससुराल में नहीं रह पाईं। मायके लौट आईं। बेटे को ससुराल वालों ने ही रख लिया था। लिहाजा बेटे की कस्टडी के लिए कोर्ट में केस दायर किया। फैसला हक में आया। बेटा उनके पास आ गया। 2010 में अपनी बहन के पास मुंबई गईं और नौकरी करने की ठानी। योग की ट्रेनिंग ली और बेहतर अभ्यास के बाद योग प्रशिक्षण केंद्र खोला।

आखिरकार योग के माध्यम से न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि आर्थिक रूप से भी मजबूत हुईं। बेटा हरगुण अब सातवीं कक्षा में पढ़ता है। पिता अजैब सिंह सेवानिवृत्त फौजी हैं। मां गरीब कौर सेवानिवृत्त अध्यापिका हैं।  


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