बायोरिमेडिएशन के टेंडर पर उठे सवाल, पार्षद बोले- जब नालों में ही ट्रीट हो सकता पानी तो एसटीपी की क्या जरूरत
पार्षदों का कहना है कि नालों को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाने में नगर निगम अधिकारी अब तक फेल साबित हुए हैं।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर :
शहर से निकल रहे केमिकल युक्त व दूषित पानी के बायोरिमेडिएशन (जैविक उपचार) के टेंडर पर सवाल उठने लगे हैं। पार्षदों का कहना है कि नालों को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाने में निगम अधिकारी अब तक फेल साबित हुए हैं। छह वर्ष पहले सीएम मनोहर लाल की ओर से घोषणा के बावजूद नालों को डाइवर्ट नहीं किया गया। नगर निगम व सिंचाई विभाग दोनों ही सरकारी विभाग हैं। बावजूद इसके सिंचाई विभाग से नहर के किनारे पाइप लाइन डालने की अनुमति नहीं मिल पाई है। बता दें कि अब नगर निगम अब जैविक ट्रीटमेंट की योजना बना रहा है। जबकि चार नालों को डाइवर्ट करने की चार करोड़ रुपये की योजना पहले से ही प्रोसेस में है। केवल सिंचाई विभाग से अनुमति न मिलने के कारण अधर में लटकी हुई है। सीएम कर चुके घोषणा
एनजीटी के हस्तक्षेप के बावजूद नगर निगम के 22 नालों को पश्चिमी यमुना नहर में गिरने से आज तक नहीं रोका गया है। कारण अफसरों की ढील है। नवंबर 2016 में सीएम मनोहर लाल भी इन नालों को एसटीपी में डालने के आदेश दे चुके हैं। मार्च-2020 में एनजीटी भी इस संदर्भ में निगम, सिंचाई विभाग और जन स्वास्थ्य विभाग को निर्देश जारी कर चुकी है। उसके बाद नगर निगम व सिचाई विभाग के अधिकारियों की टीम ने संयुक्त रूप से उन नालों का निरीक्षण किया था जो शहर से निकल कर यमुना नहर में गिर रहे हैं। लेकिन कार्रवाई निरीक्षण करने तक ही सीमित रही। हालांकि उसके बाद पश्चिमी यमुना नहर की पटरी के साथ-साथ पाइप लाइन दबाने की योजना पर काम शुरू हुआ लेकिन निगम के पास एनओसी न होने के कारण सिचाई विभाग ने काम रूकवा दिया। भ्रष्टाचार का रास्ता
वार्ड-चार के पार्षद देवेंद्र सिंह का कहना है कि यदि जैविक उपचार से नालों में ही केमिकल युक्त पानी को ट्रीट किया जा सकता है तो सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की आवश्यकता ही क्या है? सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों की क्षमता बढ़ाने के लिए सरकार क्यों करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। आरोप है कि यह केवल भ्रष्टाचार का एक रास्ता है। निगम व सिंचाई विभाग दोनों ही सरकारी विभाग हैं। आखिर सरकार को सरकार से ही अनुमति क्यों नहीं मिल रही है? यह बात चितनीय है।
जहरीली हो रही यमुना
पार्षद विनय कांबोज का कहना है कि शहर से निकल रहे नालों को डाइवर्ट की करने की योजना पर नगर निगम अधिकारी छह वर्ष से काम कर रहे हैं, लेकिन आज तक सिरे नहीं चढ़ पाई है। यह अधिकारियों की ढील का परिणाम है। अधिकारियों की लापरवाही से यमुना के आंचल में जहर घुल रहा है। क्या गारंटी है कि जैविक उपचार के बाद नालों से निकल रहा पानी शुद्ध हो जाएगा? जो योजना पहले से प्रोसेस में है, उस पर गंभीरता से काम किया जाना चाहिए।