स्वयंभू शिवलिग के दर्शन से दूर हो जाते दुख
अंबाला रोड पर गांव भटौली स्थित प्राचीन शिव मंदिर में महाशिवरात्रि पर हर साल हजारों लोग जलाभिषेक करते हैं। यहां की आस्था श्रद्धालुओं को खुद ही मंदिर की तरफ खींच लाती है। सही वजह है कि मंदिर से लेकर मुख्य मार्ग तक दो किलोमीटर लंबी लाइन भी शिवलिग पर जल चढ़ाने के लिए लगती है। सावन के पहले सोमवार को इस बार कोरोना वायरस बीमारी के कारण मं
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : अंबाला रोड पर गांव भटौली स्थित प्राचीन शिव मंदिर में महाशिवरात्रि पर हर साल हजारों लोग जलाभिषेक करते हैं। यहां की आस्था श्रद्धालुओं को खुद ही मंदिर की तरफ खींच लाती है। सही वजह है कि मंदिर से लेकर मुख्य मार्ग तक दो किलोमीटर लंबी लाइन भी शिवलिग पर जल चढ़ाने के लिए लगती है। सावन के पहले सोमवार को इस बार कोरोना वायरस बीमारी के कारण मंदिर बहुत कम श्रद्धालु ही पहुंचे। सड़क से गुजरने वाले लोग मंदिर के गेट को देखते ही नतमस्तक हो जाते हैं। मंदिर का इतिहास :
मंदिर का इतिहास कितना पुराना है, इसका अनुमान लगाना कठिन है। मान्यता है कि अज्ञातवास में पांडवों ने यहां तपस्या की और प्रसन्न होकर भगवान शिव यहां पर आए थे। तभी से ज्योति स्वरूप से यहां स्वयंभू शिवलिग बना। द्वापर युग के महाभारत काल में मंदिर क्षेत्र सिधुवन था। अज्ञातवास में पांडव हिमाचल के कांगड़ा के बाद आदिबद्री होते हुए यहां आए और पांच कोस दूर जो आज पंचतीर्थी क्षेत्र है, वहां भी रुके। पुराण में दिए प्रमाण मुताबिक सिधुवन में वट वृक्ष के नीचे बैठ पांडवों ने तपस्या की, तब भगवान शिव ने दर्शन दिए। आज मंदिर प्रांगण में मौजूद वटवृक्ष को ही उस घटना का साक्षी बताया जाता है जिसके ठीक सामने स्वयंभू शिवलिग है। फोटो: 6
इस बार भीड़ नहीं : जितेंद्र शास्त्री
शिव मंदिर के पुजारी जितेंद्र शास्त्री ने बताया कि इस बार कोरोना वायरस के कारण मंदिर में बहुत कम श्रद्धालु ही पहुंचे हैं। अब सोमवार को ही इनकी संख्या में इजाफा हो सकता है। मंदिर में जो श्रद्धालु आ रहे हैं उनके लिए हाथ धोने की व्यवस्था की गई है। मंदिर में चेहरे पर मास्क लगाकर आना अनिवार्य है। इस बार मंदिर में शिवरात्रि पर मेला नहीं लग पाएगा। फोटो : 6ए
जलाभिषेक करने जरूर जाते हैं : बलदेव पंवार
श्रद्धालु बलदेव पंवार का कहना है कि सावन के महीने में वे भटौली शिव मंदिर में जलाभिषेक करने जरूर जाते हैं। यहां पर सच्चे मन से जो भी मुराद मांगी जाती है वह अवश्य पूरी होती है। इसलिए यहां हर साल इतनी भीड़ जुटती है।