कहीं उधारी से लग रही स्वच्छता की नैय्या पार, कहीं लटके ताले
स्वछ भारत अभियान की नैय्या कहीं उधार से पार लग रही है तो कहीं ताले लटक चुके हैं। शहरी एरिया को ओडीएफ घोषित करने के लिए नगर निगम ने 150 शौचालय रखे।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : स्वच्छ भारत अभियान की नैय्या कहीं उधार से पार लग रही है तो कहीं ताले लटक चुके हैं। शहरी एरिया को ओडीएफ घोषित करने के लिए नगर निगम ने 150 शौचालय रखे। एक शौचालय पर 70 हजार रुपये खर्च कर दिए। कुछ शौचालयों पर आज तक पानी के कनेक्शन नहीं दिए और जिन पर दिए गए हैं, वह भी खस्ता स्थिति में हैं। ऐसे शौचालयों की संख्या कम नहीं है जिनपर ताले लटके हुए हैं। ग्रामीण अंचल में व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।
यह है बानगी
खदरी ग्राम पंचायत के अंतर्गत रामबांस व टापू बांस गांव में दैनिक जागरण की टीम ने दौरा किया। यहां जीवन स्तर देखकर मन से कई सवाल उठे। ग्रामीणों से बातचीत में प्रशासनिक अधिकारियों के प्रति गुस्सा था। गुस्सा भी किसी बड़े प्रोजेक्ट को लेकर नहीं बल्कि शौचालय के निर्माण को लेकर। सरकार बेशक बड़े-बड़े दावे कर रही हो, लेकिन इन ग्रामीणों की सुनें तो अधिकारियों की कार्यप्रणाली संदेह से घिरी है। आर्थिक हालत कमजोर होने पर भी ग्रामीणों ने शौचालय की अहमियत को समझा और अपने खर्चे पर इनका निर्माण करा दिया।इसके लिए साहुकार से कर्ज भी लिया और दूसरे काम भी रोके। शौचालय अधूरा पड़ा है..
टापू बांस की रामकली का इशारा शौचालय की ओर था। हंसते हुए बोली- बेटा दो वर्ष पहले इसको बनाकर गए थे। आज भी काम अधूरा पड़ा है। इसके निर्माण का कोई फायदा नहीं हुआ। पानी का कनेक्शन तक नहीं है। सरकार खुले में शौच जाने से मना कर रहे हैं, लेकिन शौचालय बनाने को लेकर गंभीर क्यों नहीं है। बस सभी बातें ही करते हैं। खानापूर्ति हो रही है। कर्ज लेकर बनवाया
रामबांस के राजकुमार का कहना है कि शौचालय परिवार की पहली जरूरत है। 75 हजार रुपये साहूकार से ब्याज पर लिए, लेकिन ये जरूर बनवाया। एक समय था जब बहु-बेटियां खेतों में जाती थी, लेकिन यह गुजरे जमाने की बात हो गई है। अंधेरे का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। सरकार की ओर से इज्जत घर बनाने के लिए हमें कोई योगदान नहीं मिला। मकान का लेंटर बाद में इज्ज्जत घर पहले..
रामबांस के सतपाल कहते हैं कि मकान का लेंटर बाद में डल जाएगा, लेकिन 25 हजार रुपये लगाकर पहले इज्जतघर बनाया। यदि अधिकारियों के भरोसे पर रहते तो आज तक नहीं बनता। अब कौन खुले में शौच जाता है। अधिकारी बेशक ग्रामीणों की अनदेखी कर रहे हों, लेकिन वे तो अपनी बहु बेटियों की अनदेखी नहीं कर सकते,जो इज्जत घर सरकार की ओर से बनाए जा रहे हैं, उनके गड्ढे कच्चे हैं। ऐसे में तो पीने का पानी भी दूषित होगा। नहीं है सफाई की व्यवस्था
नगर निगम की ओर से रखे गए इन शौचालयों के लिए अतिरिक्त सफाई कर्मचारी नहीं लगाए गए हैं, जिस क्षेत्र में यह शौचालय रखे हुए हैं, उन्हीं क्षेत्रों के लोगों की एक कमेटी बनाई हुई है, लेकिन यह लोग नियमित रूप से सफाई नहीं करते। सार्वजनिक स्थलों पर रखे अधिकांश शौचालयों की स्थिति इन दिनों दयनीय है। कई जगह ऐसी भी है जहां शौचालय पर अपना नाम लिखकर ताला लटका दिया और चाबी जेब में डाल ली। हालात ऐसे हैं कि कोई अन्य व्यक्ति इनको प्रयोग ही नहीं कर सकतो।