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संत कबीरदास ने उठाई पाखंड के खिलाफ आवाज : महेशाश्रम

शहर के पक्का घाट नागेश्वर धाम मंदिर मे सोमवार को संत कबीरदास जयंती मनाई गई। महंत स्वामी महेशाश्रम महाराज ने कहा कि सभी संतों और महापुरुषों ने दया और क्षमा को धर्म का मूल माना है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Jun 2019 10:13 AM (IST)Updated: Wed, 19 Jun 2019 06:41 AM (IST)
संत कबीरदास ने उठाई पाखंड के खिलाफ आवाज : महेशाश्रम

संवाद सहयोगी, रादौर : शहर के पक्का घाट नागेश्वर धाम मंदिर मे सोमवार को संत कबीरदास जयंती मनाई गई। महंत स्वामी महेशाश्रम महाराज ने कहा कि सभी संतों और महापुरुषों ने दया और क्षमा को धर्म का मूल माना है। लोभ, मोह, काम, क्रोध अहंकार वे दुर्गुण हैं जो मनुष्य को धर्म और इंसानियत से दूर ले जाते हैं। इस समय देश में धार्मिक कर्मकांड और पाखंड का बोलबाला था, ऐसे समय में एक क्रांतिकारी संत, समाजसुधारक ने हिदू और मुस्लिम दोनों के पाखंड के खिलाफ आवाज उठाई लोगों में भक्ति भाव का बीज बोया। यह संत थे कबीर। ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को संत कबीरदास की जयंती के रूप में मनाया जाता है। अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार 2019 में कबीर जयंती 17 जून को है। कबीर का जन्म सन 1398 में माना जाता है। उनका लालन-पालन नीरु और नीमा के आंगन में ही हुआ। कबीर के काव्य में भी इसके कई उदाहरण मिलते हैं।'जात जुलाहा नाम कबीरा'राम के नाम को सर्वजन तक पंहुचाने और सर्वव्यापी करने में कबीर का बहुत अधिक योगदान है। हालांकि उनका राम दशरथ पुत्र और विष्णु के अवतार से भिन्न निर्गुण राम है जो रोम रोम में रमा हुआ है। कबीर के बाद सगुण रुप में अवतारी राम के नाम का प्रचार-प्रसार तुलसीदास ने व्यापक रुप से किया। कबीर आज भी प्रासांगिक लगते हैं कबीर ने मध्यकाल में जो बाते कही हैं आज 21वीं सदी में भी वे ऐसी लगती हैं जैसे उन्होंनें आज के बारे में ही लिखी हों। कबीर एक मानवता के पक्षधर हैं, वे जीव हत्या का विरोध करते हैं। कबीर धर्म के विरोध में नहीं बल्कि धर्म के नाम पर होने वाले पाखंड के विरोध में खड़े हैं। वे जात-पात का विरोध करते हैं क्योंकि उनके सामने जात-पात के कारण होने वाले अन्याय के अनेक उदाहरण थे। कबीर ने मानवता का संदेश देते हुए भक्ति की अलख को देश के विभिन्न हिस्सों में घूमकर जगाया है इसलिए आज भी लोग उनके पद गुनगुनाते हुए मिलेंगें।

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