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40 वर्ष क्लास रूम में पढ़ाया कखग, अब नीरू पढ़ा रही समानता व सम्मान का पाठ

रिटायर प्रिसिपल नीरू सहाय ने समानता का पाठ पढ़ाना ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 21 Jan 2020 07:15 AM (IST)Updated: Tue, 21 Jan 2020 07:15 AM (IST)
40 वर्ष क्लास रूम में पढ़ाया कखग, अब नीरू पढ़ा रही समानता व सम्मान का पाठ

गण के तंत्र..

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जागरण संवाददाता, यमुनानगर : सेवानिवृत्त होकर अमूमन दिमाग में यही बात आती है कि अब सुकून की जिदगी जिया जाए। जो समय बचा है उसे अपने परिवार के साथ बिताएं, लेकिन सरकारी हुडा सेक्टर-17 निवासी रिटायर प्रिसिपल नीरू सहाय की सोच इससे अलग है। रिटायर होने के बाद एक कदम दूसरों के लिए सामाजिक संगठन से जुड़कर इन्होंने समानता का पाठ पढ़ाना ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया। निम्न व मध्यम वर्ग के बीच विभिन्न कार्यक्रम कर उनको यह बता रही हैं कि किस प्रकार उनके सम्मान की रक्षा हो सकती है। खासकर महिलाओं व लड़कियों को उनके समानता के अधिकार के बारे में जागरूक कर रही हैं। इनसेट

विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए करती जागरूक

दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान नीरू सहाय बताती हैं कि उन्होंने 40 वर्ष तक अध्यापन कार्य किया है। 35 वर्ष डीएवी ग‌र्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ाया। अक्टूबर 2019 में हाई स्कूल गोविदपुरी से बतौर प्रिसिपल रिटायर हुई। रिटायर होने के बाद दिमाग में एक ही बात आई कि अब तक अपने लिए जिए, क्यों न अब दूसरों के लिए जिया जाए। इसी सोच के साथ महिलाओं व बेटियों को जागरूक करना शुरू कर दिया। विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए अब वे उनको उनके व्यक्तिगत अधिकारों के बारे में बता रही हैं। उनको अधिक जानकारी नहीं थी। सरकार की विभिन्न योजनाओं की जानकारी देने के साथ-साथ बचत के लिए प्रेरित किया। उनको बताया कि यदि आपके पास थोड़े बहुत पैसे हैं तो उनको घर पर मत रखो। बैंक या डाकखाने में खाता खुलवाओ। किस प्रकार जमा करने हैं, कैसे निकालने हैं। फार्म कैसे भरना है। आधार कार्ड जिनके पास नहीं थे, उनको बनवाने के लिए प्रेरित किया। इसके महत्व के बारे में बताया। कईयों के पास राशन कार्ड भी नहीं थे। उनको बनवाने के बारे में बताया गया। जो बच्चे स्कूल में नहीं जाते थे, उनको स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया। इनसेट

महिलाओं में जगाया समता का भाव

मध्यम वर्ग की महिलाओं में समता का भाव पैदा करने के लिए उनको जागरूक किया गया। उनको बताया गया कि वे भी किसी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। घर की दहलीज लांघकर पुरुषों की भांति वे भी कामकाज करें। अपनी बात कहने से हिचकें न बल्कि स्वतंत्र रूप से अपने मन के भावों को उजागर करें। आज इसी का परिणाम है कि काफी संख्या में लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं। कोई किसी दुकान पर नौकरी कर रही है तो किसी ने सिलाई कढ़ाई सेंटर खोल लिया। इसके अलावा किशोरियों को उनके व्यक्तिगत स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक किया जा रहा है। इनसेट

धीरे-धीरे भर रही खाई

समाज में असमानता की खाई धीरे-धीरे भर रही है। महिलाएं भी पुरुषों की भांति समान रूप से अपने अधिकारों का प्रयोग करने लगी हैं। युवा पीढ़ी में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। पहले लड़की होने पर मायूसी छा जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। ऐसे भी उदाहरण सामने आते रहे हैं कि बेटियों को किसी छोटे से स्कूल में दाखिला दिलवाया जाता है जबकि बेटों को बड़े स्कूलों में पढ़ने के लिए भेजा जाता था। मध्यम वर्ग में ऐसा अधिक देखा जाता रहा है। महिलाओं को यातनाएं झेलनी पड़ती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब वे उस दायरे से बाहर आने लगी है। अपने बच्चों के अधिकारों के प्रति मां जागरूक हो रही है।


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