46 पद रिक्त, एक महिला डॉक्टर के सहारे चल रहा अस्पताल
क्षेत्र का राजकीय अस्पताल नाहरपुर केवल एक महिला डॉक्टर के सहारे चल रहा है। अस्पताल में डॉक्टरों के चार पद है। चार में से एक डाक्टर की ड्यूटी सीएमओ कार्यालय व दो अन्य डाक्टरों की ड्यूटी अन्य अस्पतालों में लगा रखी है। मात्र एक डाक्टर ही हर रोज 200 से 250 लोगों की प्रतिदिन ओपीडी कर रही है।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर :
क्षेत्र का राजकीय अस्पताल नाहरपुर केवल एक महिला डॉक्टर के सहारे चल रहा है। अस्पताल में डॉक्टरों के चार पद है। चार में से एक डाक्टर की ड्यूटी सीएमओ कार्यालय व दो अन्य डाक्टरों की ड्यूटी अन्य अस्पतालों में लगा रखी है। मात्र एक डाक्टर ही हर रोज 200 से 250 लोगों की प्रतिदिन ओपीडी कर रही है। अस्पताल में कोई एसएमओ व दंत रोग विशेषज्ञ नहीं है। नाहरपुर अस्पताल में सरकार की ओर से कुल 62 स्टाफ के पद मंजूर किए हुए है। जिनमें से केवल 16 पदों पर ही कर्मचारी कार्यरत है बाकी 46 पद लंबे समय से रिक्त पड़े हुए है। इस समय अस्पताल में कोई रेडियोग्राफर नहीं है। यहां तक की अस्पताल की बोलेरो गाड़ी चलाने के लिए भी कोई चालक नहीं है। अस्पताल के कर्मचारी किराये पर ड्राइवर हायर करके गाड़ी को इधर-उधर ले जाते हैं।
ये पद है स्वीकृत
पद खाली
डॉक्टर 3 1
स्टाफ नर्स 8 4
लैब तकनीशियन 1 0
धोबी 1 0
माली 1 0
सफाई कर्मचारी तीन 1
चपरासी 8 6
चौकीदार 1 0
कुल पद 62 16
अकेली कर रही इलाज
मेडीकल ऑफिसर डॉक्टर सुशीला सैनी ने बताया कि वे अकेली अस्पताल में पूरे क्षेत्र के लोगों का इलाज कर रही है। इस दौरान उन्हें कई बार कोर्ट में या सिविल अस्पताल यमुनानगर में भी काम से जाना पड़ता है। ऐसे में मरीजों को दिक्कत उठानी पड़ती है। चार बजे के बाद उनकी ड्यूटी खत्म होने पर अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले लोगों को सिविल अस्पताल यमुनानगर में रेफर किया जाता है।
यहां से आते हैं मरीज
पीएचसी नाहरपुर के तहत हरनौल, बदनपुरी तक के गांव आते हैं। एरिया बहुत बड़ा है, लेकिन अस्पताल में डॉक्टर नहीं है। इसके अलावा पीएचसी साबापुर, पीएचसी कलानौर व पीएचसी बूड़िया भी इसी के तहत ही आता है।
बहुत दिक्कत आती है
खजूरी के प्रताप ¨सह का कहना है कि डॉक्टरों की कमी के कारण बहुत दिक्कत आती है। इस दिशा में आलाधिकारियों को ध्यान देना चाहिए। मजबूरी में अधिक पैसे खर्च कर प्राइवेट अस्पताल में उपचार करवाना पड़ रहा है। इसी तरह से सर्वजीत का कहना है कि सरकारी अस्पताल नाम के रह गए। अधिकतर लोग प्राइवेट अस्पताल में उपचार करा रहे हैं। प्राइवेट अस्पताल के संचालक चांदी कूट रहे हैं।
कभी आते थे उत्तर प्रदेश से भी मरीज
नाहरपुर अस्पताल 1982 में भजनलाल सरकार के दौरान बनवाया गया था। कभी अस्पताल में रादौर के अलावा उत्तर प्रदेश तक के लोग अपना उपचार करवाने के लिए आते थे। अस्पताल में मरीजों का तांता लगा रहता था, लेकिन अब काफी समय से अस्पताल में डॉक्टरों का टोटा है। जिसके बाद मरीजों को सही इलाज न मिलने पर लोगों ने दूसरे अस्पतालों की ओर रूख कर लिया है। अस्पताल में बिजली न होने पर जहां डॉक्टरों व मरीजों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है। वहीं अस्पताल में रखा जनरेटर भी काफी समय से खराब पड़ा हुआ है। डॉक्टरों के रहने के लिए बनाए क्वार्टर भी खंडहर में तब्दील हो गए हैं।