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लोकसभा चुनाव में उलझा आंगनबाड़ी वर्करों का मानदेय, आर्थिक संकट से रही जूझ

पहले केंद्र सरकार की ओर से शेयर न मिलने और अब लोकसभा चुनावों में आंगनबाड़ी वर्करों का मानदेय उलझ कर रह गया। दो माह से मानदेय नहीं मिलने से वर्कर आर्थिक संकट से जूझ रहीं हैं। मानदेय नहीं आने से इनके जरूरी कार्य अटक गए हैं। इस बारे में महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी भी संतोषजनक जवाब नहीं दे रही। अधिकारियों की मनमानी उन पर भारी पड़ रही है। जिले में 1269 वर्कर सेवार्थ हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 15 Apr 2019 06:19 AM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 06:19 AM (IST)
लोकसभा चुनाव में उलझा आंगनबाड़ी वर्करों का मानदेय, आर्थिक संकट से रही जूझ
लोकसभा चुनाव में उलझा आंगनबाड़ी वर्करों का मानदेय, आर्थिक संकट से रही जूझ

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : पहले केंद्र सरकार की ओर से शेयर न मिलने और अब लोकसभा चुनावों में आंगनबाड़ी वर्करों का मानदेय उलझ कर रह गया। दो माह से मानदेय नहीं मिलने से वर्कर आर्थिक संकट से जूझ रहीं हैं। मानदेय नहीं आने से इनके जरूरी कार्य अटक गए हैं। इस बारे में महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी भी संतोषजनक जवाब नहीं दे रही। अधिकारियों की मनमानी उन पर भारी पड़ रही है। जिले में 1269 वर्कर सेवार्थ हैं।

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आए दिन मिलती है नई जिम्मेदारी

कार्यकर्ता रिया, सुमित्रा, शबनम, हरबंसी आदि का कहना है कि उनको काम के बोझ तले दबाया जा रहा है। आए दिन नई जिम्मेदारी विभाग की तरफ से उनको दी जाती है। केवल उनका ही विभाग नहीं अन्य विभाग भी उनसे रिपोर्ट मांग लेते हैं। पहले से अब काम बढ़ा दिया गया है। अभी तक तो वह रजिस्टर रिकार्ड रख रहीं थी। इससे भी ज्यादा वर्क लोड बढ़ा दिया गया। किसी भी समय मांग ली जाती है रिपोर्ट

उनकी अधिकारी कभी भी उनके पास से रिपोर्ट मांग लेती हैं। भले ही ड्यूटी टाइम खत्म हो गया हो। इसके बाद भी विभाग की ओर से वर्करों को पूरा वेतन जारी नहीं किया जा रहा। जिले में इस समय करीब 1270 आंगनबाड़ी केंद्र चल रहे हैं। पूरा वेतन नहीं मिलने से उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है। घर चलाने के लिए उधार का सहारा वर्कर ले रहीं हैं। इन वर्करों का कहना है कि वह इसके बारे में अपने उच्चाधिकारियों से बात कर चुकी हैं। उनको उनकी तरफ से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया। इससे उनकी परेशानी बढ़ गई। मोबाइल से भी ली जा सकती है रिपोर्ट

वर्करों का कहना है कि विभाग एक तरफ तो हाइटेक होने की बात करता है, दूसरी तरफ आज भी बहुत से कार्य ऐसे हैं जो कि कागजों में चल रहे हैं। वैसे भी तो अधिकारी खुद भी व्हाट्स एप करने के लिए कह देते हैं। जब उनका ड्यूटी टाइम होता है वह व्हाट्स से रिपोर्ट मंगवा लेते हैं। जैसे केंद्रों से छुट्टी कर वह घर पहुंचती है तो मोबाइल पर फोन पर उनको कार्यालय आकर रिपोर्ट देने के लिए कह दिया जाता है। इससे उनका पैसा व समय खराब होता है। पहले ही उनका वेतन नहीं आ रहा है। वह पैसों की तंगी झेल रहीं हैं। कार्यालय नहीं जाने पर उनका वेतन काट लिए जाने की धमकी अधिकारियों द्वारा दी जाती है। वर्करों ने प्रशासन से मांग की है कि उनके मानदेय का बजट जारी किया जाए, जिससे आर्थिक संकट दूर हो सके।


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