गुरु गोबिद सिंह का हुक्मनामा नहीं माना, अब हाईकोर्ट में लड़ रहे हक की लड़ाई
350 साल पहले गुरु गोबिद सिंह ने कपालमोचन के पुरोहित होने का लिखित में हुक्मनामा दिया था। उसको श्राइन बोर्ड ने स्वीकार नहीं किया। अब पुरोहित के परिजन हक के लिए गुरु का हुक्मनामा होई कोर्ट में पेश कर लड़ाई लड़ रहे हैं। केस में अगली बहस 21 मार्च को होनी है।
जागरण संवाददाता, कपालमोचन : 350 साल पहले गुरु गोबिद सिंह ने कपालमोचन के पुरोहित होने का लिखित में हुक्मनामा दिया था। उसको श्राइन बोर्ड ने स्वीकार नहीं किया। अब पुरोहित के परिजन हक के लिए गुरु का हुक्मनामा होई कोर्ट में पेश कर लड़ाई लड़ रहे हैं। केस में अगली बहस 21 मार्च को होनी है।
कपालमोचन स्थित गऊ-बच्छा मंदिर के पुरोहित पंडित सुभाष शर्मा ने बताया कि गऊ बच्छा घाट अति प्राचीन है। यहां के पुरोहित पंडित ज्वाला प्रसाद को उनकी कथा से प्रसन्न होकर गुरु गोबिद सिंह ने भंगानी का युद्ध जीतने के बाद वर्ष 1745 में यह हुक्मनामा दिया था। इस हुक्मनामा पर गुरु गोबिद सिंह के समय की चड़ी की वार की पंक्तियां अंकित है। इस ताम्रपत्र के आधार पर ज्वाला प्रसाद के वंशजों ने यहां आज तक पूजा अर्चना कराई। श्राइन बोर्ड ने उनके दिए हुक्मनामे को नहीं माना, जिस पर उन्होंने श्राइन बोर्ड के आदेश के खिलाफ कोर्ट में याचिका डाल रखी है। शर्मा का कहना है कि यह उनकी सातवीं पीढ़ी चल रही है। तभी से गुरु का हुक्मनामा संभाला हुआ है।
असली हुक्मनामा भेजा कोर्ट में
सुभाष के पांच भाई है। सुभाष शर्मा भी कोर्ट में गए थे, लेकिन कोर्ट ने उन्हें 13 हजार रुपये महीना मानदेय पर पुजारी रख लिया। लेकिन वे इस मानदेय को बहुत कम मानते हैं। अब उनके चारों भाई वेद प्रकाश, आनंद प्रकाश, नरेंद्र व अशोक ने कोर्ट में केस कर रखा है। गुरु का असली हुक्मनामा कोर्ट में सबूत के तौर पर वकील के माध्यम से भेजा हुआ है। गुरु के हुक्मनामा और अरदास को फ्रेम में जड़वाकर अपने पास रखा हुआ है। उनका कहना है कि उनको उस दिन का इंतजार है, जब कोर्ट गुरु के हुक्मनामा को आधार पर मानकर उनके हक में फैसला सुनाएगा। वे फ्रेम में जड़े हुक्मनामे की पूजा करते हैं।
नौ साल पहले श्राइन बार्ड बना
नौ साल पहले कपामोचन, मां मंत्रा आदिबद्री नारायण और सूरजकुंड पर श्राइन बोर्ड के अधीन हो गया था। कपालमोचन के सभी मंदिर व पूजा स्थल इसके अधीन हो गए थे। मंदिर के पुजारी ने सरकार के इस आदेश को कोर्ट में चुनौती दे रखी है। इन मंदिरों के संचालकों का कहना है कि यह उन्हें राजाओं और गुरुओं द्वारा दान में दी गई धरोहर थी। जिसे प्रशासन ने कब्जे में ले लिया था।