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किसानों ने ली पराली न जलाने की शपथ, बोले-पराली नहीं जलाएंगे, करेंगे प्रबंधन

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By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 09:31 AM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 09:31 AM (IST)
किसानों ने ली पराली न जलाने की शपथ, बोले-पराली नहीं जलाएंगे, करेंगे प्रबंधन
किसानों ने ली पराली न जलाने की शपथ, बोले-पराली नहीं जलाएंगे, करेंगे प्रबंधन

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : दैनिक जागरण की ओर से पराली नहीं जलाएंगे, पर्यावरण बचाएंगे अभियान के तहत बिलासपुर में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें किसानों ने फसल अवशेष प्रबंधन पर चर्चा की। उन्होंने संयुक्त रूप से फसल अवशेष न जलाने की शपथ ली। उनका कहना है कि सरकार यदि इसके बेहतर विकल्प उपलब्ध कराए तो और भी सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं। खेतों में फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण प्रदूषण के साथ ही जमीन की उर्वरा शक्ति भी कमजोर होती है। सड़क हादसों का भी भय बना रहता है। इसलिए किसानों को फसल अवशेष जलाने से परहेज करना चाहिए। इनसेट

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पर्यावरण में घुलती जहरीली गैसें

बिलासपुर के सरपंच चंद्रमोहन कटारिया, इंद्रजीत सिंह, राजू, रल्ला राम व संजीव कुमार का कहना है कि खेतों में फसल अवशेष जलाना पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है। इनके जलाने से पर्यावरण में जहरीली गैसें घुलती हैं। खेतों में फसल अवशेष न जलाकर किसानों को पर्यावरण बचाने का संदेश देना चाहिए। फसल अवशेष जलाना कानूनन अपराध भी है। ऐसा करने से किसान को जुर्माना हो सकता है। धान के अवशेषों के बीच ही हैप्पी सीडर से गेहूं की बिजाई करें। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। इससे प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। पर्यावरण में घुल रही जहरीली गैसें घातक बीमारियों का कारण बन रही हैं, इसलिए फसल अवशेष न जलाएं। इसे अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझें। यदि हर व्यक्ति अपना दायित्व निभाएगा तो भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। किसानों को फसल अवशेष जलाने नहीं चाहिए, बल्कि इनको खेतों में ही दबा देना चाहिए। बेहतर खाद भी तैयार होगी।

अवशेष में गेहूं की बिजाई करें

किसानों का कहना है कि सरकार खेत में पराली न जलाने पर दबाव दे रही है। यह किसानों के हित में है। यदि खेतों में ही फसल अवशेषों का प्रबंधन करते हैं तो भूमि के अंदर मित्र कीट नहीं जलते। दुघर्टनाओं की आशंका भी कम रहती है। किसानों के पास इसके विकल्प भी मौजूद होने चाहिए। किसान मजबूरी में पराली जलाते हैं। खेतों से बाहर निकालने के लिए मजदूर नहीं मिलते। इसके लिए किसानों को अलग से आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए। धान के अवशेष के बीच में ही गेहूं की बिजाई करें। वे खेतों में ही जुताई कर देते हैं। इनका ये भी कहना है कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से सड़कों के किनारे सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। जल रहे अवशेषों का धुआं कई बार इतना अधिक होता है कि सामने से आ रहे वाहन दिखाई नहीं देते। इसलिए किसान खेतों में फसल अवशेष न जलाएं। किसानों ने दैनिक जागरण अभियान की प्रशंसा की।


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