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3994 एकड़ जमीन, 18 गोशाला, फिर भी सड़कों पर गोवंश

गोचरान की 3994 एकड़ जमीन और संरक्षण के लिए 18 गोशाला होने के बावजूद गोवंश सड़कों पर धक्के खा रहा है। खुद भी जख्मी हो रहा है और दूसरों के लिए परेशानी बन रहा है। यह हालात तब हैं जब शहर को कैटल फ्री घोषित किया हुआ है। शायद ही शहर की कोई ऐसी कॉलोनी होगी जहां झुंड बनाए बेसहारा गोवंश भटकते दिखाई न दें।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Nov 2019 07:10 AM (IST)Updated: Sun, 24 Nov 2019 07:10 AM (IST)
3994 एकड़ जमीन, 18 गोशाला, फिर भी सड़कों पर गोवंश
3994 एकड़ जमीन, 18 गोशाला, फिर भी सड़कों पर गोवंश

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : गोचरान की 3994 एकड़ जमीन और संरक्षण के लिए 18 गोशाला होने के बावजूद गोवंश सड़कों पर धक्के खा रहा है। खुद भी जख्मी हो रहा है और दूसरों के लिए परेशानी बन रहा है। यह हालात तब हैं, जब शहर को कैटल फ्री घोषित किया हुआ है। शायद ही शहर की कोई ऐसी कॉलोनी होगी, जहां झुंड बनाए बेसहारा गोवंश भटकते दिखाई न दें। गली-मोहल्ले, बाजारों, सब्जी मंडी से लेकर मुख्य मार्गो तक उनका जमावड़ा देखने को मिलता है। रात के समय वाहन उनसे टकरा जाते हैं। ऐसी स्थिति में चालक ही नहीं, बल्कि गोवंश भी घायल होते हैं। घायल व्यक्ति तो अस्पताल में जाकर अपना इलाज करा लेता है, लेकिन गोवंश को तड़पते छोड़ दिया जाता है।

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कहां कितनी जमीन

जिले में गोचरान की कुल 3994 एकड़ जमीन है। इस जमीन में से बिलासपुर खंड के 129 गांवों में 863 एकड़, छछरौली खंड के 113 गांवों में 1411 एकड़, जगाधरी खंड के 90 गांवों में 660 एकड़, मुस्तफाबाद खंड के 70 गांवों में 359 एकड़, रादौर खंड के 68 गांवों में 206 एकड़ और साढौरा खंड के 41 गांवों में 495 एकड़ गोचरान की जमीन है। इस जमीन पर कहीं खेती हो रही है तो कहीं अवैध कब्जे हैं।

गोशालाओं में चारा तक नहीं

अधिकांश गोशालाओं के हालात चिताजनक हैं। पर्याप्त बजट होने के बाद भी कामधेनु को हरा चारा तक नसीब नहीं हो रहा है। घास समय पर नहीं मिलता। बैठने के लिए शेड पर्याप्त नहीं है। जगह सीमित होने के कारण पशु एक दूसरे को पैरों से जख्मी भी कर देते हैं। ऐसी गायों की संख्या भी कम नहीं है जो सड़कों पर चोटिल हो जाती हैं। गो प्रेमी इन गायों को गोशाला में छोड़ देते हैं। आधा दर्जन से अधिक गाय ऐसी हैं जो पीड़ा से कहराती हैं। किसी की टांग टूटी है तो कोई जख्मी हो जाती हैं।

दूध निकाल कर छोड़ देते

गोवंश दुर्दशा के लिए व्यवस्था ही नहीं बल्कि पशुपालक भी जिम्मेदार हैं। जब गोमाता दूध देना बंद कर देती है तो उसके गले से रस्सी निकालकर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। ये गोवंश या तो सड़कों की ओर रुख कर लेते हैं या फिर खेतों में। सड़कों पर वाहनों के साथ टकराते हैं और खेतों में मालिक की मार खाते हैं। कई बार तो कुत्तों को भी नोचते हुए देखा जा सकता है।

हो रहे हादसे

रात के समय इनकी संख्या बढ़ जाती है। हादसे का कारण बनती हैं। गत दिनों कमानी चौक के नजदीक गाय सामने आने से बाइक सवार बलिद्र घायल हो गया था। आइटीआइ चौक के पास एक कार के सामने गोमाता आ जाने से दुर्घटना होते-होते बची। कन्हैया चौक के नजदीक भी गायों के झुंड दिखाई देते हैं। कमानी चौक के समीप रखे डस्टबिन के कचरे में मुंह मारती हैं।

फोटो : 07

मैं चेक कराता हूं। सड़कों पर भटक रहे गोवंश को गोशालाओं तक पहुंचाने की व्यवस्था कराई जाएगी। नगर निगम की ओर से विशेष अभियान शुरू कराया जाएगा। गोशालाओं में भी व्यवस्था का जायजा लेंगे।

मुकुल कुमार, डीसी, यमुनानगर।


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